Book Review: 'कर्म-निर्णय' से आता है जीवन-जगत में निखार
उल्लेखनीय है कि कर्म-निर्णय नामक इस कृति का पहला प्रकरण कर्म है, बोलचाल की भाषा में कर्म का अर्थ क्रिया होता है। किसी भी प्राणी को किसी प्रकार का कष्ट पहुंचाए बिना शारीरिक, मानसिक तथा भावनात्मक रूप से स्वयं को स्वस्थ रखना, वस्तुतः इंसान का यही वास्तविक कर्म है।
डॉ दिनेश चंद्र सिंह, आईएएस, सम्प्रति जिलाधिकारी, सहारनपुर जनपद की मौजूदा प्रेरणास्पद और पठनीय कृति 'कर्म- निर्णय' का अवलोकन किया। डॉ सिंह हमारे जिले बहराइच के बहुत ही लोकप्रिय जिलाधिकारी रहे हैं। "ज्ञातव्य है कि इस दुनिया में कुछ लोग जन्म से महान होते हैं, कुछ लोग कार्य व्यवहार और संस्कार से महानता अर्जित करते हैं और कुछ पर महानता थोप दी जाती है।" डॉ दिनेश चंद्र सिंह ने अपने कार्य, व्यवहार, श्रम, संघर्ष और संस्कार से तपकर पद और प्रतिष्ठा अर्जित की है।
योग्यता एक संभावित शक्ति है जो उत्कृष्ट नजरिये से उद्भूत होती है। फुर्तीले स्वभाव एवं हमेशा चुस्त-दुरुस्त रहने वाले डॉक्टर सिंह एक सुयोग्य, धैर्यवान, कर्तव्यनिष्ठ, हरदिलअज़ीज़ और उत्साही अधिकारी के रूप में सदैव स्मरणीय रहेंगे। यदि अपना सब कुछ खो जाए और केवल धैर्य ही बचा रहा तो अकेले धैर्य से ही खोया हुआ सब कुछ पुनः हासिल किया जा सकता है।
Success is a journey, not a destination. It requires constant efforts, vigilance and reevatuation.- Mark Twain.(सक्सेस इज ए जर्नी, नॉट ए डेस्टिनेशन। इट रिक्वायर्स कांस्टेंट एफर्ट्स, विजिलेंस एंड रिवेचुएशन।- मार्क ट्वेन) मार्क ट्वेन की यह अवधारणा डॉक्टर सिंह की कार्य संस्कृति में चरितार्थ होती है। आपके हर कार्य के सार्थक और लोकहितकारी परिणाम होते हैं। सृजनात्मक उपलब्धि के लिए बदलाव जरूरी है।
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डॉक्टर दिनेश चंद्र सिंह, आईएएस हर कार्य पॉजिटिव एटीट्यूड और जुनून की भावना से करते हैं। उनकी कार्य संस्कृति वर्तमान और भविष्य की समस्याओं, जरूरतों और परिवर्तनों की प्रत्याशा पर आधारित होती है। दुष्यंत कुमार की निम्नवत पंक्तियों में डॉ सिंह की सोंच प्रतिबिंबित होती है- सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं, मेरी कोशिश है कि यह सूरत बदलनी चाहिए। आप एक प्रोएक्टिव सोंच, स्वभाव और कार्य-संस्कृति के जिलाधिकारी हैं और समय से पूर्व ही परिस्थितियों के अनुसार सकारात्मक परिवर्तन के लिए प्रतिबद्ध रहते हैं। प्रोएक्टिव व्यक्ति सदैव सही वक्त पर सही फैसला लेता है।
