उपहारों का उत्सव (व्यंग्य)
त्योहारों के दिनों में आम तौर पर मिठाई देने का प्रचलन रहा है। पारम्परिक मिठाई में सोन पापडी यानी बतीसा उपहार में इतनी दी जाती है कि इसका डिब्बा खोला भी नहीं जाता, खाना दूर की बात, यह यहां से वहां की यात्राएं बहुत करती है।
उत्सवों के मौसम में किसी को भी दिए जाने वाले उपहार का चुनाव आपसी संबंधों और ख़ास तौर पर व्यवसायिक संबंधों के मद्देनज़र किया जाता है। यह बात दीगर है कि उपहार में अगर सोने की अंगूठी भी दे दी जाए तो उसके डिज़ाइन को सामान्य कह दिया जाएगा। अंगूठी का वज़न भी हल्का कह सकते हैं। अंगूठी ढीली या तंग तो रहेगी ही, नग भी नकली, बड़ा या छोटा माना जाएगा। सोने की अंगूठी के मामले में भी कह सकते हैं कि पैसा होते हुए भी लोगों को उपहार देना नहीं आता।
त्योहारों के दिनों में आम तौर पर मिठाई देने का प्रचलन रहा है। पारम्परिक मिठाई में सोन पापडी यानी बतीसा उपहार में इतनी दी जाती है कि इसका डिब्बा खोला भी नहीं जाता, खाना दूर की बात, यह यहां से वहां की यात्राएं बहुत करती है। उनका डिब्बा इनके, इनका जिनके और न जाने किसका किसके यहां पहुंच जाता है। कई बार अपना दिया हुआ पैक कई गलियां और रास्ते तय कर अपने ही घर लौट आता है।
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मिठाई के साथ आने वाले उपहार के मामले में कुछ घरों से आया पैकेट खोलकर देखा जाता है। पसंद न आने पर उसे तुरंत अपने घर से किसी और घर के लिए रवाना कर दिया जाता है। जिस व्यक्ति या संस्था के साथ व्यवसायिक रिश्ते सुफल बनाकर रखने होते हैं उन्हें सोच विचार कर बढ़िया और प्रभाव उगाऊ उपहार भेजे जाते हैं। सरकारें और कम्पनियां ऐसा ही करती हैं, आम लोगों द्वारा अदला बदली किए जाने वाले उपहारों की उनके सामने क्या बिसात। कई बार लोग पुराना या बड़े आकार का उपहार भी दे देते हैं जो खुद के लिए अवांछित हो। वे यह भी जानते और समझते हैं कि जिनको उपहार दे रहे हैं उनके लिए भी उपयोगी नहीं है फिर भी दे देते हैं। यह भी देखा गया है कि मिठाई के साथ कुछ लोग खुले मन से अपने सम्बन्धियों व परिचितों को बढ़िया उपयोगी चीज़ें, उपकरण या रसोई के बर्तन इत्यादि देते हैं और दूसरा पक्ष बिन कुछ विचारे उनके यहां कहीं से इस साल या कभी आया हुआ कुछ भी दे देते हैं । वरिष्ठ जनों को ऐसा उपहार दे दिया जाता है जो उनके लिए उपयुक्त नहीं होता। स्वाभाविक है बेहतर उपहार देने वाले को अच्छा नहीं लगता तब यह विचार पनपने लगता है कि सिर्फ खाने पीने की वस्तु ही उपहार स्वरूप क्यूं न दी जाए।
पैकिंग सामान के आकार से बड़ी और आकर्षक होती है। अंतर्राष्ट्रीय लुक नए भेस बदल कर आती रहती है। यह जानना दिलचस्प है चाकलेट बेचने वाली अंतर्राष्ट्रीय कंपनी अपने एक आकर्षक, जानदार पैक में, दो सौ तेतीस ग्राम चाकलेट, तीन सौ पचास रूपए में बेचती रही है, यानी एक ग्राम चाकलेट चखना हो तो एक रुपया पचास पैसे भुगतान करिए। पैकिंग ज़्यादा लाजवाब और जगह ख़ास हो तो वही चाकलेट और महंगी होती जाती है। कुछ उपहार देने वालों की इमेज ऐसी होती है कि अंदाज़ा लग जाता है कि बाहर से पैकिंग चाहे सामान्य हो अन्दर चीज़ बढ़िया होगी।
संयुक्त दीवार या परिवारिक ज़िंदगी के किसी और मसले पर रोज़ का झगड़ा होता है मगर खुशियों के दीप रोशन करवाने वाली दीवाली की शुभकामनाओं के दिखावे के लिए मिठाई के सामान्य पैक भेज दिए जाते हैं और उन्हें झूठी व्यंग्यात्मक मुस्कराहट के साथ बिना धन्यवाद किए भी लिया या दिया जाता है। उपहार में बहुत कुछ चलता है। दरअसल हम सब नंगे हैं, एक ही वाशरूम में नहाते हैं मगर मानते हैं सभी ने बढ़िया कपड़े पहने हैं।
- संतोष उत्सुक
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