दीपावली..... दिल से (व्यंग्य)
प्रशंसनीय यह है कि वे बात महान परम्पराओं, शिक्षायुक्त शास्त्रों की करते हैं। ज्ञान की व्याख्या के निजी स्नानागार में स्नान कर, अपनी पताका लहराते हैं। सोशल और एंटी सोशल मीडिया पर भी जोर जोर से बताते हैं।
कई बार घोषणा होती है, फलां त्योहार दो दिन मनाया जाएगा। ऐसी घोषणा करने वाले अधिकृत लोग होते हैं लेकिन आम जनता को पता चलता है तो असमंजस की घास उगने लगती है। सरकारी कर्मचारियों को छुट्टी एक ही मिलती है और त्योहार दो दिन। किस दिन का मुहर्त बेहतर होगा कि पूजा पाठ का उचित लाभ परिवार को मिल सके। त्योहार की व्यस्तता में अव्यवस्था होने लगती है। अमरीका से पूछते हैं कब मनाओगे दीपावली, कहेंगे, देखते हैं कब मनेगी। वैसे तो अगर कोई उत्सव दो दिन का हो तो सभी का फायदा है जिस दिन चाहे मना लो।
भ्रम फैलाती घोषणा के बाद समाज के गतिविधि नियंत्रक शुरू हो जाते हैं। सैंकड़ों लोग यही बताना शुरू कर देंगे कि दीपावली कब मनाएं, इस दिन ही मनाएं, उस दिन न मनाएं। उनकी आपसी बहस शुरू हो जाती है। बड़े बड़े चैनल्स पर बड़े और महान विद्वानों व धर्माचार्यों को डिजिटल स्टूडियो में सजाकर संजीदा आकर्षक विमर्श किया जाता है। चमकते वस्त्र और दमकते चेहरे, डिज़ाइनर, आधुनिक मेकअप में लिपटे होते हैं।
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प्रशंसनीय यह है कि वे बात महान परम्पराओं, शिक्षायुक्त शास्त्रों की करते हैं। ज्ञान की व्याख्या के निजी स्नानागार में स्नान कर, अपनी पताका लहराते हैं। सोशल और एंटी सोशल मीडिया पर भी जोर जोर से बताते हैं। शास्त्रों के सिरहाने बैठकर अधिकार से कहते हैं कि हम ज्ञानी हैं, हमारी बात सही है, इसलिए हमारी बात मानी जाए। इतने विश्वगुरु हैं तो विचारों में एका मुश्किल से होता है फिर सुविधानुसार सब संपन्न हो लेता है ।
बताने वालों को पहले पता नहीं चलता। शायद उनके पास समय नहीं होता कि पहले ही उचित घोषणा करें कि किस दिन मनेगी दीपावली। सन्दर्भ पुस्तकें जिनसे यह प्रकांड लोग मुहर्त का समय इत्यादि देखते हैं गुम हो जाती होंगी। जब आम जनता परेशान होने लगे तब उन्हें ढूंढना और पढना शुरू करते होंगे। ऐसा भी हो सकता है कि नेताओं और अफसरों की तरह इन्हें भी आम जनता को परेशान करने में मज़ा आता है। बाज़ार तो चाहता है कि दीपावली दो दिन नहीं नौ दिन हो। दिल और जेब खोलकर मनाई जाए दीपावली। उनके लिए दीपावली का अर्थ धार्मिक उत्सव नहीं बल्कि आर्थिक उत्सव होता है।
वास्तव में दुनियाभर का उत्सव है दीपावली इसलिए समय और मुहर्त से परे है। जब भारत में शाम होगी तो किसी दूसरे देश में आधी रात या अगले दिन का ब्रह्ममुहर्त हो रहा होगा। दीपावली के उत्सव कई कई दिन पहले शुरू हो जाते हैं और अलग अलग शहरों और क्षेत्रों में अलग अलग तिथियों में मनाए जाते हैं। स्कूल और दफ्तर वाले दीपावली से पहले दीपावली मना लेते हैं। असली दीपावली तो तब होती है जब परिवारजन मिल लेते हैं। कई बार सोचता हूं शास्त्रों को शस्त्र की मानिंद क्यूं प्रयोग करने लगते हैं।
- संतोष उत्सुक
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