उल्लेखनीय है कि कर्म-निर्णय नामक इस कृति का पहला प्रकरण कर्म है, बोलचाल की भाषा में कर्म का अर्थ क्रिया होता है। किसी भी प्राणी को किसी प्रकार का कष्ट पहुंचाए बिना शारीरिक, मानसिक तथा भावनात्मक रूप से स्वयं को स्वस्थ रखना, वस्तुतः इंसान का यही वास्तविक कर्म है। वैशेषिक दर्शन में इसका साधारण अर्थ- क्रिया, गति अथवा काम है। अन्य दर्शनों में यह एक आध्यात्मिक तत्व है, जिसको आत्मा संसार में वहन करती है।
इसी से शुभाशुभ कर्म फल प्राप्त होता है। इसी के आधार पर मनुष्य के जन्म-जन्मांतर की गति का निर्धारण होता है। "कर्म का भोग और भोग का कर्म" प्रकृति का चिर प्रचलित सिद्धांत है। कर्म तीन प्रकार के होते हैं- (1) प्रारब्ध कर्म, (2) संचित कर्म, (3) क्रियमाण कर्म। प्रारब्ध कर्म का अर्थ है, पूर्व जन्म अथवा पूर्व काल में किए हुए अच्छे या बुरे कर्म, जिसका फल वर्तमान काल में भोगा जा रहा है।क्रियमाण कर्म से ही संचित कर्म बनता है। संचित कर्म का एक अंश प्रारब्ध कर्म (भाग्य) के रूप में हमें मिलता है। वर्तमान काल में अच्छे-बुरे जो काम हम करते हैं, उसको क्रियमाण कर्म कहते हैं।
वहीं, पिछले जन्मों के सभी कार्य, मन में उठने वाले भाव व विचार आदि अवचेतन मन में संग्रहित रहते हैं। अवचेतन मन में शक्ति और स्मृतियों का असीमित भंडार संरक्षित रहता है। बचपन से अब तक के सारे अनुभव इसमें सुरक्षित रहते हैं। आदमी जीवन में जितने भी काम करता है, उसका मात्र 10 प्रतिशत मन और 90 प्रतिशत अवचेतन मन द्वारा संपन्न होता है। जिसके मन-मानस में प्रेम, सेवा, त्याग, श्रद्धा, संवेदना, पुरुषार्थ और परमार्थ के भाव तरंगित होते हैं, उसका जीवन प्रगतिशील, मंगलकारी, आनंदवर्धक और प्रेरणास्पद होता है। कृषक, अधिकारी, कर्मचारी, कलाकार, संगीतकार, कवि, वक्ता और लेखक आदि अपने अवचेतन मन से प्रेरित होकर ही अपने कार्य को आकार देते हैं।
वस्तुतः जो आदमी संकल्प के साथ जीता है, अवचेतन मन उसे संकल्प के अनुरुप मंजिल तक पहुंचाता है। आदर्श और अनुकरणीय जीवन मूल्यों की कल्पना अवचेतन मन में तरंगित होती है। इंसान का जीवन उसके विचारों से बनता है। कर्म फल का अर्थ भाग्यवाद नहीं है। मनुष्य केवल अतीत के कर्मफल से बंधा रहता है। वर्तमान में वह अपने कर्मों का चुनाव करने में स्वतंत्र है। इसी के द्वारा उसके भविष्य का निर्माण होता है। भक्तों को पूर्ण विश्वास रहता है कि भगवतकृपा से अतीत के कर्म भी नष्ट हो सकते हैं।
विश्व कर्म प्रधान है। कर्म का संस्कार ही मानव की मूल-शक्ति है। इसी के अनुसार मनुष्य के भाग्य का निर्माण होता है। महाभारत के अनुसार कर्म संस्कार प्रत्येक अवस्था में जीव के साथ रहता है। जीव पूर्व जन्म में जैसा कर्म करता है, मौजूदा जन्म में वैसा ही फल भोगता है। अपने प्रारब्ध कर्म का भोग उसे माता के गर्भ से ही करना होता है। कर्म के अनुसार ही उच्च या निम्न वर्ग में जीव का जन्म होता है।
