तौबा ये मतवाली चाल (व्यंग्य)

neta
Prabhasakshi

आम और राजनीति के खास लोगों के लिए चाल का मतलब अलग-अलग होता है। जहाँ चाल आम लोगों के व्यक्तित्व को प्रभावी बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है वहीं राजनीति में चाल नेताओं का अस्तित्व स्थापित करने में निर्णायक भूमिका निभाती है।

जिंदगी में चाल का विशेष महत्व है। बहुतों का मानना है कि व्यक्ति की चाल उसके व्यक्तित्व का आइना होती है यानि व्यक्ति के विकास में चाल अहम रोल निभाती है। बचपन में "गौरी चलो न हंस की चाल" और "कान में झुमका, चाल में ठुमका" जैसे गीतों को सुनते हुए मुझे भी जीवन में चाल का महत्व समझ में आ गया था। यह तो बहुत बाद में समझ में आया कि चाल कितना करिश्माई शब्द है। आम और राजनीति के खास लोगों के लिए चाल का मतलब अलग-अलग होता है। जहाँ चाल आम लोगों के व्यक्तित्व को प्रभावी बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है वहीं राजनीति में चाल नेताओं का अस्तित्व स्थापित करने में निर्णायक भूमिका निभाती है। चाल से आम आदमी को पहिचाना जा सकता है लेकिन नेताओं की चाल समझना क्रिकेट की डकवर्थ-लुइस गणना प्रक्रिया को समझने जितना ही कठिन है। आम आदमी की चाल से शायद ही किसी को फर्क पड़ता है लेकिन नेता की एक चाल सरकार गिराने जैसे "फौरिया" से लेकर सरकार को बचाने जैसे दूरगामी परिणाम तक देती है। आम आदमी को कोई चालबाज कहे तो वह शर्म से आँखें चुराने लगता है लेकिन यही शब्द नेता का सीना चौड़ा कर देता है।

बटुक जी आम आदमी हैं। बचपन के दिनों में उनकी चाल में एक खास तरह की बेफिक्री थी। यौवन की देहलीज पर कदम रखा तो चाल में थोड़ी मस्ती आने लगी। गर्ल्स कॉलेज के सामने से गुजरते तो चाल में ठहराव आ जाता और हाथ ढोलक बजाने वाले अंदाज में अंग्रेजी के अक्षर वी के समान आकार लेने लगते। शादी हुई तो चाल में संजीदगी आ गई। आजकल कहीं मिल जाते हैं तो अपनी ढीली-ढाली चाल से दूर से ही पहिचान में आ जाते हैं। जिंदगी के जंझावातों ने उनकी चाल बदल दी है।

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दूसरी और मुरारी जी हैं। युवा काल से ही राजनीति में रुझान रखते थे। आज उनकी गजकाया को देखकर आप जरा भी अंदाज नहीं लगा सकते कि वह हजारों तरह की चालें एक ही मुद्रा में चलना जानते हैं। उनकी चालों को देख-सुन कर उँगली अपने आप दाँतों के बीच चले जाने को बेताब हो जाती है। उनकी चालें देखकर लोग हतप्रभ रह जाते हैं। आप सोच रहे होंगे कि वह जरूर शतरंज के अच्छे खिलाड़ी रहे होंगे, पर आप गलत हैं। शतरंज से उनका कोई वास्ता नहीं। वह डिब्बे में बंद मोहरों को भी ठीक से नहीं पहिचान पाते। पैदल और ऊँट में गच्चा खा जाते हैं। विश्वनाथन आनंद और कास्पारोव का नाम भी नहीं सुना है उन्होंने, लेकिन राजनीति की बिसात पर उन्हें इनसे ज्यादा चालें चलने में महारत हासिल है। वह सड़क पर चलते इंसान, सीमा पर खड़े जवान और बलात्कारी शैतान को भी परिस्थिति अनुसार मोहरा बना लेते हैं। वह कराह को भी वाह में तब्दील करने का हुनर जानते हैं। जो उनकी चाल से नतमस्तक नहीं होता उसे मोहरा बनाकर डिब्बे में बंद करना भी उन्हें बखूबी आता है। वह प्रतिद्वंद्वी के मोहरों को भी अपना बनाने की कला में सिद्धहस्त हैं। शतरंज के विपरीत उन्हें काले मोहरों से खास लगाव है खासतौर पर विपक्षी काले मोहरे उन्हें अति प्रिय हैं। उन मोहरों को वह पल में गोरा चिट्टा बना डालते हैं। उनके हाथों में आकर ये मोहरे प्यादे होकर भी घोड़े की चाल चलने लगते हैं। विरोधी उनकी चाल का तोड़ आज तक नहीं ढूंढ पाए हैं इसीलिए पस्त हुए पड़े हैं।

- अरुण अर्णव खरे

डी-1/35 दानिश नगर

होशंगबाद रोड, भोपाल (म०प्र०) 462026

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