रावण के पुतले के प्रश्न (व्यंग्य)

dussehra

रावण सदियों की परम्परा भूल गया है... पता नहीं उसमें इतनी बेशरमाई कहाँ से आ गई कि प्रभु के हाथों जलने से ही मना कर रहा है। सभी तरफ़ बेचैनी का माहौल बन गया। आयोजक भी परेशानी से एक-दूसरे का मुँह ताकने लगे। प्रभु के तूणीर में भी अब आखिरी तीर बचा था।

इस बाहर ग़ज़ब हो गया। दशहरा मैदान पर रावण दहन की सारी झाँकी सज चुकी थी। रावण, कुम्भकर्ण और मेघनाद के पुतले पूरी तामझाम के साथ अपने नियत स्थान पर खड़े कर दिए गए थे। प्रभुराम, लक्ष्मण और हनुमान की आरती समारोह अध्यक्ष द्वारा करने की औपचारिकता भी पूर्ण हो चुकी थी। लेकिन ये क्या, प्रभु राम ने पहला तीर चलाया और रावण के पुतले ने जोरदार अट्टहास लगाया साथ ही जलने से साफ मना कर दिया। इधर राम जी धनुष पर एक के बाद एक तीर चढ़ा कर रावण के पुतले की ओर छोड़ रहे थे पर रावण का पुतला टस से मस नहीं हो रहा था। जनता ऐसा सीन पहली बार देख रही थी। अब क्या होगा, सोचकर दर्शकों में व्यग्रता बढ़ती जा रही थी। लोगों में खुसुर-पुसुर शुरु हो गई पता नहीं इस बार ये पुतला किसने बनाया। हर बार तो रहीम चाचा बनाते थे। उनके बनाए पुतले तो धनुष पर तीर चढ़ा देखा नहीं कि धू-धू कर जलने लगते थे। होलिका दहन और कंस वध झाँकियों के पुतले भी हमेशा रहीम चच्चा बनाते रहे हैं। होलिका तो चिंगारी देखकर ही जलने लगती थी और कंस भी दो घूँसे खाकर खून का उल्टियाँ करने लगता था।

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रावण सदियों की परम्परा भूल गया है... पता नहीं उसमें इतनी बेशरमाई कहाँ से आ गई कि प्रभु के हाथों जलने से ही मना कर रहा है। सभी तरफ़ बेचैनी का माहौल बन गया। आयोजक भी परेशानी से एक-दूसरे का मुँह ताकने लगे। प्रभु के तूणीर में भी अब आखिरी तीर बचा था।

एक बच्चा जो पहली बार रावण दहन का नजारा देखने आया था, अपने पिताजी के कंधे पर बैठा कुलबुला रहा था। जब उससे नहीं रहा गया तो उसने जोर से चिल्लाकर कहा- "रावण अंकल, आप क्यों तमाशे को खराब कर रहे हैं, हम आपको जलता हुआ देखने आए हैं और एक आप हैं कि जलने का नाम ही नहीं ले रहे हैं।" 

रावण ने उस बच्चे की ओर देखा और इस बार अट्टहास के स्थान पर स्मित मुस्कान बिखेरी। बोला- "मैं तुम्हारा तमाशा बिल्कुल खराब नही करूँगा। मैं तुम्हारे लिए परम्परा का निर्वाह करते हुए इस बार भी धू-धू कर जल जाऊँगा। पर मेरे कुछ प्रश्न हैं जिनके उत्तर मुझे यहाँ उपस्थित हरेक व्यक्ति से चाहिए"- रावण कुछ देर रुका और उपस्थित भीड़ को नजर घुमाकर देखा- "बेटा, तीस साल पहले जब  इस मैदान में मुझे पहली बार जलाया गया था तब मेरा कद बमुश्किल बीस फीट था लेकिन तीस सालों में मेरा कद 65 फीट हो गया | क्या कोई बता सकता है कि रावण से ऊँचे कद वाला व्यक्ति भी है कोई इस समय? मेरा कद हर साल क्यों इस तरह बढ़ा, जवाब देगा कोई इसका।"

"अंकल दिमाग मत खाओ, आपको पता है तो आप ही बता दीजिए"- वह बच्चा इस बार तनिक रोष से बोला।

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"बेटा गुस्सा मत करो, तुम्हारी सेहत के लिए अच्छा नहीं है, इस प्रश्न का उत्तर तो जनता को ही देना है कि वह क्यों साल दर साल मेरे बढ़ते कद को नजरअंदाज करती आ रही है। अगर मैं इतना प्रिय हूँ तो लोग अपने बच्चों के नाम रावण क्यों नहीं रखते? प्रभु का नाम रखकर रावण जैसे काम करने वाले ढेरों लोग हैं यहाँ, जिन्हें जनता सर आँखों पर बिठाती है, पूजा करती है उनकी... चाहे वे नारायण दत्त हों, रामपाल हों, राम रहीम हो, आसाराम हों, राघव जी व परसराम हों।"

रावण के प्रश्न सुन जनता सन्नाटे में आ गई। आयोजक बगलें झाँकने लगे। बच्चा फिर चिल्लाया- "बहुत हुआ अंकल... तुम इंसानों जैसी बातें क्यों कर रहे हो, पुतले हो, पुतले जैसे रहो" रावण रुआँसा हो गया। उसका गला भर्राने लगा, बड़ी मुश्किल से बोल पाया- "सही कहा बेटा, यहाँ मुझे छोड़ कर सभी पुतले ही तो हैं, लो मैं भी अब पुतला बन जाता हूँ" मैदान में पटाखों की आवाज गूँजने लगी। रावण धू-धू कर जलने लगा था।

- अरुण अर्णव खरे

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