बजट महाराज आयो रे (व्यंग्य)
बजट महाराज के आने के बाद गृहस्थ की मालकिन भी चौकन्नी हो गई है। उन्होंने सब्जी विक्रेता से कहा कि आप कई साल से मिट्टी लगे आलू, जड़ तक डंठल और मुरझाए पत्तों समेत गोभी, जड़ों समेत धनिया बेचते हो।
बजटजी आकर्षक महाराज होते हैं जिनके आने से पहले आम जनता रंगीन ख़्वाब देखती हैं और ख़ास जनता को पहले से पता होता है कि बजट महाराज की योजनाएं उनका खूब ध्यान रखेंगी। हर राजनीतिक पार्टी के आर्थिक विशेषज्ञ अपने अपने आकलन जारी करते हैं जैसे सभी आवश्यक उपाय कर दिए गए हैं निश्चित ही पुत्ररत्न होगा। अनेक बार जब बजट महाराज शायरी या झूठी मुस्कुराहटों में लपेटकर घोषणाएं करें तो बेचारे वायदे और निकम्मे आश्वासन फुदक फुदक कर ज़िंदगी की परेशान गोद में रोने लगते हैं। बजट महाराज और विकास महाराज एक दूसरे के व्यवसायिक, सामाजिक व राजनीतिक शुभचिन्तक होते हैं तभी वे इतनी निपुणता से अधिकांश बातें करते हैं जो आम जनता को जलेबी जैसी लगती हैं और जलेबी भी ऐसी जो दूर से मीठी और स्वादिष्ट लगे और खाओ तो कड़वी और मुशकिल से निगले जाने वाली। उनकी अधिकांश योजनाएं सब की समझ में आने वाली नहीं होती।
बजट महाराज के आने के बाद गृहस्थ की मालकिन भी चौकन्नी हो गई है। उन्होंने सब्जी विक्रेता से कहा कि आप कई साल से मिट्टी लगे आलू, जड़ तक डंठल और मुरझाए पत्तों समेत गोभी, जड़ों समेत धनिया बेचते हो। वह कुछ क्षण बाद बोला अब सब्जी ऐसी ही आती है और अब तो और महंगी होने वाली है, मैडमजी। हमने कहा तब तो दो सौ पचास ग्राम मटर खरीदा करेंगे। वह हंसने लगा बोला, हो गया न बजट का असर। दो चार हरी मिर्च मुफ्त मांगने की हिम्मत नहीं हुई वह किसी से कह रहा था मिर्च लाल होने वाली है। यह मानकर कि पति से कोई उलझ रहा है दुकान के पीछे से सब्ज़ीवाली ने आकर बातचीत में सॉलिड एंट्री मारी, बोली, हमने भी टप्पू नप्पू को पालना है, चार छ पैसा बचाना भी है। आप उनको समझाइए जो देस को सब्ज़ी समझकर काट रहे हैं खा रहे हैं।
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हमारी बनाई चाय पीते हुए पत्नी बोली, कोई नई बात नहीं है हर बजट आम लोगों के लिए एक सबक होता है। मटर कम आएगी तो क्या इससे मैं दो सब्जियां बनाया करूंगी। आलू मटर की पारम्परिक सब्ज़ी के साथ मटर के छिलकों को साफ काट धोकर प्याज मिक्स कर सूखी सब्ज़ी। गोभी और ब्रॉकली की सूखी सब्ज़ी बना, मोटे मोटे लंबे डंठलों में से नर्म हिस्सा निकाल, आलू डाल रसेदार सब्ज़ी और मुरझाए हुए पत्तों व बचे सख्त हिस्से को अच्छी तरह से साफ कर उबालकर सूप बना दूंगी। बेचारे मिडल क्लास लोग तो सपने बुनने और उधेड़ने के लिए ही पैदा होते हैं।
बजट महाराज के आने पर शासकों द्वारा इतराना और विपक्ष का शोर मचाना उनकी पारम्परिक लोकतान्त्रिक जिम्मेदारी है। आम जनता का नैतिक कर्तव्य हमेशा संयम बनाकर जीते रहना है। महाराज की सालाना सवारी आते ही ताली बजाना सभी का कर्तव्य है। वैसे, चुनावी मौसम में आए बजट महाराज सभी को लुभाने में माहिर माने जाते हैं। इस बार भी उन्होंने पधारकर खुशियों का जलवा बिखेरना शुरू कर दिया है, ऐसे में स्वास्थ्य का ध्यान रखना ज़रूरी है।
- संतोष उत्सुक
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