Russia नहीं भूल पाएगा भारत का ये अहसान, अमेरिका-यूक्रेन जानकर हो जाएंगे परेशान

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अभिनय आकाश । Oct 9 2024 5:46PM

भारत ने पिछले कुछ सालों में ड्रोन तकनीक में शानदार तरक्की की है। अब उसकी तकनीक रूस के युद्ध अभियानों में निर्णायक साबित हो रही है। भारत और रूस का रिश्ता केवल व्यापार और राजनीति तक सीमित नहीं है। ये रक्षा और तकनीकी सहयोग की लंबी फेहरिस्त का हिस्सा है।

अंग्रेजी की एक कहावत है "A real friend is one who walks in when the rest of the world walks out" यानी जब सारी दुनिया साथ छोड़ देती है तब एक सच्चा दोस्त आपका साथ देता है। भारत और रूस की वर्षों पुरानी दोस्ती पर ये बात बिल्कुल खरी उतरती है। भारत और रूस के रिश्ते बेहद मजबूत रहे हैं। रक्षा और तकनीकी सहयोग की बात हो या कूटनीतिक समर्थन की दोनों देश एक दूसरे के रणनीतिक साझेदार रहे हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि भारत की तकनीक रूस को यूक्रेन युद्ध में मदद कर रही है। खासकर छोटे सुसाइड ड्रोन और अन्य तकनीकी संसाधनों में ये उपयोगी साबित हो रही है। दरअसल, भारत ने पिछले कुछ सालों में ड्रोन तकनीक में शानदार तरक्की की है। अब उसकी तकनीक रूस के युद्ध अभियानों में निर्णायक साबित हो रही है। भारत और रूस का रिश्ता केवल व्यापार और राजनीति तक सीमित नहीं है। ये  रक्षा और तकनीकी सहयोग की लंबी फेहरिस्त का हिस्सा है। भारत की आजादी के बाद से ही रूस भारत का एक भरोसेमंद सहयोगी रहा है। रक्षा क्षेत्र में रूस भारत को टैंक से लेकर युद्धक विमानों तक जैसे कई बड़े हथियार से लैस कर चुका है। 

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भारत के 80 प्रतिशत से ज्यादा सैन्य उपकरण रूस से ही खरीदे जाते हैं। अमेरिकी इंस्टीट्यू ऑफ पीस के विशेषज्ञ की माने दोनों देशों के बीच हथियारों का ये 1960 के दशक का रिश्ता है। भारत के कुल हथियारों के जखीरे में 85 फीसदी रूसी मूल के हैं। रूस ने भारत को फाइटर जेट, परमाणु सबमरीन, क्रूज मिसाइल, युद्धक टैंक, क्लानिश्नकोव राइफल समेत कई घातक और अत्याधुनिक हथियार दिए हैं। भारत ने 45.4 लाख करोड़ रुपये का कच्चा तेल खरीदा। वहीं करीब 3.3 लाख करोड़ का भारत ने निर्यात किया। इस तरह से व्यापार घाटा रूस संग रिश्तों में बड़ा मुद्दा बन चुका है। 

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इस रिश्ते में भारत अपनी तकनीकी क्षमताओं को भी रूस के साथ साझा कर रहा है। जो दोनों देशों के रक्षा संबंधों को और मजबूत बना रहे। भारत पिछले चार सालों में ड्रोन तकनीक में जबरदस्त तरक्की कर चुका है। जहां पहले भारत में एक भी प्राइवेट ड्रोन मैन्युफैक्चरिंग कंपनी नहीं थी। वहीं अब 200 से ज्यादा कंपनियां इस क्षेत्र में काम कर रही है। जेन टेक्नलॉजी, पारस डिफेंस और एयरोस्मिथ ड्रोन निर्माण और उससे जुड़े तकनीकी संसाधनों में महारथ हासिल कर रही है। इसका सीधा असर ये रहा कि भारत आज ड्रोन निर्माण में वैश्विक ताकत बनकर उभर रहा है। 

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यूक्रेन युद्ध के दौरान रूस ने पाया कि छोटे सुसाइड ड्रोन जैसे हथियार युद्ध में बेहद प्रभावी साबित हो सकते हैं। यूक्रेन ने पोलैंड और अन्य देशों के सुसाइड ड्रोन का इस्तेमाल कर रूस को बड़ा नुकसान पहुंचाया। लेकिन रूस के पास इन छोटे ड्रोन के लिए उतनी सक्षम तकनीक नहीं थी। यही वक्त था जब भारत की तकनीक ने रूस का साथ दिया। भारत ने रूस को ऑप्टिकल सर्विलांस और टारगेटिंग सिस्टम जैसी तकनीक प्रदान की जिससे रूस के ड्रोन अब पहले से कहीं ज्यादा घातक हो गए। भारत और रूस के बीच टेक्नोलॉजी ट्रांसफर का ये समझौता इस बात को दिखाता है कि दोनों देशों के बीच तकीनीक साझेदारी कितनी गहरी हो चुकी है।

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