नोट, खोट, चोट व वोट (व्यंग्य)

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संतोष उत्सुक । Mar 22 2019 7:34PM

हमने कहा एमपी बनने का विचार है क्या। बोले ऐसे टिकट कहाँ मिलता है पर झटकने का पूरा बढ़िया जुगाड़ करेंगे, जमानत ज़ब्त न होने का विश्वास रहा तो स्वतंत्र ही लड़ेंगे, नहीं तो कुछ न कुछ और करके दिखाएंगे और कुछ कमाएंगे।

हमारे एक परिचित, सरकारी अफसर की हैसियत से इक्कतीस जनवरी को रिटायर हुए। नौकरी के दौरान नेताओं व ठेकेदारों के संपर्क में रहे। अपने ‘सहयोगी’ व्यवहार के लिए काफी लोकप्रिय रहे, इसलिए अखबारों के स्थानीय संस्करण में अग्रिम छापा गया कि फलां जनाब रिटायर हो रहे हैं। जब रिटायर हुए तो गेंदे के फूलों से लदी गर्दन वाला रंगीन फोटो विद न्यूज़ छपा। अब तो रिटायर हुए भी काफी दिन हो गए। सर्दी का खतरनाक मौसम ढीला पड़ने लगा तभी कल दोपहर बाद शहर के चौराहे पर मिल गए तो हमने पूछा, क्या करने का इरादा है जनाब अब। पारदर्शी अंदाज़ में बोले, ऊपर वाले ने बहुत ज़्यादा बढ़िया समय पर रिटायर किया है, उमंगें जवान हैं, नोट खोट चोट का बढ़िया मौसम है राजनीति करेंगे। 

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हमने कहा एमपी बनने का विचार है क्या। बोले ऐसे टिकट कहाँ मिलता है पर झटकने का पूरा बढ़िया जुगाड़ करेंगे, जमानत ज़ब्त न होने का विश्वास रहा तो स्वतंत्र ही लड़ेंगे, नहीं तो कुछ न कुछ और करके दिखाएंगे और कुछ कमाएंगे। घाटे में रहना हमने सीखा नहीं। हमारे चेहरे पर भाव न चाहते हुए भी प्रकट हो ही गए कि यह मरियल सा बंदा क्या करेगा और क्या करके दिखाएगा। वह भी तपाक से भांप गए, बोले प्यारे हमको मरियल तो बिलकुल न समझना हमने राजनीति करने का फैसला यूं ही नहीं किया। हमने पूरा गणित बिठा लिया है। हम आज तक सबसे अधिक असरदार माना गया, मुखप्रचार करेंगे। जानपहचान बहुत है, अपनी कम्यूनिटी, अड़ोस पड़ोस और दूसरे तीसरों के वोट तो कहीं नहीं जाने वाले। अगर सबने वायदा निभा दिया, किस्मत ने साथ दिया तो समझो बन गए एमपी। 

इस बार गलती न करते हुए, हमने मन ही मन उन्हें ऊपर से नीचे देखा और सोचने लगे कि राजनीति भी क्या बिगड़ैल व्यवसाय होता है चुनावों के मौसम में हज़ारों लोग एमपी होने के ख्वाब लेना शुरू कर देते हैं और दर्जनों प्रधानमंत्री बनने में अस्त व्यस्त। उन्होंने इस बार फिर भांप लिया बोले, अब आप सोच रहे होंगे कि बंदा एमपी बनने के ख्वाब चर रहा है, देख लेना पूरा न सही थोड़ा एमपी तो बन ही जाऊंगा। प्रचार अभी से शुरू कर दिया है बिना पैसा लगाए या पोस्टर चिपकाए क्योंकि राजनीति में अपना धन लगाने में हम भी यकीन नहीं रखते न ही शहर की दीवारें खराब करना चाहते हैं। बहुत बड़े पर्यावरण प्रेमी हैं। ज्यादातर अखबारों के संवाददाता हमारे दोस्त हैं, जब हम सरकारी नौकरी में थे तो उनको विज्ञापन दिलवाए, सरकारी गाड़ी में खूब घुमाए, बढ़िया खिलाए, उत्तम पिलाए और उपयोगी उपहार भी भिजवाए। अब वे अपना कर्तव्य निभाते हुए हमें सहयोग करेंगे, हम कहीं जाकर भाषण नहीं देंगे बलिक अखबार के माध्यम से ही अपने वोटरों से सीधे हर सुबह मुखातिब होंगे। 

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आपका प्लान तो बढ़िया है फिर भी नहीं जीते तो। अभी हारने की बात मत करो, देखो आपके नाम की तरह ही जीवन की रणनीति होनी चाहिए उत्सुकता भी साथ में संतोष भी। चुनाव में खड़े हो, जीतें या हारें राजनीति करने के बहुत फायदे हैं। हम रंग जमा देंगे तो जीतने के इच्छुक बंदे ही हमसे मिलने आएंगे और बैठ जाने की बात खालिस नकद तरीके से कहेंगे, उधार कतई नहीं, जिससे हमें संतोष व धन दोनों मिलेगा। फिर हर दिशा में हमारी तारीफ ही होगी कि एक सशक्त जीतने वाले उम्मीदवार के समर्थन में बैठ कर समझदारी की। चुनाव के बहाने हम ज़्यादा पापुलर हो ही जाएंगे। समर्थन में बैठने वालों की सरकार बन निकली तो एनजीओ बनाकर देश, समाज व अपनी सेवा करेंगे। आधार यानि बेस तो इस चुनाव में बन ही जाएगा अगली बार म्यूनिसिपलटी का चुनाव जीतने में ज़रा सी दिक्कत नहीं होगी। हमने पूछा एमपी का मतलब आप क्या लेते हैं, बोले महाप्रतापी।

-संतोष उत्सुक

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