कल्पना से विचार, विचार से कर्म, कर्म से आदत, आदत से चरित्र और चरित्र से प्रारब्ध का निर्माण होता है। वस्तुतः आदमी के कार्य उसके दृष्टिकोण पर आधारित होते हैं। कार्य ही व्यक्ति के व्यक्तित्व का निर्धारण करते हैं। सारा ज्ञान व्यर्थ है यदि कर्म न हो। कर्मयुक्त जीवन दर्शन ही वरेण्य है। एक चर्चित फ्रेज है- "Actions speak louder than words." (एक्शन्स स्पीक लाउडर देन वर्ड्स।) टीमवर्क अधिक प्रभावी होता है। इससे एक समूह में काम करने, ज्ञान और विचारों के साझा करने से कार्यकुशलता और बहुआयामी उपलब्धि हासिल करने की संभावनाएं बहुत बढ़ जाती है।
जिलाधिकारी डॉक्टर दिनेश चंद्र सिंह की टीम स्पिरिट बेमिसाल है। जो भी आदमी, अधिकारी व कर्मचारी अपने श्रेष्ठ अवदान, रचनात्मक और श्रेष्ठ कार्यों से लोकहित के काम करता है, उसे समाज कभी नहीं भूलता। उसके कार्य सदैव उसका स्मरण कराते रहते हैं। कर्महीन जीवन दर्शन बांझ बीज के समान थोथा और बेकार होता है।
ठीक ही कहा गया है- पर कहता है अस्तित्व जिसे संसार सकल, उसकी सत्ता तो सचमुच एक भुलावा है।
कर्ता का नहीं जन्म कृति का ही होता है, केवल कृतित्व ही जगजीवन का पहनावा है।।- नीरज
वहीं, कबीर साहेब का अनुकरणीय संदेश है- कबीरा जब हम पैदा हुए जग हंसे हम रोए, ऐसी करनी कर चलो, हम हंसें जग रोए।
इस कृति में 'निर्णय' को सफलता की जननी बताया गया है। समस्या समाधान के लिए मौजूद अनेक विकल्पों में सर्वश्रेष्ठ विकल्प का चयन करना चाहिए। सामान्य और विषम परिस्थिति में आवश्यकता और समय की मांग के अनुरूप निर्णय लिया जाना चाहिए। क्योंकि विलंब से लिए गए निर्णय प्राय: फलीभूत नहीं होते। लोकोक्ति है- का वर्षा जब कृषि सुखाने। समय चूंकि पुनि का पछताने। डीएम डॉ दिनेश चंद्र सिंह प्रत्युतपन्नमति (एबिलिटी टू थिंक क्विकली इन डिफिकल्ट सिचुएशन) वाले अधिकारी हैं। आप परिस्थिति के अनुकूल प्रोएक्टिवली कार्य करते हुए समस्या का निदान प्रस्तुत करते हैं।
'सूरते हाल बाढ़ आपदा और सनातन संस्कार' प्रकरण में डॉक्टर दिनेश चन्द्र सिंह जी ने बाढ़ की भीषण त्रासदी के शिकार लोगों के बीच नाव में पहुंचकर राहत सामग्री वितरण के दौरान संपर्क में आए ग्रामीणों के व्यवहार, परिवेश और उनके सनातन संस्कारों का इस कृति में बड़ा ही जीवंत चित्रण किया है। 10 अक्टूबर 2022 को प्रातः 11:00 बजे जिलाधिकारी डॉ दिनेश चंद्र सिंह, पुलिस अधीक्षक केशव कुमार चौधरी, विधायक नानपारा आदि के साथ एनडीआरएफ की नावों पर सवार होकर शिवपुर ब्लाक से 20 किलोमीटर दूर कौड़िया ग्राम पहुंचे। जहां ब्राह्मण बाहुल्य यह गांव तीन बार बाढ़ से तबाह हो चुका था।
इसी गांव के राजेंद्र मिश्रा के घर के दोनों ओर नावें लगा दी गई। धर्म और संस्कृति के श्रद्धालु अनुरागी गांव वालों के दुर्लभ आतिथ्य भाव को देख देखकर सभी अधिकारी व कर्मचारी अभिभूत हो उठे। राहत सामग्री वितरित करने के दौरान निशा पांडे और बलराम पांडे का आतिथ्य और आश्रम "अतिथि देवो भव" की परंपरा का स्मरण करता है।
