तेल उत्पादन के महासमझौते को आसान भाषा में समझें, कीमतों पर क्या पड़ेगा असर?
दुनिया में कच्चे तेल का सबसे बड़ा खरीदार चीन है। कोरोना वायरस संक्रमण की वजह से चीन बड़े स्तर पर प्रभावित हुआ है। यहां फैक्ट्रियां, आफिस और दुकानें पहले की तरह नहीं चल रही हैं। कई कंपनियों का प्रोडक्शन घट गया है।
शीर्ष तेल उत्पादक देशों ने कोरोना वायरस संकट और सऊदी अरब-रूस के बीच तेल की कीमतों पर यु्द्ध के चलते कच्चे तेल के दाम में आई गिरावट को थामने के लिए इसके उत्पादन में ‘‘ऐतिहासिक’’ कटौती करने पर सहमति जताई है। तेल उत्पादक देशों के संगठन ओपेक (ऑर्गेनाइज़ेन ऑफ द पेट्रोलियम एक्सपोर्टिंग कंट्रीज) और रूस की अगुवाई वाले अन्य तेल उत्पादक देशों के बीच बीते दिनों वीडियो कांफ्रेंस के जरिए उत्पादन में कटौती के लिए एक समझौता हुआ।
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जिसके बाद से ही कच्चे तेल की कीमतों में तेजी देखने को मिली। एशियाई बाजारों में अमेरिकी बेंचमार्क डब्ल्यूटीआई शुरुआती कारोबार के दौरान 7.7 प्रतिशत बढ़कर 24.52 डॉलर प्रति बैरल हो गया, जबकि ब्रेंट क्रूड पांच प्रतिशत की तेजी के साथ 33.08 डॉलर प्रति बैरल पर था।
सबसे पहले आपको बताते हैं कि क्या है ओपेक
ऑर्गेनाइज़ेन ऑफ द पेट्रोलियम एक्सपोर्टिंग कंट्रीज(ओपेक) पेट्रोलियम निर्यातक देशों का संगठन है। ओपेक की स्थापना 1960 में ईरान, ईराक, कुवैत, साउदी अरब और वेनेजुएला ने की थी। इसका मकसद अमेरिका और यूरोपीय तेल कंपनियों की ताकत और रसूख से तेल उत्पादक देशों के हितों की हिफाजत करना था। ओपेक के गठन का सुझाव वेनेजुएला ने दिया था। वो 1960 से 2018 के बीच पांच सदस्यी देशों के साथ 10 अन्य देश भी इसमें शामिल हो गए। ये देश इंडोनेशिया, लीबिया, संयुक्त अरब अमीरात, अल्जीरिया, नाइजीरिया, इक्वाडोर, अंगोला, गैबॉन और इक्वेटोरियल गिनी। कई देश इन संगठन में आते-जाते रहे। कतर 2018 में इस संगठन से अलग हो गया। ओपेक पूरे दुनिया में तेल सप्लाई का 40 फीसदी से ज्यादा का हिस्सा नियंत्रित करता है। सउदी अरब का इस तेल संगठन पर दबदबा है। ओपेक चाहता था कि रूस तेल के उत्पादन में में कटौती करे लेकिन रूस ने बात नहीं मानी।
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— Donald J. Trump (@realDonaldTrump) April 12, 2020कोरोना का असर
दुनिया में कच्चे तेल का सबसे बड़ा खरीदार चीन है। कोरोना वायरस संक्रमण की वजह से चीन बड़े स्तर पर प्रभावित हुआ है। यहां फैक्ट्रियां, आफिस और दुकानें पहले की तरह नहीं चल रही हैं। कई कंपनियों का प्रोडक्शन घट गया है। चीन सामान्य तौर पर हर दिन औसतन 1 करोड़ चालीस लाख बैरेल तेल खपत करता है लेकिन कोरोना वायरस की वजह से ऐसा हो नहीं रहा है। चीन के साथ अन्य देश भी कोरोना की चपेट में हैं और यात्राओं पर रोक, सड़कों पर गाड़िया के न चलने की वजह से खपत कम होने की वजह से तेल की मांग में भी कमी आई है।
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क्या हुआ समझौते के अंतर्गत
इस समझौते के अनुसार एक मई से ओपेक प्लस देश तेल उत्पादन में हर दिन लगभग एक करोड़ बैरल की कटौती करेंगे। इसके साथ ही ओपेक प्लस समूह से अलग अमरीका, कनाडा, ब्राज़ील और नॉर्वे 50 लाख बैरल की कटौती करेंगे। इसी साल जुलाई से दिसंबर के बीच कटौती को कम कर हर दिन 80 लाख बैरल किया जाएगा। इसके बाद जनवरी 2021 से अप्रैल 2022 तक 60 लाख बैरल तक लाया जाएगा।
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कच्चे तेल की कीमतों में उछाल
पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन (ओपेक) और अन्य तेल उत्पादकों द्वारा उत्पादन में कटौती के एलान के बाद तेल की कीमतों में दो फीसदी की बढ़ोतरी की गई है। तेल उत्पादक देशों के बीच उत्पादन में कटौती को लेकर हुए समझौते के बाद कच्चे तेल की कीमतों में तेज उछाल देखा जा रहा है।
Oil prices rise more than 2% after deal on output cuts: AFP news agency
— ANI (@ANI) April 13, 2020
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