इतिहास.... प्याज़ ही तो है (व्यंग्य)
इतिहास की किताबी बातें छोडो असली चीज़ें बहुत उदास हैं। उनकी देखभाल न करने में खूब आनंद लिया जा रहा है। उधर भूख, गरीबी, क्षेत्रवाद, सम्प्रदायवाद, जातिवाद और आतंकवाद की बोलती बंद है। बेरोज़गारी और भ्रष्टाचार ज़रूर नया इतिहास रच रहे हैं।
इतिहास के छिलके उतारने वाले, समाज में कभी कम नहीं होते। हैरानी यह है कि इतिहास को प्याज़ समझकर उसके बदबूदार छिलके ही उतारे जाते हैं। इतिहास लिखने वालों ने भी किस्म किस्म के दबाव में सब लिखा तो पूरी पारदर्शिता और ईमानदारी कैसे बरत सकते थे। शक्तिशाली राजनीति इतिहास की मरम्मत लगातार करती रहती है। अब इतिहास संशोधित करने वाले उसके अपने हैं। इतिहास की किताबी बातें छोडो असली चीज़ें बहुत उदास हैं। उनकी देखभाल न करने में खूब आनंद लिया जा रहा है। उधर भूख, गरीबी, क्षेत्रवाद, सम्प्रदायवाद, जातिवाद और आतंकवाद की बोलती बंद है। बेरोज़गारी और भ्रष्टाचार ज़रूर नया इतिहास रच रहे हैं। कई बार लगता है समाज में कोई समस्या नहीं है।
ऐसी स्थिति में कुछ तो महत्वपूर्ण काम हाथ में लेना ही चाहिए ताकि मनपसंद इतिहास रचा जा सके। इस बहाने औरों को भी प्रेरणा मिलेगी और लोग बाग़ अपना पारिवारिक इतिहास भी रचाएंगे। पढ़ना हमेशा की तरह अभी भी टेढ़ा काम है और वर्तमान धर्मयुग में गैर ज़रूरी भी लगता है क्यूंकि यह नौकरी नहीं दिलाता, खबर नहीं बनाता, प्रेम करने की प्रेरणा नहीं देता।
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जब वक़्त की गर्दन कब्ज़े में हो, सम्पन्नता राजनीति की गोद में बैठी हो तो उद्वेलित मन कुछ अलग व नया महा ऐतिहासिक रचने को करता ही है। विशिष्ट, विराट, शक्तिशाली युग प्रवर्तक व्यक्तित्व जब भी इस धरा पर अवतरित हुए हैं नया इतिहास रचा गया है। वर्तमान बदलना और बचाना बहुत मेहनत मांगता है। भविष्य बनाने के लिए विज़न उगाना पड़ता है। राजकवि और लेखक नव इतिहास को कलमबद्ध करने को तैयार रहते हैं। इस बहाने कई समस्याएं स्वत: खत्म हो जाती हैं। अब हमारे यहां समझदार लोग ज़्यादा पैदा होने शुरू हो गए हैं। जो पहले थे वे ना समझ, नॉन देशभक्त टाइप लोग थे। उन्हें पता ही नहीं चलता था कि देश में क्या क्या रचा जा रहा है। कहां कहां कितना विकास किया जाना चाहिए। ऐसे ही नासमझ करोड़ों पर्यटक रहे जो यहां आकर घूमते फिरते रहे। हमारी चाट पकौड़ी खाते रहे। उन्होंने भी नया इतिहास रचने की ज़रा भी प्रेरणा नहीं दी। अब बुद्धिमस्त लोग नित नया इतिहास रच रहे हैं।
गंगा पूरी तरह साफ़ स्वच्छ हो चुकी है। इस दौरान यह उम्दा ख्याल दिमाग में रहा कि लगे हाथ क्यूं न गलत लिखे इतिहास को भी क्लीन कर दें। वैसे भी ज़बरदस्त, चमकदार, खुशबूदार सफाई का युग चल रहा है तो इतिहास को क्या किसी को भी बख्शना नहीं चाहिए। समाज के सभी ऐतिहासिक धब्बे धो डालने चाहिए। एक बार कठोरतम निर्णय लेकर इतिहास को दोबारा पूरी वफ़ा और ईमानदारी से रचना चाहिए। इतिहास तो प्याज़ जैसा ही रहेगा जिसमें से आंसू निकालू गंध आती है। विकास होता रहेगा तो इसके छिलके उतरते रहेंगे।
- संतोष उत्सुक
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