इस साहसिक अभियान के दौरान एक स्थान पर दीन भाव और आशा भरी अपेक्षा के साथ निहार रही एक यतीम महिला डीएम साहब के हाथ से तिरपाल, बिस्कुट और राहत सामग्री पाकर बहुत आनंदित हुई। कतिपय सर्वाधिक त्रस्त लोगों की निजी मदद करके डीएम साहब ने सराहनीय सदाशयता का परिचय दिया।
आपने तहसील मिहींपुरवा (मोतीपुर) और तहसील नानपारा के अंतर्गत क्रमशः 550 व 1400 प्रभावित लोगों को राशन किट प्रदान किए। वहीं, मुख्यमंत्री के निर्देश पर 19 अक्टूबर 2022 को डीएम डॉ. दिनेश चंद्र सिंह दल-बल के साथ भरथापुर के लिए रवाना हुए। दुरुह और दुर्गम मार्ग दलदली और कष्ट साध्य था। कतर्नियाघाट वन्य जीव अभ्यारण और गेरुआ नदी की सीमा क्षेत्र में यह गांव आबाद था। यह क्षेत्र दुर्लभ वनस्पतियों और अनंत जैव विविधता की अनुपम मिसाल है। रास्ते में हिंसक पशुओं के आक्रमण का सदैव खतरा बना रहता है। तीन-चार किलोमीटर नंगे पांव चलकर नाव से गेरुआ नदी पार करने के बाद 19 व 20 अक्टूबर 2022 को 70 और 50 राहत किट पहुंचाई गई।
वहीं, 23 अक्टूबर 2022 को पुन: दीपावली के दिन ड्राई राशन किटों का वितरण किया गया। पूरे अभियान में डीएम साहब के साथ पुलिस अधीक्षक केशव कुमार चौधरी और अन्य अधिकारी व कर्मचारी साथ में थे। एसएसबी चौकी भरथापुर का भी सहयोग प्राप्त हुआ। संभवत: डॉक्टर दिनेश चंद्र सिंह बहराइच के पहले ऐसे जिलाधिकारी थे जिन्होंने लोकहित में जान को जोखिम में डालकर ग्रामीणों को राहत पहुंचाई, जिससे उनकी दिवाली रोशन हो सकी। ठीक ही कहा गया है- "सेवा परमो धर्म:।" "नर सेवा नारायण सेवा।"
उदारतापूर्वक जन सेवा से डीएम साहब ने कल्पनातीत लोकप्रियता अर्जित की। ठीक ही कहा गया है- जनता के हाथों लगता है जिसे ज्योति का टीका, उसी भाग्यशाली को मिलता आशीर्वाद माही का। जिलाधिकारी महोदय दौरे के दौरान गांव के पशुओं विशेष कर गायों को देखकर बहुत ही प्रभावित हुए थे। हिंदू धर्म में गौ को माता की संज्ञा दी गई है। "गावो विश्वस्य मातर:" यानी गाय विश्व का माता है। गौ, गंगा, गायत्री को हिंदू संस्कृति का पावन प्रतीक माना गया है।
डॉक्टर गौरी शंकर माहेश्वरी के अनुसार- There is a track record where this only cow was included for all good activities. Without refrence of cow no function and ceremony was ever performed. It was given status of mother. Infact it is a moving hospital, a treasure of medicine and complite nourishing diet supplier through milk. (देयर इज ए ट्रैक रिकॉर्ड व्हेयर दिस ओनली काऊ वाज इंक्लूडेड फॉर ऑल गुड एक्टिविटीज। विदाउट रेफरेंस ऑफ काऊ नो फंक्शन एंड सेरिमनी वाज एवर परफॉर्मेड। इट वाज गिवेन स्टेटस ऑफ मदर। इनफैक्ट इट इज ए मूविंग हॉस्पिटल, ए ट्रेजर ऑफ मेडिसिन एंड कंपलीट नरसिंह डायट सप्लायर ट्रू मिल्क।)
