शम्मे-वतन का उपवन (कविता)

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ANI
शिखा अग्रवाल । Aug 15 2023 12:33PM

भारत अपना 77वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है। भारत को आजादी दिलाने के लिए बहुत से वीर योद्धाओं ने अपने प्राण न्यौछावर कर दिए थे। कविता में कवियत्री ने देशभक्ति को बहुत ढंग से प्रस्तुत किया है।

भारत अपना 77वां स्वतंत्रता दिवस मना जा रहा है। भारत की आजादी के लिए बहुत से लोगों ने अपने प्राण न्यौछावर कर दिए थे। कविता में कवियत्री ने देशभक्ति को बहुत ढंग से प्रस्तुत किया है कवियत्री ने बताया है कि देशभक्ति से बड़ा कोई धर्म नहीं है। कवियत्री शिखा अग्रवाल ने भारत को जो आजादी मिली है उसको इस कविता के माध्यम बहुत सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया है।

हजारों ख्वाहिशें कुर्बां हुईं,

हजारों जानें फ़ना हुईं,

हजारों नारियां सती हुई,

फिर गुलज़ार हुआ शम्मे-वतन का उपवन।

बंगाल की लेखनी से स्वर उभरे,

रविंद्र, बंकिम लेखक थे कुछ सरीखे,

जन-गण-मन का उद्घोष था,

वंदे-मातरम् से जब हिंद गूंजा था,

फिर गुलज़ार हुआ शम्मे-वतन का उपवन।

घर टूटा, शहर छूटा, वतन बंटा,

धरती मां का सीना फटा,

लहू से शहीदों ने इसे जब सींचा,

फिर गुलज़ार हुआ शम्मे-वतन का उपवन।

अंग्रेजों की करी हमने गुलामी थी,

वंदे-मातरम् के नारों पर,

छलनी हुई पीठ खुदीराम बोस की थी।

भगवत-गीता हाथ में लिए,

सूली पर जब वो चढ़ा,

फिर गुलज़ार हुआ शम्मे-वतन का उपवन।

नमक के लिए ये हिंद लड़ा,

बिरसा मुंडा लगान के लिए लड़ा,

गांधी जी की चरखा चली,

आंदोलन की ज्वाला जली,

पद यात्राओं का दौर चला,

धरने-अनशन का कारवां चला,

फिर गुलज़ार हुआ शम्मे वतन का उपवन।

केसरी सिंह बारहठ की लेखनी थी,

चेतावनी-री-चुंगटिया रची थी,

जगा मेवाड़ के महाराणा का स्वाभिमान,

त्याग मुगलों का निमंत्रण तोड़ा उनका अभिमान,

कलम बनी जब तलवार,

फिर गुलज़ार हुआ शम्मे-वतन का उपवन।

हिमाचल बना आजादी का साक्षी,

बर्फीले तूफान में मौत का मंजर चला,

घर- घर  रूदन की आवाज़ें थी।

केसरी सिंह के सपूत वीर प्रताप थे महान्,

"मेरी मां रोती है तो रोने दो। मैं अपनी मां को हंसाने के लिए     

हजारों माताओं को नहीं रुलाना चाहता।"

गूंज हर तरफ इन शब्दों की थी,

सरहद के टुकड़ों ने आज़ादी नवाज़ी थी।

फिर गुलज़ार हुआ शम्मे-वतन का उपवन।

कोख की शहादत पर,

धर्म की शहादत पर,

बचपन की शहादत पर,

सिंदूर की शहादत पर,

हिन्द की हर आंख जब खुलकर बही ,

फिर गुलज़ार हुआ शम्मे-वतन का वतन।

- शिखा अग्रवाल

भीलवाड़ा

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