पुराने आंकड़ों का नया हलवा (व्यंग्य)
विपक्षी और पक्षी नेताओं के बीच, एक दूसरे को बातों से पीटने की परम्परा निभाई जाएगी। कहा जाएगा बजट में यह होगा, वह होगा। उनको यह नहीं देना चाहिए, हमें देना चाहिए या वैसा करना चाहिए। आयकर सीमा बढाने और महंगाई घटाने की घिसी पिटी बात की जाएगी।
कुछ दिन बाद आंकड़ों का नया हलवा पकाया जाने वाला है। फिलहाल इसके लिए सामान का जुगाड़ किया जा रहा है। जब यह तैयार हो जाएगा तो सब कहेंगे लो जी बजट आ गया। बजट को नए आंकड़ों का ताज़ा नहीं, मिले जुले आंकड़ों का नया हलवा कह सकते हैं क्यूंकि इसमें पिछले साल बने हलवे के लिए मंगाई सामग्री में से बची खुची सामग्री भी मिला दी जाती है। हलवा नया पकाया जाएगा लेकिन इससे सम्बंधित किस्से पुराने रहेंगे।
विपक्षी और पक्षी नेताओं के बीच, एक दूसरे को बातों से पीटने की परम्परा निभाई जाएगी। कहा जाएगा बजट में यह होगा, वह होगा। उनको यह नहीं देना चाहिए, हमें देना चाहिए या वैसा करना चाहिए। आयकर सीमा बढाने और महंगाई घटाने की घिसी पिटी बात की जाएगी। लाखों नौकरियां पैदा करने को कहा जाएगा ठीक वैसे ही जैसे ज़्यादा बच्चे पैदा करने की नसीहत है। कई दशक से हमारी सांस्कृतिक राष्ट्रीय परम्परा के अंतर्गत मचाया जाने वार्षिक हल्ला फिर मचाया जाएगा। बजट की तारीफ़ को धर्म मानते हुए, समाज के हर वर्ग को ताकत देने वाला, किसान, गरीब, महिला और गांव को समृद्ध करने वाला बताएगा । इसके ठीक विपरीत हल्ला विपक्ष मचाएगा ।
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कई महान नेता सरकार की ऐसी तैसी करने के बाद, चुनाव से ठीक पहले सरकार की गोदी में बैठ जाते हैं वे भी कहेंगे सामाजिक न्याय की खुश्बू बांटता स्वादिष्ट हलवा है। विपक्षी नेता कहेंगे कुर्सी बचाने वाला जिसमें हमारे चुनावी घोषणा पत्र का मसाला डाला है। नेता पक्ष कहेंगे, विकसित देश के लक्ष्यों को साकार करने के लिए लाजवाब नए स्वाद रचे गए हैं। विपक्षी पार्टी के मुख्यमंत्री बोलेंगे, बेरोजगारों गरीबों के लिए बेस्वाद है। हताश करने वाले आंकड़ों का हलवा है। पूर्व सख्त वित्तमंत्री कहेंगे इन्हें हमारे जैसा हलवा बनाना नहीं आता है। नायाब स्वाद की रेसिपी सभी के पास नहीं हुआ करती। वे बजट को आंकड़ों का जाल नहीं आंकड़ों की जल्दबाजी कहेंगे। यह भी कहा जाएगा गया कि बजट में आदिवासी, दलित और पिछड़ों को सशक्त बनाने के लिए मज़बूत योजनाएं हैं जो बाद में कमज़ोर पड़ जाती हैं।
अनेक लेखक और टिप्पणीकार बरसों पहले लिखी बजटीय टिप्पणी को संपादित कर तैयार रहेंगे जिसे दादी की डिश की तरह इस साल भी परोस दिया जाएगा। पुराना सवाल फिर खडा होगा कि आम आदमी इस हलवे को हज़म कैसे करे। जवाब मिलेगा, आम आदमी को इस हलवे के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए। अपनी रुखी सूखी खाते रहना चाहिए। जो कम्पनी सस्ता डाटा दे उसमें नंबर पोर्ट करा कर मोबाइल रिचार्ज रखना चाहिए और स्वादिष्ट कार्यक्रमों का मज़ा लेना चाहिए। दयावान सरकार की तरफ देखते रहना चाहिए। भूख से कम खाना चाहिए। व्यायाम ज़रूर करना चाहिए। बजट के हलवे के स्वाद का विश्लेषण करने के लिए तो एक से एक धुरंधर अपनी जीभ के साथ तैयार रहते ही हैं।
- संतोष उत्सुक
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