संतुष्टि एक स्वादिष्ट वस्तु है (व्यंग्य)
काफी सकारात्मक बातों के माहौल में बताना चाहता हूं कि मेरे, अन्दर से तुच्छ मगर बाहर से लुभाने वाले दिमाग में, कई दशकों से अनेक उच्च विचार उगे हुए हैं। दिल चाहता है कि इन्हें भी कानूनी वैधता उपलब्ध करा दी जाए।
जब संतुष्टि एक स्वादिष्ट वस्तु की तरह मान ली जाए तो यह भी स्वीकार कर लेना चाहिए कि उचित समय आ गया है जब हमारे सभ्य समाज में किसी भी किस्म की बुराई माने जाने वाली बुराई नहीं रहनी चाहिए। देश में सरकार है तो कानून है, कानून है तो अनुशासन है, अनुशासन है तो सभ्य समाज है, सभ्य समाज है तो बेहतर और आनंदित जीवन निरंतर है।
काफी सकारात्मक बातों के माहौल में बताना चाहता हूं कि मेरे, अन्दर से तुच्छ मगर बाहर से लुभाने वाले दिमाग में, कई दशकों से अनेक उच्च विचार उगे हुए हैं। दिल चाहता है कि इन्हें भी कानूनी वैधता उपलब्ध करा दी जाए। सबसे पहले कर चोरी के मामले में, वैसे तो कर चोरी काफी कम हो गई है, फिर भी बचे खुचे क्षेत्रों में कानूनी प्रावधान किया जाए कि फलां व्यवसाय में फलां सीमा तक कर चोरी कर सकते हैं। कुछ ऐसे प्रसिद्ध सरकारी विभाग जहां कुछ सीटस पर पोस्टिंग के लिए व्यक्तिगत, राजनीतिक या आर्थिक जद्दोजहद करनी पड़ती है, प्रावधान होना चाहिए कि कर्मचारी या पार्टी वेल्फेयर फंड में, स्थायी प्रतिशत राशि हर माह जमा कराते रहने पर, पोस्टिंग आराम से मिलने लगेगी। सभी नागरिकों को समान अवसर मिलेगा।
इसे भी पढ़ें: कागजी शेर, मैदान में हुए ढेर (व्यंग्य)
राजनीति, धर्म या समाजसेवा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में जो ‘दागी’ अपनी लोकप्रियता के सहारे सफल होकर उच्च पद प्राप्त कर लें, उन पर चल रहे किसी भी किस्म के कोर्ट केस, वैध रूप से निरस्त कर दिए जाएं क्यूंकि वैसे भी ऐसे मामलों में, वैध रूप से कुछ ‘होने’ की संभावना, नैसर्गिक रूप से क्षीण हो जाती है। हमारे देश में किसी काम को छोटा नहीं माना जाता इसलिए किसी भी क्षेत्र में राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नाम कमा चुके ‘प्रसिद्ध’ व ‘महान’ व्यक्तियों पर किसी भी तरह के मामले में, कानूनी कारवाई न करना वैध माना जाना चाहिए।
ईमानदारी से आकलन किया जाए तो इससे पूरे देश की हजारों अदालतों के एक दो नहीं, दर्जनों साल बच सकते है। आजकल सड़क पर इतना ट्रेफिक बढ़ गया है कि ज़रा सी बात पर मार कुटाई शुरू हो जाती है। ज़िंदगी का भी यही हाल है हम एक दूसरे को मारने पीटने को तत्पर रहने लगे हैं। कानूनन प्रावधान ऐसा होना चाहिए कि परिस्थिति अनुसार कुछ थप्पड़, घूंसे, लातें या डंडे मारना सामान्य व्यवहार माना जाए। किसी भी समय कोई भी, किसी से भी, कहीं भी एक सीमा तक गुब्बार निकालु व्यवहार कर सकता है, यह वैध माना जाएगा। ऐसे मामलों में कोई पुलिस केस रजिस्टर नहीं होगा।
इन अच्छे संशोधनों से धन प्राप्ति बढ़ेगी, मानसिक और शारीरिक संतुष्टि बढ़ेगी, सरकारी विभागों की सरदर्दी कम होगी और नेताओं को देश सेवा करने के लिए ज्यादा समय मिल पाएगा।
- संतोष उत्सुक
अन्य न्यूज़