Prabhasakshi Exclusive: चल दी गयी है चाल, Maldives का विपक्ष अब President Muizzu को भारत विरोधी कदम उठाने से रोकेगा

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ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू की मांग है कि भारत मार्च के मध्य तक देश में तैनात अपने सैनिकों को वापस बुला ले। उन्होंने कहा कि वैसे वहां हमारे सैनिकों की संख्या मात्र 88 है।

प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम शौर्य पथ में इस सप्ताह हमने ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) से जानना चाहा कि भारत-मालदीव के संबंधों में जारी तनाव को कैसे देखते हैं आप? हमने यह भी कहा कि मालदीव ने अब तो भारतीय सैनिकों को देश छोड़ने के लिए डेडलाइन भी तय कर दी है इसलिए हम जानना चाहते हैं कि बीजिंग से लौटने के बाद अचानक से मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू इतने आक्रामक क्यों हो गये हैं? इसके जवाब में उन्होंने कहा कि इस सबका कारण घरेलू राजनीति तो है ही साथ ही मालदीव पर जो विदेशी कर्ज है उसमें से 20 प्रतिशत से ज्यादा अकेले चीन का है इसलिए वह देश इस समय पूरी तरह चीन के दबाव में काम कर रहा है।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू की मांग है कि भारत मार्च के मध्य तक देश में तैनात अपने सैनिकों को वापस बुला ले। उन्होंने कहा कि वैसे वहां हमारे सैनिकों की संख्या मात्र 88 है। इससे स्पष्ट होता है कि वह वहां किसी तरह का खतरा नहीं हैं बल्कि भारत ने मालदीव के सैन्य बलों की मदद के लिए जो प्रशिक्षण ढांचा स्थापित किया था उसमें मदद के लिए वहां पर सैनिक तैनात हैं। उन्होंने कहा कि हमारे ये सैनिक द्विपक्षीय संबंधों के तहत 2010 से मालदीव में तैनात हैं। वहां पर तैनात हमारे सैनिकों के कार्यों में मालदीव के सैनिकों को युद्ध और टोही का प्रशिक्षण देना शामिल है। इसके अलावा हमारे सैनिक सुदूर द्वीपों के निवासियों के लिए मानवीय सहायता और चिकित्सा व्यवस्था में भी मदद प्रदान करते हैं। उन्होंने कहा कि मालदीव को दो सैन्य ध्रुव एडवांस्ड लाइट हेलीकॉप्टर भारत की ओर से उपहार के रूप में मालदीव को दिये गये थे इसलिए उन्हें सैन्य उपस्थिति के रूप में चित्रित करना गलत है।

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ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि राष्ट्रपति मुइज्जू को व्यापक रूप से चीन समर्थक नेता के रूप में देखा जाता है लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि वहां की मुख्य विपक्षी पार्टी एमडीपी का संसद में बहुमत है। मालदीव की संसद का सत्र अगले माह शुरू होना है और पूरी उम्मीद है कि विपक्ष उन्हें ऐसा कोई भी काम करने से रोकेगा जो भारत के विरोध में हो। उन्होंने कहा कि इसके अलावा राजधानी माले की जनता ने मेयर चुनाव में मुइज्जू की पार्टी को हार का मुंह दिखाकर राष्ट्रपति को यह साफ कर दिया है कि उनके मन में भले चीन का पहला स्थान हो लेकिन जनता के मन में भारत का ही पहला स्थान है। उन्होंने कहा कि भारत हमेशा समय की कसौटी पर जांचा, परखा और खरा मित्र साबित हुआ है। उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है कि मालदीव के विपक्ष ने ठान लिया है कि संसद में अब राष्ट्रपति की राह में बाधा खड़ी की जायेगी ताकि वह भारत विरोधी कदम नहीं उठा सकें। उन्होंने कहा कि मुइज्जू की धमकियों से भारत बेपरवाह इसलिए भी नजर आ रहा है क्योंकि वहां जो चाल चली जानी थी संभवतः वह चल दी गयी है। 

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि फरवरी 2021 में हस्ताक्षरित यूटीएफ हार्बर प्रोजेक्ट समझौते के तहत भारत को मालदीव की राजधानी माले के पास उथुरु थिलाफाल्हू में एक बंदरगाह और गोदी का विकास और रखरखाव करना था। इस समझौते को लेकर तमाम तरह की अफवाहें फैलाई गयीं और स्थानीय मीडिया के एक वर्ग ने भी दावा किया कि यह परियोजना अंततः वहां एक भारतीय नौसैनिक अड्डे के निर्माण को बढ़ावा देगी। उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया पर फैलाये जाने वाले दुष्प्रचार से प्रेरित होकर वहां के मंत्रियों ने भारत के साथ एक राजनयिक विवाद शुरू कर दिया और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लक्षद्वीप यात्रा के बारे में अपमानजनक टिप्पणियां कीं।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि देखा जाये तो हिंद महासागर में अपनी रणनीतिक स्थिति के कारण चीन मालदीव में अपना प्रभाव बढ़ाने में रुचि रखता है क्योंकि ये द्वीप राष्ट्र सबसे व्यस्त समुद्री व्यापार राजमार्गों में से एक पर स्थित है, जहां से चीन का लगभग 80 प्रतिशत तेल आयात गुजरता है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति मुइज्जू की यात्रा के दौरान मालदीव और चीन ने 20 महत्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं। चीन ने साथ ही माले को 130 मिलियन डॉलर की मदद दी है जिसे विकास परियोजनाओं पर खर्च किया जाएगा लेकिन मालदीव को यह याद रखने की जरूरत है कि चीन कुछ भी बिना अपने स्वार्थ के नहीं करता। उन्होंने कहा कि मालदीव को श्रीलंका और नेपाल के हश्र को याद रखना चाहिए।

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