India Canda Relations Part 1| भारत कनाडा के रिश्तों का 100 सालों का इतिहास | Teh Tak
मॉर्डन हिस्ट्री की बात करेंगे तो भारत कनाडा रिश्तों की शुरुआत साल 1897 से आप मान सकते हैं। महारानी विक्टोरिया के डायमंड जुबली समारोह के लिए एक सिख सैनिक केसर सिंह वैंकउवर पहुंचे थे।
11600 किलोमीटर गूगल मैप्स पर सर्च करेंगे तो इतनी दूरी भारत और कनाडा के बीच निकलेगी। धरती की कुल परिधि की लगभग एक चौथाई दूरी। हवाई यात्रा के जमाने में ये दूरी भी एक दिन से कम वक्त में पूरी हो जाती है। लेकिन पिछले एक साल से हुए घटनाक्रम के चलते दोनों देशों के बीच जो खाई बनी है, उसे पाटने में अब सालों का वक्त लगेगा। हालिया घटनाक्रम के साथ ही आज हम भारत और कनाडा के 100 साल के इतिहास की तह तक लिए चलेंगे।
शुरुआती दौर
मॉर्डन हिस्ट्री की बात करेंगे तो भारत कनाडा रिश्तों की शुरुआत साल 1897 से आप मान सकते हैं। महारानी विक्टोरिया के डायमंड जुबली समारोह के लिए एक सिख सैनिक केसर सिंह वैंकउवर पहुंचे थे। कनाडा पहुंचने वाले सिखों का ये पहला जत्था था। उन्होंने कुछ सैनिकों के साथ कनाडा में बसने का फैसला किया और वे ब्रिटिश कोलंबिया में ही रुक गए। हालांकि कुछ सैनिकों को यहां के कठिन हालात खासतौर से बेहद ठंड रास नहीं आई। वे भारत लौट आए। उसी समय कुछ भारतीय कनाडा में जाकर बसने लगे थे। कुछ ही सालों में 5 हजार भारतीय ब्रिटिश कोलंबिया पहुंच गए, जिसमें से 90 फीसदी सिख थे। धीरे धीरे सिखों की संख्या में इजाफा हुआ। इस दौरान उन्हें नस्लभेद का सामना भी करना पड़ा।
376 भारतीय सवार से भरा जहाज कनाडा क्यों पहुंचा
साल 1914 में सिखों के साथ कनाडा में एक बड़ी घटना हुई। कोमामारोघाटा नाम का एक जहाज कनाडा के तट पर पहुंचा। जहाज पर 376 भारतीय सवार थे, जिनमें अधिकतर सिख थे। ये लोग 2 महीने तक जहाज पर रहे, लेकिन उन्हें उतरने नहीं दिया गया। यहां तक की खाना पानी भी उन लोगों तक मुश्किल से पहुंचा। अंत में ये लोग वापस लौटा दिए गए। कलकत्ता के तट पर जब ये जहाज पहुंचा तो अंग्रेजों ने गोली चला दी, जिसमें 28 लोग मारे गए।
पंडित नेहरू ने किया कनाडा की संसद को संबोधित
1947 में भारत आजाद हुआ और यहां से कनाडा संग उसके आधिकारिक रिश्तों की नींव पड़ी। 1949 में पंडित नेहरू कनाडा जाकर वहां की संसद को संबोधित किया। इस दौरान नेहरू और कनाडा के प्रधानमंत्री लुई सेंट लॉरेन के बीच एक गहरी दोस्ती कायम हुई। कनाडा ने भारत की मदद खासकर परमाणु तकनीक के मामले में की। इसके बाद 1950 में दोनों देशों ने व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किया जबकि वर्ष 1951 में भारत के लिये कनाडा का सहायता कार्यक्रम शुरू हुआ और कोलंबो योजना के तहत इसमें काफी वृद्धि हुई। कनाडा ने भारत को खाद्य सहायता, परियोजना वित्तपोषण और तकनीकी सहायता प्रदान की।
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साइरस के जरिए कनाडा ने की भारत की मदद
1954 में कनाडा ने भारत को साइरस यानी कनाडा इंडिया रिएक्टर यूटिलिटी सर्विसेज दिया। एक रिएक्टर जो मुंबई के पास ट्रॉम्बे में लगाया गया। ये रिएक्टर भारत के परमाणु कार्यक्रम का एक फंडामेंटल हिस्सा बना। इस दौर में दोनों देशों ने कई अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर साथ काम किया। कोरियाई युद्ध से लेकर स्वेज नहर का संकट हो। भारत और कनाडा एक ही पाले में खड़े नजर आए। 1960 के दशक में दोनों देशों में उच्चायोगों की स्थापना की तो वहीं कनाडा ने कुंडा जल विद्युत परियोजना को बनाने में मदद की। 1973 में कनाडा प्रधानमंत्री भारत दौरे पर भी आये।
कोल्ड वार के बाद रिश्तों में आया बदलाव
फिर कोल्ड वार की छाया इन रिश्तों पर पड़ने लगी। कनाडा को लगा कि भारत सोवियत संघ के करीब जा रहा है। 1974 के साल में भारत और कनाडा के रिश्तों को एक बड़ा झटका लगा। भारत ने मई में अपना पहला शांतिपूर्ण परमाणु परिक्षण कर लिया। इस्माइलिंग बुद्धा की बात कनाडा को हजम नहीं हुई और तत्कालीन प्रधानमंत्री पियरे ट्रूडो ने इसे धोखा बताया। कनाडा का मानना था कि भारत ने साइरस रिएक्टर का इस्तेमाल परमाणु हथियार बनाने के लिए कर लिया, जो समझौते का उल्लंघन था। कनाडा ने तुरंत परमाणु क्षेत्र में सारा सहयोग बंद कर दिया। इसके बाद कनाडा ने फैसला किया कि वो केवल उन्हीं देशों के साथ परमाणु सहयोग करेगा जो परमाणु अप्रसार संधि और व्यापक परमाणु परिक्षेपण संधि पर हस्ताक्षर करेंगे। इस घटना के बाद भारत और कनाडा के बीच रिश्तों में ठहराव देखने को मिला।
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