आरक्षण की सुरक्षित नदियां (व्यंग्य)

neta
Prabhasakshi

बांसुरी वाले के ज़माने से बात शुरू करें तो यमुना का रोमांटिक तट उनके लिए हमेशा आरक्षित रहा। वे वहां बांसुरी की सुरीली तानें छेड़ कर राधा को दीवानी कर देते थे और गोपियों संग रास भी रचा लेते थे। वह उनका ‘ईश्वरीय रिज़र्व’ था।

सावधान सरकारों द्वारा आरक्षण जारी रखने या सिर्फ राजनीतिक लाभ लेने के लिए आरक्षण के नए खांचों का निर्माण करने वाले विचार अभी आराम कर रहे हैं। इस बीच करोड़ों समझदार वोटरों ने ताज़ा सरकार चुन ली है। राजनीतिक पार्टियों के नियमित लेकिन अस्थायी चुनावी कार्यकर्ता, चियर्स करते हुए, लोकतंत्र की ज़्यादा तारीफ़ करने में मस्त रहे । मंत्रियों के विभाग आबंटन बारे विचार विमर्श संपन्न होने के बाद, एक ने आरक्षण पर ज़बान टिकाकर अपना गैर राजनीतिक वक्तव्य दिया, इस आरक्षण ने हमारे देश का बेड़ा गर्क कर दिया है। दूसरा बोला, हमारे भाईचारे को निगल लिया है। तीसरे ने कहा, अब तो सिर्फ वोट की राजनीति है, वास्तव में आरक्षण की सुरक्षित नदियां तो देश में युगों से बह रही है। 

बांसुरी वाले के ज़माने से बात शुरू करें तो यमुना का रोमांटिक तट उनके लिए हमेशा आरक्षित रहा। वे वहां बांसुरी की सुरीली तानें छेड़ कर राधा को दीवानी कर देते थे और गोपियों संग रास भी रचा लेते थे। वह उनका ‘ईश्वरीय रिज़र्व’ था। राजाओं और शहंशाहों का ज़िक्र बताता है कि वे जिस पर चाहे हमला कर सकते थे। पूरी लगन से मनमाना लगान वसूलते थे। किसी भी युवती, शाही कुमारी का अपहरण या शादी कर सकते थे। यह सब ‘शाही रिज़र्वेशन अभियान’ के अंतर्गत आयोजित किया जाता था।

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उसी युग में तामझाम के साथ अंग्रेज़ पधारे, उन्होंने अपने सबसे सफल फार्मूले ‘डिवाइड एंड रूल’ के माध्यम से सभी को आरक्षित कर दिया। देश की धन दौलत, अमूल्य धरोहरें बटोर लीं और ‘ब्रिटिश रिज़र्व’ की स्थापना की। फिर आया हमारे अपने अंग्रेजों का युग, जिन्होंने पूरी निष्ठा और ईमानदारी से जाति और धर्म आधारित राजनीतिक सांचा ईजाद किया जो अब सुविधा बन चुका है। उनका ‘रिज़र्वेशन वृक्ष’ उचित समय पर उपजाऊ खाद और सिंचाई करने से ‘रिज़र्वेशन शूल वटवृक्ष’ बन गया है। कैसे, कैसे बना, एक बुद्धू ने पूछा। बताया, जाति के इलावा पत्नी, साली, बेटा, बेटी, भाई, बहन, चाचा भतीजा, दोस्त, चमचों को फायदे और पद भेंट किए।

उन्होंने ‘राजनीतिक आरक्षण मेला’ में खूब खेल खेले।  हत्याएं करवाई, दिवालिया योजना, मूर्ति युग लाकर ज़िंदा लोगों को बुत बना दिया और बुतों की टहलसेवा की। लोकतंत्र को लोभतंत्र में तब्दील कर दिया। ज़बान, मीडिया, लाठी, बन्दूक, नोट और धर्म के बल पर ‘शक्ति आरक्षण योजना’ भी लांच की जो सफल रही। पालिसी निर्माताओं ने हिट अंग्रेज़ी शैली ‘डिवाइड एंड रूल’ पुन लांच करते हुए नए नियमों के अनुसार, विचार, जाति एवं धर्म के आधार पर सभी को बेहतर तरीके से छांट-बांट किया।

नेताओं और अनेताओं ने भी देश की खूब सेवा की। असुविधा ग्रस्त और सुविधा मस्त के बीच बढ़ते फासले को हमेशा के लिए स्थापित कर साबित कर दिया कि देश के नायकों के पास सब कुछ करने का अधिकार है। नौकरशाहों से हाथ मिलाकर, सामयिक सोच व उत्कृष्ट बुद्धिमत्ता का इस्तेमाल कर अनगिनत योजनाओं को कुर्सी के आकार के मुताबिक निर्मित किया। सफलता वहीं पहुंची जहां के लिए चुनी गई थी। इसमें  ज़रा भी चूक नहीं हुई। इस कार्यक्रम में कर्मठ व समर्पित कार्यकर्ताओं ने बेहद आत्मीय, संकल्पित, सहयोगी और सक्रिय भूमिका निभाई। लगातार मेहनत से लबरेज़ इस कार्यक्रम को ‘पालिटिकल- ब्यूरोक्रेट- कांट्रेक्टर- कम्बाईन रिज़र्व’ कह सकते हैं।

काफी देर से सुन रहे एक जागरूक कार्यकर्ता ने राज़ खोलते हुए बताया, उनकी पार्टी ने राजनीतिक आरक्षण परम्परा के अनुसार इस बार भी जाति, सम्प्रदाय और धर्म के आधार पर चुनावी टिकट बांटे थे। इसे चुनाव में जीत सुनिश्चित करने की ‘आरक्षण नीति’ कहते हैं जो हमेशा सफल रहती है। सभी संतुष्ट थे कि वे अलग अलग पार्टी के कार्यकर्ता होते हुए भी, देश में स्थापित राष्ट्रीय पारम्परिक संस्कृति को मिलकर आगे बढ़ा रहे हैं।

- संतोष उत्सुक

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