Prabhasakshi Exclusive: Israel-Hamas संघर्ष अब किस मोड़ पर पहुँच गया? क्या अस्पताल में सैनिकों का घुसना जायज है? Russia-China को इस युद्ध से क्या फायदा हो रहा है?

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ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि इज़राइल-हमास युद्ध के संबंध में रूस और चीन का रुख अब तक व्यापक ग्लोबल साउथ के अनुरूप रहा है। हालात ऐसे हैं कि पिछले कुछ हफ्तों में इजरायली राजनीतिक प्रतिष्ठान के भीतर रूस और चीन के प्रति अविश्वास बढ़ा है।

प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम शौर्य पथ में इस सप्ताह हमने ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) से जानना चाहा कि इजराइल-हमास संघर्ष अब किस मोड़ पर है? हमने यह भी जानना चाहा कि भारत ने संयुक्त राष्ट्र में लाये गये प्रस्तावों पर इजराइल का साथ क्यों नहीं दिया? हमने यह भी जानना चाहा कि क्या इजराइल-हमास युद्ध से रूस और चीन को फायदा हो सकता है? इसके जवाब में उन्होंने कहा कि इजराइल हमास को पूरी तरह मिटाने का जो संकल्प ले चुका है उसे वह पूरा करने में लगा हुआ है। उन्होंने कहा कि ताजा हालात यह हैं कि इजरायली सैनिक बुधवार को गाजा के सबसे बड़े अस्पताल में घुस गए और उसके कमरों और तहखाने की तलाशी ली। उन्होंने कहा कि इजराइल के इस कदम से अस्पताल के अंदर फंसे हजारों नागरिकों के लिए लोग चिंतित हो रहे हैं।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि गाजा शहर में अल शिफा अस्पताल इजरायली बलों द्वारा जमीनी कार्रवाई का मुख्य लक्ष्य बन गया है। उन्होंने कहा कि इजराइल कहता है कि हमास के लड़ाकों ने अस्पताल के नीचे सुरंगों में एक मुख्यालय बनाया हुआ लेकिन हमास इस बात से इंकार करता है। उन्होंने कहा कि दूसरी ओर, दुनिया का ध्यान बुनियादी चिकित्सा उपकरणों को संचालित करने की सुविधाओं के अभाव से जूझ रहे अस्पताल के अंदर फंसे सैंकड़ों मरीजों और वहां आश्रय लेने वाले हजारों विस्थापित नागरिकों की ओर लगा हुआ है। उन्होंने कहा कि गाजा के अधिकारियों का कहना है कि इजराइल द्वारा अस्पताल को घेरने के परिणामस्वरूप हाल के दिनों में तीन नवजात शिशुओं सहित कई मरीजों की मौत हो गई है। दूसरी ओर, इज़राइल ने कहा है कि उसके सैनिक अस्पताल में प्रवेश करते समय अंदर मरीजों के लिए चिकित्सा आपूर्ति लेकर गये थे। साथ ही इज़रायली सेना ने कहा, "अस्पताल में प्रवेश करने से पहले हमारी सेना का सामना विस्फोटक उपकरणों और आतंकवादी दस्तों से हुआ, जिसके बाद लड़ाई हुई जिसमें आतंकवादी मारे गए।" उन्होंने कहा कि इजरायली सेना ने अपने बयान में कहा है कि हम इस बात की पुष्टि कर सकते हैं कि इजराइल से आईडीएफ टैंकों द्वारा लाए गए इनक्यूबेटर, शिशु आहार और चिकित्सा आपूर्ति सफलतापूर्वक शिफा अस्पताल तक पहुंच गई है।