वाकई, देशी गाय से प्राप्त पंचगव्य- (1) दूध, (2) दही, (3) घी, (4) मूत्र और (5) गोबर- कई प्रकार के उपचारात्मक गुणों से परिपूर्ण हैं। आयुर्वेद में गौ मूत्र को संजीवनी कहा गया है। गौवंश के श्रद्धालु अनुरागी डॉ दिनेश चंद्र सिंह ने उनकी भूख मिटाने के लिए बहराइच में नेपियर घास लगाने हेतु व्यापक पैमाने पर प्रचार-प्रसार किया। डॉक्टर दिनेश चंद्र सिंह जी के अनुसार, गौवंश का संरक्षण और संवर्द्धन लोकहित में अपरिहार्य है। नेपियर घास को बड़े पैमाने पर उगाकर चारे की किल्लत दूर की जा सकती है। नेपियर हाइब्रिड घास सबसे पहले 1952 में अफ्रीका में उगाई गई थी। डॉक्टर सिंह के प्रयास और प्रोत्साहन से जून 2021 में बहराइच जिले के 100 एकड़ क्षेत्र में यह घास लगाई गई।
डॉ दिनेश चंद्र सिंह को चुनाव (लोकसभा, विधानसभा, ग्राम पंचायत) को सुचारू रूप से संपन्न कराने हेतु प्रशंसनीय प्रबंधन और उल्लेखनीय योगदान के लिए कई बार बड़े पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। वस्तुतः संविधान भारत की आत्मा और मतदान लोकतंत्र का महापर्व है। आपने इस कृति में युवाओं को प्रेरित करते हुए बताया है कि धैर्य, संकल्प और कठोर परिश्रम के साथ पढ़ाई करने वाले छात्र कभी असफल नहीं होते। विल पावर के बिना स्किल पावर निरर्थक है। इस संसार में इच्छाशक्ति, कठोर श्रम और प्रोएक्टिव सोंच से सब कुछ हासिल किया जा सकता है। दिनकर जी के मतानुसार- पीसा जाता जब इक्षुदंड, झरती रस की धारा अखंड। मेहंदी सहती है जब प्रहार बनती ललनाओं का सिंगार (श्रृंगार)।। वस्तुतः "पंख से कुछ नहीं होता सिर्फ हौसलों से उड़ान होती है।"
इस कृति के आठवें अध्याय में डॉक्टर दिनेश चंद्र सिंह, आईएएस ने लिव-इन-रिलेशनशिप की प्रचलित परंपरा को अमर्यादित, अशोभनीय और अस्वीकार्य बताया है। अपने कथन की पुष्टि में कर्ण का उदाहरण देते हुए उन्होंने बताना चाहा है कि किस तरह से कर्ण जैसे कालजयी योद्धा को अपनी पहचान के अभाव में कई बार अपमानित होना पड़ा। अनुसुइया, सीता, सावित्री, दमयंती और मदालसा के देश में यह प्रथा अपनी विश्व वरेण्य पवित्र वैवाहिक परंपरा पर कुठाराघात के समान है। भारत में पैर पसार रही इस कुप्रथा के विरुद्ध लोक जागरण द्वारा आवाज बुलंद करने की आवश्यकता है।
इस कृति के नवें खंड में कतर्नियाघाट वन्य जीव अभ्यारण की नयनाभिराम वनस्पतियों, रमणीय और मनोहारी दृश्यों एवं दुर्लभ जैव विविधता का विहंगावलोकन कराया गया है। नेपाल से निकलने वाली निर्मल जल से परिपूर्ण गेरुआ और कौड़ियाला नदियों और वन्यजीवों से गुलजार यह अभ्यारण 551 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में विस्तृत है। इन नदियों का अमृतमयी शुद्ध जल औषधीय गुणों से युक्त है। कई वर्ष पहले गेरुआ नदी में 6 मीटर लंबा देश का सबसे बड़ा घड़ियाल पाया गया था। इसमें चीतल, हिरण, बारहसिंहा, काकड़, सांभर, पाढ़ा, तेंदुआ, बाघ, मगरमच्छ, अनेक प्रकार की मछलियां, जंगली हाथी, गैंडा आदि के साथ-साथ 15,000 प्रकार के रंग-बिरंगे पक्षी पाए जाते हैं। इस अक्षत वन में साखू, सागौन, शीशम, बेंत आदि अनेक प्रकार के वृक्ष और लताएं पाई जाती हैं।
डॉक्टर सिंह के अनुसार यहां के रमणीय जंगल, डॉल्फिन सहित अनेक दुर्लभ मछलियों और घड़ियाल-मगरमच्छ की पोषक गेरुआ का विमल जल और अनुपम प्राकृतिक दृश्य मन को आनंदित कर नव उमंग, नव उल्लास और नव स्फूर्ति का संचार कर मस्तिष्क को शांत और तनाव मुक्त कर देते हैं। पहले का आदमी प्रकृति का उपासक था। कालांतर में वह प्रकृति का सहचर बन गया। विज्ञान और तकनीक में निष्णात मानव प्रकृति का विनाशक बन गया। आज का मानव विकास के नाम पर प्रकृति का शोषण कर पोषणीय विकास की मान्यताओं के विपरीत कार्य कर रहा है। वन संपदा और जैव विविधता का विनाश कर वर्तमान युग का आदमी प्रकृति का विजेता बनने का दम भर रहा है।
आज प्रकृति की आत्मा चीत्कार कर रही है। इसके बड़े ही अनिष्टकारी परिणाम संभावित है। ठीक ही कहा गया है- करती है विद्रोह प्रकृति जब होकर अधीर,
आदमी स्वयं तब अपनी मौत बुलाता है।
जब बल अमजमाता है निज पौरुष निर्बल पर,
तब उसका ही निर्माण उसे खा जाता है।।
सघन वृक्षारोपण और पोषणीय विकास के सिद्धांतों पर अमल कर हम प्रकृति की कृपा प्राप्त कर सकते हैं।
डॉक्टर दिनेश चंद्र सिंह, आईएएस, त्योहारों को इको फ्रेंडली मनाने के पक्षधर हैं। दीपावली में आतिशबाजी, बारूद से बने विस्फोटक पटाखे और गोले आदि के प्रयोग से वायु प्रदूषण होता है। होली में केमिकल रंगों के स्थान पर प्राकृतिक रंगों का प्रयोग होना चाहिए। वस्तुत: जीवन के हर क्षेत्र में वही सफल होते हैं- "जिनके हाथों में शक्ति, पैरों में गति, हृदय में ऊर्जा और आंखों में सपने होते हैं।" एतरेय ब्राह्मण के सृजेता महिदास एतरेय ने निम्नवत मंत्र वाक्य के माध्यम से निरंतर चलते रहने का संदेश दिया था- "चरैवेति चरैवेति अभ्यंकर मंत्र है अपना। नहीं रुकना नहीं थकना, सतत् चलना सतत् चलना।"
डॉक्टर सिंह, आईएएस, हर काम अपने अंदाज में अलग ढंग से करते हैं। घिसी-पिटी लीक पर भीड़ के साथ चलने वाला व्यक्ति भले ही देर-सबेर मंजिल प्राप्त कर ले, पर भीड़ आदमी की पहचान छीन लेती है। "ज्ञातव्य है कि पहले मृतकों के वारिसों को वरासत दर्ज कराने में तहसील के महीनों चक्कर लगाने पड़ते थे। आपने जिलाधिकारी बहराइच के रूप में वरासत दर्ज कराने के अपने अभिनव प्रयास को मूर्त रूप देते हुए वर्ष 2021-22 में ऑनलाइन प्राप्त 35,394 आवेदन पत्रों में से 31513 आवेदन पत्र अविवादित