Prabhasakshi Exclusive: S-400 Air Defence System की बची सप्लाई समय पर नहीं दे पायेगा Russia, भारत की रक्षा पर पड़ेगा असर!
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि भारत रूसी एस-400 वायु रक्षा प्रणाली की शेष दो इकाइयों के लिए काफी समय से इंतजार कर रहा है। माना जा रहा है कि यह इंतजार और बढ़ेगा। उन्होंने कहा कि शुरुआत में डिलीवरी 2025 तक होने की उम्मीद थी।
प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम शौर्य पथ में इस सप्ताह हमने ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) से जानना चाहा कि ऐसी रिपोर्टें हैं कि रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते भारत को रूस से एस-400 की आपूर्ति में तीन साल का विलंब होगा और परमाणु पनडुब्बी की आपूर्ति भी अनिश्चितकाल के लिए टल गयी है, इस पर आपका क्या कहना है? हमने यह भी पूछा कि रूस के उप प्रधानमंत्री भारत आये और दोनों देशों ने वायु रक्षा को मजबूत बनाने के लिए ‘पैंट्सिर वेरिएंट’ समझौते पर हस्ताक्षर किये, इससे भारत को क्या लाभ होगा? इसके जवाब में उन्होंने कहा कि इसमें कोई दो राय नहीं कि युद्ध के लंबा खिंचने से रूस की ओर से विभिन्न देशों के साथ किये गये रक्षा समझौतों पर असर पड़ा है। उन्होंने कहा कि हमें यह स्वीकार करना होगा कि भारत का एअर डिफेंस सिस्टम इतना मजबूत नहीं रहा है और वर्तमान में जिस तरह के संघर्ष चल रहे हैं उसको देखते हुए भारत को अपनी वायु रक्षा प्रणाली को तुरंत मजबूत करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि यह प्रकरण यह भी दर्शाता है कि रक्षा क्षेत्र में पूर्ण आत्मनिर्भरता कितनी जरूरी है।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि भारत रूसी एस-400 वायु रक्षा प्रणाली की शेष दो इकाइयों के लिए काफी समय से इंतजार कर रहा है। माना जा रहा है कि यह इंतजार और बढ़ेगा। उन्होंने कहा कि शुरुआत में डिलीवरी 2025 तक होने की उम्मीद थी, लेकिन अब इसके 2026 की शुरुआत तक मिलने का अनुमान है। उन्होंने कहा कि यह देरी ऐसे समय में हुई है जब क्षेत्रीय सुरक्षा तनावपूर्ण बनी हुई है, खासकर चीन के साथ उत्तरी सीमा पर। उन्होंने कहा कि S-400 वायु रक्षा प्रणाली की खरीद, जिसे दुनिया में सबसे उन्नत में से एक माना जाता है, को 2018 में अंतिम रूप दिया गया था जब भारत और रूस ने पांच इकाइयों के लिए 5.43 बिलियन डॉलर के समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। उन्होंने कहा कि यह प्रणाली 400 किमी तक की दूरी पर विमान, ड्रोन और बैलिस्टिक मिसाइलों सहित कई हवाई खतरों को ट्रैक करने और उन्हें बेअसर करने में सक्षम है।
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ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि पहली S-400 दिसंबर 2021 में भारत पहुंची थी। इसके बाद अगले दो वर्षों में दूसरी और तीसरी इकाइयों की डिलीवरी और परिचालन शुरू होना था ताकि पश्चिमी और पूर्वी दोनों क्षेत्रों में भारत की रक्षा स्थिति मजबूत हो सके। उन्होंने कहा कि इन इकाइयों को शामिल करना भारत की वायु रक्षा ग्रिड को मजबूत करने में महत्वपूर्ण रहा है, खासकर पाकिस्तान और चीन जैसे विरोधियों से संभावित हवाई खतरों को देखते हुए। उन्होंने कहा कि पहले कोविड-19 महामारी के कारण उत्पन्न व्यवधानों के कारण डिलीवरी में देरी हुई उसके बाद यूक्रेन में चल रहे संघर्ष के कारण देरी हो रही है। उन्होंने कहा कि यूक्रेन युद्ध ने रूस के सैन्य-औद्योगिक परिसर और रक्षा अनुबंधों को पूरा करने की क्षमता को गंभीर रूप से प्रभावित किया है।