दूध रोटी का चक्कर (कविता)
कर्नल प्रवीण त्रिपाठी । Aug 28 2021 3:43PM
लेखक ने कविता के माध्यम से बाल पन को उजागर करने का प्रयास किया है। उन्होंने 'दूध रोटी का चक्कर' शीर्षक माध्यम से पाठकों को बच्चपन की यादों में खो जाने का अवसर प्रदान किया है।
कौवा पूछ रहा भौं-भौं से, मूमू क्यों नाराज हुई?
चुप्पी साध मोड़ मुख बैठी, बन कर बैठी छुईमुई?1
घरवालों से आँख बचा कर, हम शैतानी करते थे।
अगर कभी हम पकड़े जाते, डाँट सभी मिल सहते थे।2
दूध-मलाई खाती रहती, होती जाती वह मोटी।
सूखी रोटी हम को मिलती, बात लगे हमको खोटी।3
कभी मित्रतावश हमको भी, उनका स्वाद चखाती थी।
पार्टी जैसे हुई हमारी, बात यही मन आती थी।4
पूछ रहे हम किस्सा क्या है, उत्तर मिले नहीं इसका।
कुछ उपाय के द्वारा आओ, दूर करें हम गम उसका।5
शायद खाना नहीं मिला है, इसी बात पर है गुस्सा।
हम खाने को कुछ ले आएं, उसको को भी दें हिस्सा।6
मौन स्वरों में भौं-भौं ने भी, सहमति निज जतलाई।
चलो कहीं से हम ले आएं, कुछ रोटी दूध-मलाई।7
- कर्नल प्रवीण त्रिपाठी
नोएडा
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