घोषित करते हुए उनके उत्तराधिकारियों का नाम खतौनी में दर्ज करवा दिया। इस उल्लेखनीय जनहित कार्य के लिए मुख्य सचिव दुर्गाशंकर मिश्र ने उनकी सराहना करते हुए वरासत दर्ज कराने के बहराइच मॉडल को प्रदेश के अन्य जिलों में भी लागू करने के निर्देश जारी कर दिए। ज्ञातव्य है कि ऑनलाइन आवेदन मिलते ही तत्काल उसकी जांच लेखपाल से कराई जाती है। केवल 24 घंटे में ही रिपोर्ट तलब कर अभिलेखों में दर्ज करा लिया जाता है। कुछ मामलों में एक सप्ताह तक, वही कछ मामलों में कुछ ही घंटे में निस्तारण कर खतौनी वारिस को दे दी जाती है।" - कमलेश पांडे, राजनैतिकदुनिया डॉट कॉम।
बहराइच एक सनातन कालीन जिला है। ब्रह्माजी द्वारा आबाद इस जिले को पहले ब्रह्माइच के नाम से पुकारा जाता था। बहराइच, ब्रह्माइच का अपभ्रंश है। बहराइच का गंधर्व वन ब्रह्मा जी द्वारा तैयार कराया गया था। ब्रह्मा जी के मार्गदर्शन में यहीं पर ब्रह्मर्षियों द्वारा विराट यज्ञ संपन्न हुआ था। यहीं पर ऋषि-मुनियों की एक बड़ी सभा को ब्रह्मा जी ने संबोधित किया था। वहीं चितौरा (बहराइच) झील के तट पर ही तत्ववेत्ता अष्टावक्र जी का आश्रम था। वनवास काल में पांच पांडव मां कुंती के साथ यहां पधारे थे। बहराइच स्थित जंगलीनाथ, सिद्धनाथ, दूधनाथ, शंभूनाथ पंचरूनाथ और पृथ्वीनाथ (गोंडा-बहराइच की सरहद पर) मंदिर पांडवों द्वारा निर्मित थे।
वहीं, झाली धाम से थोड़ी दूरी पर एकचक्रा नगरी थी, जहां पांडवों ने वनवास काल में निवास किया था। गुप्त युग के शासक नरसिंह गुप्त (बालादित्य-495 ए.डी. से 530 ए.डी.) ने बालार्क आश्रम और सूर्यकुंड के पास एक रमणीक सरोवर का निर्माण कराया था। इस गुप्त नरेश के द्वारा ही बालादित्य नगर आबाद कराया गया था, जो कालांतर में बहराइच कहलाया। कतिपय विद्वानों के अनुसार, शुक्राचार्य द्वारा निर्मित अमृत कुंड ही सूर्य कुंड के नाम से जाना गया। सूर्य कुंड में स्नान करने वाले कोढ़ी को निर्मल काया, रोगी को सुंदर स्वास्थ्य और बांझ स्त्री को पुत्र रत्न की प्राप्ति होती थी। संत तुलसी ने भी दोहावली में उल्लेख किया है- "लही आंख कब आंधरो, बांझ पूत कब जाए। कब कोढ़ी काया लई, जग बहराइच जाए।"
बहराइच पर सूर्यवंशी नरेशों, गुप्त सम्राटों, थारूओं और भरों का शासन रहा है। बहराइच का पुनर्निर्माण कराकर भर राजाओं ने इसे अपनी राजधानी का दर्जा दिया था। भरों द्वारा शासित बहराइच जिला पहले भड़राइच, भर्राईच और अंततः बहराइच के नाम से जाना गया। सरयू नदी के तट पर आबाद बहराइच अपनी विशालता और मनमोहक रचना के लिए इतिहासकारों द्वारा सराहा गया है।
