व्यायाम और ध्यान (व्यंग्य)
आम लोग, नेताओं और अफसरों के साथ सामूहिक ध्यान और व्यायाम करेंगे तो सम्मानित महसूस करने का मौक़ा ज्यादा मिलेगा। आपकी तरफ से उनकी ओर जाने वाली सार्वजनिक शिकायतें कम हो जाएंगी। धीरे धीरे यह भूल जाएंगे कि तकनीक और कृत्रिम बुद्धि नौकरियां कम कर रही है।
व्यायाम और ध्यान करना बहुत अच्छी बात है। यह करके समय शांत और अच्छा व्यतीत होता है। पति पत्नी मिलकर करते हैं तो शांत रहते हैं, झगड़ा नहीं होता। गलत चीज़ों के लिए दौड़ भाग कम हो जाएगी और सही जगह ध्यान लगना शुरू हो जाएगा। शांत रहने की अच्छी आदत पड़ सकती है। ध्यान करते हुए एक दूसरे को देखने की भी ज़रूरत नहीं होती। सुबह उठने की अच्छी आदत पड़ जाएगी तो रात को जल्दी सोना शुरू हो सकता है।
सीमित सुविधाओं में रहने की आदत हो गई तो मन बेचैन नहीं रहा करेगा और विद्रोह करने और प्रतिक्रिया देने की भावना अंकुरित नहीं होगी। भावनात्मक रूप से शांति और स्थिरता मिलेगी। चेहरे पर मुस्कराहट खिली रहेगी। कोई कुछ कह देगा तो बुरा नहीं लगेगा यानी मन बुरा नहीं मानेगा। समाज में अच्छी इमेज बनेगी। मानसिक तौर पर फिट रहने के अवसर लगातार उपलब्ध होंगे। व्यक्ति अगर मानसिक तौर पर फिट हो जाए तो बुरे असामाजिक विचार दिमाग में प्रवेश नहीं करेंगे। टूटी सड़कें, पार्किंग, पानी की कमी, स्वास्थ्य सेवाएं, शिक्षा, प्रदूषण, पर्यावरण, भ्रष्टाचार इत्यादि बारे कुछ कहना नहीं चाहेंगे, शांत रहेंगे।
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आम लोग, नेताओं और अफसरों के साथ सामूहिक ध्यान और व्यायाम करेंगे तो सम्मानित महसूस करने का मौक़ा ज्यादा मिलेगा। आपकी तरफ से उनकी ओर जाने वाली सार्वजनिक शिकायतें कम हो जाएंगी। धीरे धीरे यह भूल जाएंगे कि तकनीक और कृत्रिम बुद्धि नौकरियां कम कर रही है। आत्मसम्मान जाग उठे, मेहनत करने की स्वप्रेरणा शरीर में प्रवेश हो जाए तो सरकारी योजनाओं से पंगु बने लोग मदद लेना बंद कर सकते हैं। व्यायाम और ध्यान कराने वाले कोचिंग सेंटर बढ़ सकते हैं। स्कूल स्तर पर व्यायाम गतिविधियां और प्रतियोगिताएं बढेंगी। ध्यान में बैठे बैठे, भूख लगना कम होते होते, ज्यादा देर तक भूखे रहने की आदत पड़ जाए तो भूख लगना बंद हो सकती है तो यह बहुत बड़ी सफलता होगी। भूख सहने की आदत पड़ जाए फिर तो सार्वजनिक खर्च कम होगा। इसे राष्ट्रहित में मान सकने में कोई हर्ज़ नहीं होगा ।
थोड़ी सी दिक्कत यही होगी कि यदि विशाल सार्वजनिक स्तर पर व्यायाम और ध्यान करना शुरू हो गया तो करेंगे कहां। दौड़ने भागने की जगह कम होती जा रही है और इसे तो वास्तविक रूप में ही करना पडेगा। डर लगता है ऐसा हो गया तो समोसे, जंकफूड और मिठाई की दुकानों का क्या होगा। गाड़ियों और मोबाइल की बिक्री भी नीचे आ सकती हैं। तन स्वस्थ होते होते, मन ज़्यादा स्वस्थ हो गया तो कहीं विद्रोह न कर बैठे। कहीं सार्वजनिक जीवन में पारदर्शिता न मांगने लगे। हर अच्छे बदलाव के साथ सामान्य खतरा तो होता ही है। वैसे व्यायाम और ध्यान करना बहुत अच्छी बात है।
- संतोष उत्सुक
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