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि शेष दो S-400 इकाइयों के आगमन में देरी ने भारतीय वायु सेना के भीतर चिंता बढ़ा दी है, जिसने देश के हवाई क्षेत्र की सुरक्षा में इन प्रणालियों के महत्व पर लगातार प्रकाश डाला है। उन्होंने कहा कि देरी को ध्यान में रखते हुए, भारतीय वायुसेना और रक्षा मंत्रालय अपनी तैयारी सुनिश्चित करने के लिए वैकल्पिक समाधान तलाश रहे हैं। इसमें अतिरिक्त वायु रक्षा प्रणालियों की संभावित खरीद शामिल है। उन्होंने कहा कि अभी तीन मौजूदा एस-400 प्रणालियों की तैनाती ने भारत की रक्षात्मक क्षमताओं को बढ़ाया है, जिससे उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में अधिक मजबूत निगरानी है। उन्होंने कहा कि वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर चीन के साथ जारी गतिरोध ने एक मजबूत वायु रक्षा नेटवर्क बनाए रखने की आवश्यकता को रेखांकित किया है। एस-400 की देरी एक महत्वपूर्ण चुनौती है क्योंकि भारत का लक्ष्य अपनी प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करना है। उन्होंने कहा कि इसके अतिरिक्त, उन्नत मिसाइल प्रणालियों और पांचवीं पीढ़ी के विमानों में चीन निवेश करता जा रहा है, ऐसे में भारत के लिए जरूरी है कि वह एस-400 प्रणाली को पूर्ण रूप से तैनात करके रणनीतिक बढ़त बनाए रखे।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि जहां तक रूस के प्रथम उप प्रधानमंत्री की भारत यात्रा की बात है तो यह काफी महत्वपूर्ण रही। उन्होंने कहा कि भारत में रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र के एक प्रमुख उपक्रम ने ‘पैंट्सिर वायु रक्षा मिसाइल-गन प्रणाली’ के वेरिएंट पर सहयोग के लिए रूस के ‘रोसोबोरोनएक्सपोर्ट’ के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। उन्होंने कहा कि पैंट्सिर वायु रक्षा प्रणाली ऐसा प्लेटफॉर्म है, जिसे अहम सैन्य और औद्योगिक केंद्रों को हवाई खतरों से बचाने व वायु रक्षा इकाइयों को मजबूत बनाने के लिए बनाया गया है। उन्होंने कहा कि रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रम (डीपीएसयू) के अनुसार, भारत डायनेमिक्स लिमिटेड (बीडीएल) और ‘रोसोबोरोनएक्सपोर्ट’ के बीच समझौता ज्ञापन पर हाल ही में गोवा में पांचवें आईआरआईजीसी (भारत-रूस अंतर-सरकारी आयोग उपसमूह) के दौरान हस्ताक्षर किए गए। उन्होंने कहा कि बीडीएल को 1970 में रक्षा मंत्रालय के तहत एक सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम के रूप में शामिल किया गया था। इसका उद्देश्य भारतीय सशस्त्र बलों के लिए निर्देशित मिसाइल प्रणालियों और संबद्ध उपकरणों का निर्माण करना था। बीडीएल का मुख्यालय हैदराबाद में स्थित है। उन्होंने कहा कि बीडीएल ने अपने बयान में कहा है कि भारत डायनेमिक्स लिमिटेड और रूस के ‘रोसोबोरोनएक्सपोर्ट’ ने पैंट्सिर वेरिएंट पर सहयोग के लिए एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए। उन्होंने कहा कि यह समझौता रूस के प्रथम उप प्रधानमंत्री डेनिस मंटुरोव की उपस्थिति में हुआ।
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