खालिस प्रेम भी उपहार है (व्यंग्य)

valentine day
Creative Commons licenses
संतोष उत्सुक । Feb 14 2023 4:10PM

कार्ड, चाकलेट, आभूषण या कुछ और की खरीद की भूमिका खत्म हो जाती है जब किसी नए छोर से महंगा उपहार आता है और प्यार की आसक्ति उसे कबूल कर लेती है। गुलाब के असली फूल भी तो ज़्यादा देर नहीं टिकते तभी तो उनकी जगह रबड़ के से लगने वाले हाई ब्रीड गुलाब, बाज़ार की रौनक पर काबिज़ हैं।

‘वेलेंटाइन डे’ को अब हम, बहुत ज़्यादा विदेशी मानने लगे हैं। ‘वेलेंटाइन वीक’ अब काफी वीक रहने लगा है और प्यार का असली खुमार भी आज थोडा बहुत चढ़ रहा है। नकली गुलाब की तरह बदलता वक़्त और व्यवस्था के सुरक्षा दस्ते, खोजी दस्ताने पहन कर, सावधान रहते हुए, सामाजिक संस्कृति को बचाए रखेंगे। सार्वजनिक स्थलों पर लगे, मरम्मत मांग रहे निगरानी कैमरे, माहौल को अंगूठा दिखाकर प्रेम या कुछ और कर रहे प्रेमियों को बख्श कर संतुष्ट रहेंगे। हमारा समाज कई तरह का प्रेम और उससे जुड़ी कविताएं वगैरा भी पसंद नहीं करता फिर भी पुरानी प्रेम कविताएं पढ़ी जाएंगी, नई गढ़ी जाएंगी, नक़ल भी की जाएगी।

प्यार से लिखे और प्यार में डूबे गीत संगीत की जोशीली नदियां, इंतज़ार के समंदर की गहराई कम करने में मदद करेंगी। प्रेमी चौक्कने होकर सप्रेम सक्रिय रहेंगे तो नफरत भी अपने नए गुल खिलाने को तैयार रहेगी। सच्चे और फरेबी प्रेमी फिर मिलेंगे। इसरार, इकरार और इनकार कई नए प्रेम त्रिकोण बनवाएगा। विज्ञापन का असर होगा और बाज़ार बहुत खुश होगा। वास्तविकता यह है कि प्रेम, महंगा सामान बेचती, बाज़ार की चमकदार दुकानों का हिस्सा हो गया है। प्रेम बाज़ार में, एक उम्र तक उम्मीदों यानी वस्तुओं का कद यानी मूल्य बढ़ता जाता है। यह उंचाई इतनी हो जाती है कि प्रेम दिवस कईयों के लिए कार्ड खाली करू दिवस या नफ़रत दिवस यानी ब्रेकअप दिवस में तब्दील हो जाता है।

इसे भी पढ़ें: डोंट वरी फरवरी है न.... (व्यंग्य)

कार्ड, चाकलेट, आभूषण या कुछ और की खरीद की भूमिका खत्म हो जाती है जब किसी नए छोर से महंगा उपहार आता है और प्यार की आसक्ति उसे कबूल कर लेती है। गुलाब के असली फूल भी तो ज़्यादा देर नहीं टिकते तभी तो उनकी जगह रबड़ के से लगने वाले हाई ब्रीड गुलाब, बाज़ार की रौनक पर काबिज़ हैं। सुना है अब कांटे रहित असली गुलाब भी उपलब्ध हैं। नकली वाशेबल, दिलकश फूलों और खुशबुओं ने भीतरी सजावट को कुदरती फूल पौधों से खासा हथिया लिया है लेकिन खालिस प्रेम की महक, इन नकली होते जाते फूलों में कहां चहक पाती है। एक लकीर पीटना सा है। भौतिकता के सहज असर में सब कर रहे हैं इसलिए हम भी कर रहे हैं। ज़बर्दस्त दिखावे का आलम है।

बदल दिया गया माहौल साबित कर रहा है कि प्रेम की अनुभूति और अभिव्यक्ति, बाजारी युग में भी सिर्फ पैसा खर्चने के पुल के नीचे नहीं खड़ी है। वह बात दीगर है कि हर व्यक्ति के शोध का अपना पैमाना और निजी दृष्टिकोण होता है लेकिन प्रेम की सौम्य, सहज, संतुष्ट खुशी, मनचाही जगह पर खूब सारा वक़्त बिताने से ही मिलती है अपने उन प्रिय व्यक्तियों के साथ जिन्हें आप प्यार करते हैं। इसमें सिर्फ खालिस सहमति होती है। आपसी सहमति के खुलते रास्ते कहां तक ले जाते हैं पता नहीं चलता हां, समझदारी निखारने में समय तो लगता है।

हस्तीमल हस्ती और जगजीत सिंह ने मिलकर क्या खूब और सही समझाया है, ‘जिस्म की बात नहीं थी, उनके दिल तक जाना था, लंबी दूरी तय करने में वक़्त तो लगता है’। आज के प्रेमियों को समझ न आए तो अलग बात है।

- संतोष उत्सुक

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़