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ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि जहां तक इस युद्ध से चीन और रूस को होने वाले फायदे की बात है तो इस बारे में दुनिया में तमाम तरह की चर्चाएं चल रही हैं। उन्होंने कहा कि ग़ाज़ा में इजराइल और हमास के बीच युद्ध थमने का नाम नहीं ले रहा है, ऐसे में यह सवाल भी उठ रहा है कि बड़ी शक्तियां कौन-सा रुख अपना सकती हैं। उन्होंने कहा कि एक ओर जहां ज्यादातर पश्चिमी देश इजराइल के आत्मरक्षा के अधिकार का समर्थन करने के लिए एकजुट हैं, वहीं चीन और रूस अपने गणित में व्यस्त हैं। व्यापक ‘ग्लोबल साउथ’ के साथ-साथ, चीन और रूस ने गाजा में इजराइल की सैन्य प्रतिक्रिया और फलस्तीनी नागरिकों पर इसके प्रभाव की आलोचना से झिझक नहीं की है। उन्होंने कहा कि इजराइल और हमास के बीच लड़ाई से रूस और चीन को फायदा होता है या नहीं, यह सोचने वाली बात होगी। पश्चिमी देश रूस और चीन के रुख को ऐसा अवसरवादी कह सकते हैं जिसके पीछे और रणनीतिक लाभ के लिए पश्चिमी देशों का उनका विरोध शामिल है। वैसे ‘ग्लोबल साउथ’ की राय अब भी प्रभावशाली हो सकती है।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि 1960 के दशक में पनपा ‘ग्लोबल साउथ’ शब्द आम तौर पर लैटिन अमेरिका, एशिया, अफ्रीका और ओशिनिया के क्षेत्रों के लिए इस्तेमाल किया जाता है। खासकर इसका मतलब, यूरोप और उत्तरी अमेरिका के बाहर, दक्षिणी गोलार्द्ध और भूमध्यरेखीय क्षेत्र में स्थित ऐसे देशों से है जो ज्यादातर कम आय वाले हैं और राजनीतिक तौर पर भी पिछड़े हैं। उन्होंने कहा कि बहरहाल, रूस और चीन को यह सुनिश्चित करना होगा कि यूक्रेन और गाजा संकट को लेकर परस्पर विरोधी रुख के चलते आलोचना से घिर कर कहीं उनकी स्थिति पश्चिमी देशों के समान न हो जाए। उन्होंने कहा कि खुद को महान शक्तियों के रूप में दिखाने और ग्लोबल साउथ का समर्थन हासिल करने के लिए, उन्हें नागरिकों की रक्षा करने और कानूनी और मानवीय दायित्वों को बरकरार रखने के लिए अपनी कथनी और करनी के अंतर को खत्म करना होगा, जैसा कि हाल ही में संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव में व्यक्त किया गया है। उन्होंने कहा कि रूस और चीन दोनों ही देशों ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया है।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि इजराइल पर सात अक्टूबर को एकाएक किए गए हमास के भयावह हमले के बाद गाजा को लेकर दुनिया के देशों में विभाजन गहरा हो गया है। इस हिंसा पर इजराइल का सत्ता प्रतिष्ठान हक्का बक्का हो गया। अंतरराष्ट्रीय समुदाय भी स्तब्ध रह गया। कई पश्चिमी देशों ने इजराइल का समर्थन किया। इजराइल की जवाबी कार्रवाई में गाजा से दस लाख से अधिक नागरिक विस्थापित हो गए, क्षेत्र की घेराबंदी की गई और बिजली, पानी की आपूर्ति बंद करने के साथ साथ मानवीय सहायता भी रोक दी गई। रूस और चीन ने अपने बयानों में संतुलन बनाने की कोशिश की जिसमें इजराइल की प्रतिक्रिया की आलोचना शामिल थी। इजराइल और हमास के बीच युद्ध के बाद, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को लड़ाई रोकने के लिए आम सहमति तक पहुंचने में संघर्ष करना पड़ा। एक तरफ अमेरिका और दूसरी तरफ रूस और कभी-कभी चीन के वीटो के कारण प्रस्तावों का मसौदा तैयार करने के चार प्रयास विफल रहे। ज्यादातर प्रस्तावित प्रस्तावों में नागरिकों पर हमलों की निंदा की गई थी। अमेरिकी आपत्तियों में इज़राइल के आत्मरक्षा के अधिकार की स्वीकृति न होना शामिल था। उन्होंने कहा कि इसके विपरीत, न तो रूस और न ही चीन ने मसौदा प्रस्तावों में युद्धविराम के आह्वान की कमी पर आपत्ति जताई। हमास की खुले तौर पर आलोचना न करने के मामले में भी वे पश्चिम से भिन्न रहे हैं। हमास के एक प्रतिनिधिमंडल ने युद्धविराम की संभावनाओं और बंधक स्थिति के समाधान पर चर्चा करने के लिए मास्को का दौरा भी किया था।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि दोनों देशों ने हाल के दशकों में इज़राइल के साथ राजनयिक और आर्थिक संबंध बनाए हैं। इजराइल में चीनी निवेश से लेकर सीरियाई गृहयुद्ध के दौरान रूसी और इज़राइली समन्वय तक, वे अरब दुनिया में जनता की राय के प्रति सचेत हैं, जो इज़राइल की सैन्य प्रतिक्रिया की आलोचना करता रहा है। उन्होंने कहा कि इजराइल की कार्रवाई को लेकर गुस्सा इतना अधिक है कि सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात की सरकारें भी सार्वजनिक रूप से खुद को इजराइल से दूर करने की जरूरत महसूस कर रही हैं। उन्होंने कहा कि हमास के लिए थोड़ी नरमी रखने वाले संयुक्त अरब अमीरात ने जहां इजराइल के साथ संबंध सामान्य कर लिए थे वहीं सऊदी अरब ऐसा करने की प्रक्रिया में था। लेकिन अब दोनों ने रुख बदल लिया है।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि वैसे रूस और चीन की स्थिति ने व्यापक वैश्विक भावना को भी प्रतिबिंबित किया है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव के अभाव में, सभी सदस्य देशों के प्रतिनिधित्व वाली महासभा ने 27 अक्टूबर को मानवीय संघर्ष विराम के लिए एक गैर-बाध्यकारी प्रस्ताव सफलतापूर्वक पारित किया। इस प्रस्ताव में नागरिकों पर हमलों की निंदा की गई और "नागरिकों की सुरक्षा तथा कानूनी एवं मानवीय दायित्वों को बनाए रखने" का आह्वान किया गया। रूस और चीन, अरब जगत के अधिकतर देशों और ग्लोबल साउथ के साथ 120 सदस्य देशों ने प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया, जबकि अमेरिका सहित 14 देशों ने विरोध में मतदान किया और आस्ट्रेलिया सहित 45 देशों ने मतदान से परहेज किया। अमेरिका ने प्रस्ताव में हमास के संबंध में कोई स्पष्ट जिक्र नहीं होने का विरोध किया। उन्होंने कहा कि रूस का रुख यूक्रेन में उसके युद्ध से भी प्रभावित हो सकता है। यूक्रेन पर फरवरी 2022 में हमला करने के बाद रूस ने उसके कुछ हिस्सों पर कब्जा कर लिया है। रूस उम्मीद कर सकता है कि इजराइल-हमास संघर्ष पश्चिमी देशों का ध्यान यूक्रेन से हटा सकता है तथा उसे (यूक्रेन को) हथियारों की आपूर्ति एवं अन्य व्यावहारिक सहायता रुक सकती है।