मां भारती का लाड़ला (कविता)

Vinayak Damodar Savarkar
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शिखा अग्रवाल । May 27 2023 2:32PM

विनायक दामोदर सावरकर केवल नाम नहीं, एक प्रेरणा पुंज हैं जो आज भी देशभक्ति के पथ पर चलने वाले मतवालों के लिए जितने प्रासंगिक हैं उतने ही प्रेरणादायी भी। कवियत्री ने इस कविता में वीर सावरकर जैसी शाख्सियत को बहुत ही सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया है।

विनायक दामोदर सावरकर केवल नाम नहीं, एक प्रेरणा पुंज हैं जो आज भी देशभक्ति के पथ पर चलने वाले मतवालों के लिए जितने प्रासंगिक हैं उतने ही प्रेरणादायी भी। कवियत्री ने इस कविता में वीर सावरकर जैसी शाख्सियत को बहुत ही सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया है।

लहू का कतरा-कतरा चीख रहा था,

आज़ादी का ज़ज्बा नस-नस में बह रहा था,

बुलंद हौसलें- बुलंद शख्सियत थी जिनकी,

मां भारती के लाडले,

वीर सावरकर थे क्रांतिकारी महान्।

             

विदेशी वस्त्रों की होली जला,

हुकूमत की रूह भी जला डाली थी।

तिरंगे के बीच धर्मचक्र लगा,

राष्ट्रवाद की चिंगारी सुलगा डाली थी।

                   

साहस के ये पुंज थे,

शक्ति के ये कुंड थे।

अंडमान की काल-कोठरी में,

यात्नाओं का एक दौर चला ,

कोल्हू में जूत जब तेल निकाला,

कोड़ों से भी छलनी पीठ हुई,

भूख प्यास सहन कर भी,

गोरों की धज्या उड़ा डाली थी।

"ब्रिटिश सरकार ने मुझे दो आजीवन कारावास दंड देकर हिंदू पुनर्जन्म सिद्धांत को मान लिया है"

शब्दों से प्रशंसा भी बड़ी जताई थी।

क्रांतिकारी ऐसे सदैव रहेंगे महान्,

जन-जन की जुबां पर था इनका नाम।

                  

बिन कलम कील और कोयले से,

जेल की दीवारों को इन्होंने सजाया था,

काली स्याही से जब--

कालजई कविताओं को रचाया था।

"मेरा आजीवन कारावास" 

गवाही बना उस दौर की,

पीड़ाएं जो इन्होंने सहन की।

ज्ञान-ज्योत के ये पुंज थे,

लेखन-कला के ये कुंड थे।

कलम की नोक से जब

  

"1857 का स्वाधीनता संग्राम" उदित हुआ,

कड़ी पाबंदियों में छुपते-छुपाते 

ये प्रकाशित हुआ,

गर इसका उदय ना होता,

प्रथम स्वाधीनता संग्राम 

मामूली ग़दर बन जाता।

             

संघर्षों का यह दौर बड़ा विकराल था,

आज़ादी के लिए प्रेम बड़ा रुहानी था।।

"अभिनव भारत सोसायटी" की स्थापना कर,

पूर्ण राजनीतिक स्वतंत्रता की मशाल जलाई।

‌‌मौत से ना डरे कभी,

मिशन पूरा कर,

अन्न-जल का त्याग किया,

देह त्याग स्वयं मृत्यु का वरण किया।

                         

बलिदान के ये पुंज थे,

ओजस्वी वाणी के कुंड थे।

मां भारती के जिस सपूत ने,

13 वर्षों तक पीया काला पानी,

आज इनकी जयंती पर,

फिर क्यों ना बहेगा हर आंख से पानी।

                        

आओ सब मिलकर करें इनको,

शत-शत नमन।

सदैव महकता रहे इनके नाम का चमन।।

क्रांतिकारी थे ये बड़े महान्,

जन-जन की जुबां पर रहेगा सदैव इनका नाम।

जय हिन्द-जय भारत।।

- शिखा अग्रवाल

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