सरकारी नौकरी की यादें (व्यंग्य)
लालपरी का इंतजाम नाम देव ने अपने फौजी चाचा के माध्यम से निरंतर कर रखा था। उन्होंने अपने बॉस की पत्नी को भी कैन्टीन का सस्ता सामान बार बार दिला दिला कर पूरी तरह से वश में किया हुआ था...
नाम देव को रिटायर होने में दो महीने बचे थे। उन्होंने अपनी शेष छुट्टियों का हिसाब किताब कर लिया था कि उन्हें छुट्टियों के एवज़ में कितने हज़ार रुपए मिलने वाले हैं। आखिर उन्होंने बहुत जतन से बहुत प्यारी छुट्टियां बचाई थी। वे मंद मंद मुस्कुराते हुए, अक्सर खुद को गौरवमय महसूस करते हुए याद करते थे कि कैसे वे एक महीने में दो या तीन बार ही ठीक समय पर दफ्तर पहुंचते थे। अपने निजी व घरेलू काम वे भागते भागते देर से पहुंचकर या आराम से जल्दी निकलकर निबटा दिया करते थे। दिन में आयोजित होने वाले किसी भी स्थानीय या कुछ दूर होने वाले विवाह में वह अवकाश लेकर शामिल नहीं हुए थे। उनकी इस कार्यशैली के कितने ही लोग कायल थे। सहकर्मियों के लिए तो वह प्रेरणा बन चुके थे, विशेषकर युवा कर्मचारियों के लिए। वे अपने इन्चार्ज को पटा रखते थे जो लालपरी के अधीन रहना पसंद करते थे।
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लालपरी का इंतजाम नाम देव ने अपने फौजी चाचा के माध्यम से निरंतर कर रखा था। उन्होंने अपने बॉस की पत्नी को भी कैन्टीन का सस्ता सामान बार बार दिला दिला कर पूरी तरह से वश में किया हुआ था। कितनी ही बार घूमने फिरने की सुविधा के तहत, नियम सख्त होने के बावजूद जानपहचान के टैक्सी ड्राइवर को पटाकर, नया जुगाड़ पैदाकर ज़रूरी कागजात जुटा लिया करते थे। जिससे स्पष्ट साबित होता था कि वे अपने नैतिक कर्तव्यों का पालन करते हुए, अपने बुजुर्ग मातापिता को साथ लेकर तीर्थ यात्रा कर आए हैं। हालांकि मातापिता उनके व्यवहार से तंग अक्सर गांव में रहते थे। नाम देव को नियमों की पूरी जानकारी व अच्छी समझ थी कि रिटायरमेंट से पहले अपनी व पत्नी की, पूरी मेडिकल जांच करवा लेनी चाहिए। कोई संभावित बड़ा ऑपरेशन या महंगा इलाज वगैरा निबटा लेना चाहिए क्यूंकि बाद में बिल भुगतान में पंगा हो सकता है। इसलिए उन्होंने अपना व पत्नी का पूरा असली मेडिकल चैकअप करवा कर शारीरिक चैसिस की छोटी-मोटी सारी मुरम्मत करवा ली थी। भगवान के आशीर्वाद से वह यहां वहां का खा पीकर भी चुस्त दुरूस्त थे। कार्यालय की परम्परा के अनुसार उन्होंने रिटायरमेंट के दिन प्रीतिभोज देना था। उन्होंने इसका उचित प्रबन्ध किया और उसी दिन अपनी धर्मपत्नी का जन्मदिन भी पहली बार मना डाला। इसका भी उन्हें बहुत फायदा हुआ। उनके परिचितों को शक तो हो रहा था मगर भाभीजी का बर्थडे था इसलिए चुपचाप खाया, खुशी-दुखी उपहार भी देना ही पड़ा।
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आखिर नाम देव रिटायर हो गए। पत्नी ने पूछा अब तो निठ्ठले हो गए हो दिन भर क्या करोगे, घर पर बैठे रहोगे क्या। नाम देव बोले अब मैं अपने अनुभवों से समाज सेवा शुरू करूंगा। समाज के परेशान बंदो को अच्छे ढंग से गाइड करूंगा कि सरकारी कामकाज कैसे करवाए जाते हैं। एक एक्टिव एनजीओ भी बनाउंगा उसमें कुछ लोगों को नौकरी दूंगा व सरकार व अन्य संस्थाओं से सहायता लेकर अपनी व जरूरतमंदों की सहायता करूंगा। हो सका तो किसी भी अखबार का संवाददाता बन जाउंगा ताकि बाकी ज़िंदगी का बस किराया भी बचे। नाम देव की पत्नी को सचमुच फख्र हो रहा था कि वह कितने कर्मठ इंसान की पत्नी है।
संतोष उत्सुक
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