नेताजी ने भावुक होकर कहा (व्यंग्य)
जनसभा यदि छोटी जगह पर हो तो ऐसा संभव हो भी जाता है। काफी लोग बिना नहाए धोए, गंदे कपड़ों में, बिना हाथ धोए ही मंत्रीजी के गले पड़ जाते हैं और हाथ भी मिलाते हैं। मंत्रीजी बुरा नहीं मान सकते । माहौल में चुनाव की जबर्दस्त चहक घुली हुई होती है।
अधिकतर नेताओं को नेताजी पुकारना, मुझे अच्छा नहीं लगता लेकिन बहुत सी गलत परम्पराएं जारी रखनी पड़ती हैं। खैर, नेताजी जो पिछले चुनाव में जीतकर मंत्रीजी हो गए थे उन्हें अपने क्षेत्र के कुछ हिस्सों में आए पांच साल हो गए थे। चुनाव फिर आ गया तो फिर से उम्मीदवार घोषित होने के बाद पहली बार अपने क्षेत्र के उदास हिस्से में पहुंचे। चुनाव में जन मिलन कार्यक्रम होना ही था, आयोजित हुआ। लोगों की भीड़ तो वैसे भी हमारे यहां बढ़ती जा रही है। लोगों के पास कुछ और करने के लिए था नहीं सो उस दिन भी खूब भीड़ उमड़ी। मंत्रीजी को देखने या लोगों द्वारा उनके गले लगने का आनंद अनूठा होता है। चुनाव में तो मंत्रीजी को वैसे भी हर किसी को गले लगाना पड़ता है।
जनसभा यदि छोटी जगह पर हो तो ऐसा संभव हो भी जाता है। काफी लोग बिना नहाए धोए, गंदे कपड़ों में, बिना हाथ धोए ही मंत्रीजी के गले पड़ जाते हैं और हाथ भी मिलाते हैं। मंत्रीजी बुरा नहीं मान सकते। माहौल में चुनाव की जबर्दस्त चहक घुली हुई होती है। उन्होंने अपने हाथ उठाकर भाषण शुरू करते हुए कहा, आज, यहां वे वैसे ही आए हैं जैसे कई साल पहले आते थे। उन्होंने जोर देकर कहा कि वे यहां बुजुर्गों, बहनों, भाइयों और बच्चों तक के नाम, परिवार समेत और उनके काम से जानते हैं। उनकी समस्याओं से अच्छी तरह से वाकिफ हैं। वास्तव में यह बात देश का बच्चा बच्चा समझता मानता है कि बड़े लोगों का तो आम आदमी की समस्याओं से वाकिफ होना ही काफी होता है।
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उन्हें मंत्रीजी सुनना ही पसंद है, इसलिए पूर्व मंत्रीजी या उम्मीदवारजी नहीं कह सकते। आम तौर पर ज़्यादातर लोग उनके नाम के साथ जी नहीं लगाते। खैर, उन्होंने फिर हाथ उठाकर कहा कि समस्याओं का समाधान किया जाएगा। उन्होंने संजीदा अभिनय के साथ कहा तो लगा, कभी न कभी तो समाधान हो ही जाएगा। अभी समाधान होना समस्या है, एक दिन समस्या खुद ही समाधान हो जाएगी। नेताजी सोच तो रहे होंगे कि बार बार उसी मुश्किल काम के लिए कहा जाता है। वे भी इंसान हैं। इतनी जातियों, सम्प्रदायों और धर्मों के लोगों को एक जुट करना, युवाओं का भविष्य सुरक्षित करना टेढ़े काम हैं। सब जानते हैं कि भविष्य बताने वालों का भविष्य भी कोई सुधार नहीं सकता। बिगड़ते वातावरण में, पर्यावरण सुधारने के लिए जल, जंगल और ज़मीन बचाने जैसी असंभव सी बातें करनी पड़ती हैं।
कहने वाले, सुनने वाले सब जानते हैं, जब तक नेताजी फिर से चुनाव जीतकर विधायक नहीं हो जाते कुछ कहना बेकार है। मंत्रीजी जाते हुए सोच रहे थे कि उनका आज का अभिनय ठीक रहा।
- संतोष उत्सुक
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