डर कर जीने के फायदे (व्यंग्य)

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संतोष उत्सुक । Jan 16 2025 3:59PM

बिना भय के खतरा ही रहता है। अगर डर नहीं रहेगा तो हम अपनी लड़ने या भागने की उर्जा, गति, शक्ति और ध्यान कैसे बनाए रखेंगे। वैसे भी जीने के दो तरीके हैं डर कर या डराकर। बंदा डर कर ही भागता है डराकर नहीं।

इस खूबसूरत दुनिया के कई देशों के नागरिकों को धर्म, राजनीति, क्षेत्रवाद और जाति जैसी ज़रूरी वस्तुओं बारे सोचने का समय नहीं होता। वे दूसरे फ़ालतू काम करते रहते हैं। हमारे यहां यह चीज़ें खूब प्रयोग होती हैं और आम लोगों को डराकर, उलझाकर रखती हैं। ऐसा माना जाता है कि डरने से दिमाग का वह हिस्सा सक्रिय हो जाता है जो हमें सतर्क व सजग रहने को प्रेरित करता है। कुछ लोग क्राइम सीरियल देखकर या जुर्म करने वालों से भी सतर्क और सुरक्षित हो जाते हैं। क्राइम कैसे करें यह भी सीख जाते हैं लेकिन डर के कारण ही समाज में फैले खतरों बारे जागरूक रहते हैं और अपनी देखभाल भी करते हैं।

बिना भय के खतरा ही रहता है। अगर डर नहीं रहेगा तो हम अपनी लड़ने या भागने की उर्जा, गति, शक्ति और ध्यान कैसे बनाए रखेंगे। वैसे भी जीने के दो तरीके हैं डर कर या डराकर। बंदा डर कर ही भागता है डराकर नहीं। डराकर जीने वाला अपनी सुरक्षा का प्रबंध भी तैयार रखता है जैसे कि राजनीतिक, धार्मिक शक्तिशाली लोग, गलत तरीके से धन कमाने और ज़मीन हथियाने वाले। डरने वाले करोड़ों आम लोगों को असुरक्षा भी ज्यादा परेशान नहीं करती। किसी ज़माने में कहा जाता था, जो डर गया वो मर गया, लेकिन बदलते समय में यह गलत साबित हो चुका है। अब तो डरने वाला, चुप और शांत रहने वाला समाज सभी सुख सुविधाएं प्राप्त करता है। 

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डर के आगे ही जीत नहीं है बलिक डर के ऊपर, नीचे, दाएं बाएं, अडोस पडोस में सफलता के झंडे लहरा रहे हैं। शासक और प्रशासक मुस्कुराते हुए डराता है और प्रजा उसकी जय जयकार करती है, इस तरह दोनों की सकारात्मकता में बढ़ोतरी हो जाती है। डराने और डरने को सामाजिक स्वीकृति मिल जाती है। अब तो डराने के लिए नए रास्ते खोजे जा रहे हैं ताकि ताज़गी बरकरार रहे और डरने वाला इंतज़ार में रोमांचित रहे। अब यह पता नहीं चलता कि डराने वाला कौन सा नया इरादा इस्तेमाल कर ले, जैसे मनोरंजन के ठेकेदारों ने उन्मुक्त फ़िल्में और सिरीज़ बनाकर दर्शकों की नैतिकता को नए रोमांचक तरीकों से डराना शुरू कर दिया है। 

हंसाने का कारोबार शबाब पर है लेकिन हंसने हंसाने वालों को शायद पता न हो कि मानव शरीर और मन को सहज स्थिति में लाने में हंसने से ज्यादा रोना कारगर माना गया है। रोना अवश्य ही डरने से आगे की स्थिति है। डराना अब सामाजिक, नैतिक, धार्मिक, राजनैतिक व आर्थिक व्यवसाय है और जो व्यक्ति इन माध्यमों से नहीं डरता उसे ताक़त, गाली, नफरत, गोली या शब्दों से ही अच्छा खासा डराने का प्रयास किया जाता है और डरा भी दिया जाता है। सफल और संतुष्ट जीवन के लिए डरना ज़रूरी है।    

- संतोष उत्सुक

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