बहराइच के इतिहास पर दृष्टिपात करें तो 14 जून 1034 को चितौरा झील के तट पर महाराजा सुहेलदेव और सैयद सालार मसूद गाजी के बीच हुए महाभीषण संग्राम में महाराजा सुहेलदेव व उनके सैनिकों द्वारा सैयद सालार मसूद गाजी सहित उसकी संपूर्ण सेना मौत के घाट उतार दी गई थी। इस युद्ध में गजनी, काबुल और ईरान से आए सभी सैनिक मारे गए। दो खादिमों को छोड़कर कोई भी नहीं बच पाया। बहराइच मजारों का शहर बन गया। इस युद्ध के डेढ़ सौ वर्ष बाद तक तुर्क भारत की ओर देखने का साहस नहीं जुटा सके।
हालांकि, 1226 में सुल्तान नासिरुद्दीन बहराइच का सूबेदार बना। इसने 1,20,000 भरों को मौत के घाट उतार कर बहराइच पर अपना आधिपत्य स्थापित किया। बलबन और मोहम्मद बिन तुगलक का भी बहराइच आगमन हुआ था। 1340 में मोहम्मद तुगलक ने सैय्यदों को माफी भूमि की सनदें देकर बहराइच में जागीरदारी प्रथा की शुरुआत की। फिरोजशाह तुगलक (1351-1388 ईस्वी) दो बार बहराइच आया था। इसी ने सैय्यद सालार गाजी की भव्य मजार और दरगाह का बाउंड्रीवॉल बनवाया था।
बता दें कि सैय्यद सालार गाजी ने दारुल हर्ब (गैर इस्लामिक राष्ट्र भारत) को दारुल इस्लाम (इस्लामिक राष्ट्र) बनाने के मंसूबे से भारत पर आक्रमण किया। सतरिख (बाराबंकी) में कभी एक सौ ऋषियों के आश्रम थे, जिन्हें ध्वस्त कर उसने वहां सेना की बड़ी छावनी बनाई थी।
ज्ञातव्य है कि फिरोजशाह तुगलक के बहराइच दौरे के समय उसके रिसालदार बरियार का भी आगमन हुआ था। कालांतर में बरियार शाह ने ही इकौना में जनवार रियासत की स्थापना की थी। बरियार शाह मूलत: पावागढ़ गुजरात के एक बहादुर योद्धा थे। बौंडी, चहलारी, रेहुआ आदि रैकवार रियासतें थीं। इकौना, पयागपुर, गंगवल, चरदा और बलरामपुर जनवार रियासतें थी। आजादी की लड़ाई (1857 का स्वातंत्र्य समर) में इकौना के राजा उदित प्रकाश सिंह, चरदा के राजा जगजोत सिंह और वीरता की अप्रतिम मिसाल महाराजा बलभद्र सिंह ने अवध की अंतिम लड़ाई का सेनापतित्व किया था। सिर कट जाने के बाद भी उनके हाथ 1 घंटे तक तलवार चलाते रहे।
इस कृति के संपादक कमलेश पांडे, वरिष्ठ पत्रकार ने कतर्नियाघाट वन्य जीव अभ्यारण की वनस्पतियों और दुर्लभ जैव विविधता का जीवंत चित्रण किया है। वरिष्ठ पत्रकार और मनीषी लेखक कमलेश पांडे ने बहराइच की कृषि, उद्योग, विकास योजनाओं, शिक्षा, वन संपदा और स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति का भी उल्लेख किया है। अंततः बहराइच के अत्यंत लोकप्रिय जिलाधिकारी रहे डॉक्टर दिनेश चंद्र सिंह की कृति 'कर्म-निर्णय' के लेखन के लिए उन्हें साधुवाद देते हुए आशा भरी अपेक्षा करता हूं कि यह आकृति लोकप्रिय और प्रेरणास्पद सिद्ध होगी।
पुस्तक का नाम: कर्म निर्णय
प्रकाशक का नाम: नगीन प्रकाशन
पुस्तक का मूल्य: 299/- (पेपर बैक)
पुस्तक का कुल पृष्ठ: 170 (कवर सहित)
लेखक का नाम: डॉ दिनेश चंद्र सिंह, आईएएस
संपादक का नाम: कमलेश पांडेय, एम. ए.
- परमेश्वर सिंह
समीक्षक
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