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि इज़राइल-हमास युद्ध के संबंध में रूस और चीन का रुख अब तक व्यापक ग्लोबल साउथ के अनुरूप रहा है। हालात ऐसे हैं कि पिछले कुछ हफ्तों में इजरायली राजनीतिक प्रतिष्ठान के भीतर रूस और चीन के प्रति अविश्वास बढ़ा है। उन्होंने कहा कि इज़राइल ने कभी भी रूस और चीन को अमेरिका के समान सहयोगी या तुलनीय सहायता की पेशकश करने वाला नहीं माना है, इसलिए सात अक्टूबर के हमले पर उनके (इन दोनों देशों के) बयानों में देरी और इज़राइल की सैन्य प्रतिक्रिया की उनके द्वारा आलोचना के दूरगामी परिणाम मिल सकते हैं।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि जहां तक संयुक्त राष्ट्र में मतदान की बात है तो भारत ने ‘कब्जे वाले फलस्तीनी क्षेत्र’ में बस्तियां बसाने की इजराइली गतिविधियों की निंदा करने वाले प्रस्ताव सहित पश्चिम एशिया में स्थिति से संबंधित पांच प्रस्तावों के पक्ष में मतदान किया, जबकि एक से दूरी बनाई। उन्होंने कहा कि ‘पूर्वी यरुशलम सहित कब्जे वाले फलस्तीनी क्षेत्र और कब्जे वाले सीरियाई गोलान में इजराइली बस्तियां’ शीर्षक वाले मसौदा प्रस्ताव को संयुक्त राष्ट्र महासभा की विशेष राजनीतिक और विउपनिवेशीकरण समिति (चौथी समिति) ने रिकॉर्ड 145 मतों से मंजूरी दे दी। मतदान में प्रस्ताव के विरोध में सात वोट पड़े और 18 देश अनुपस्थित रहे। प्रस्ताव के ख़िलाफ़ मतदान करने वालों में कनाडा, हंगरी, इज़राइल, मार्शल द्वीप, माइक्रोनेशिया संघीय राज्य, नाउरू और अमेरिका शामिल थे। भारत, बांग्लादेश, भूटान, चीन, फ्रांस, जापान, मलेशिया, मालदीव, रूस, दक्षिण अफ्रीका, श्रीलंका और ब्रिटेन सहित 145 देशों ने प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि प्रस्ताव की शर्तों के अनुसार, महासभा पूर्वी यरुशलम सहित कब्जे वाले फलस्तीनी क्षेत्र और कब्जे वाले सीरियाई गोलान में बस्तियां बसाने की गतिविधियों और भूमि की जब्ती, व्यक्तियों की आजीविका में व्यवधान, नागरिकों के जबरन स्थानांतरण से जुड़ी किसी भी गतिविधि की निंदा करती है। उन्होंने कहा कि इसके अलावा भारत ‘फलस्तीनी लोगों और कब्जे वाले क्षेत्रों के अन्य लोगों के मानवाधिकारों को प्रभावित करने वाले इजराइली गतिविधियों की जांच करने के लिए विशेष समिति के कार्य’ शीर्षक वाले मसौदा प्रस्ताव पर मतदान से अनुपस्थित रहा। इस प्रस्ताव को 13 के मुकाबले 85 मतों से मंजूरी दी गई, जबकि 72 सदस्य अनुपस्थित रहे। यह प्रस्ताव ‘‘इजराइल की उन नीतियों और गतिविधियों की निंदा करता है जो फलस्तीनी लोगों और कब्जे वाले क्षेत्रों के अन्य निवासियों के मानवाधिकारों का उल्लंघन करते हैं।’’ प्रस्ताव में "गैरकानूनी इजराइली कदमों, और उपायों के परिणामस्वरूप पूर्वी यरुशलम सहित कब्जे वाले फलस्तीनी क्षेत्र में गंभीर स्थिति के बारे में गंभीर चिंता व्यक्त की गई और निंदा की गई है तथा अवैध बस्तियों की इजराइली गतिविधियों और निर्माण को तत्काल बंद करने का आह्वान किया गया है।’’

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि एक अन्य मसौदा प्रस्ताव, जिसके पक्ष में भारत ने मतदान किया वह 'कब्जे वाले सीरियाई गोलान' से संबंधित था जिसे 146 के रिकॉर्ड वोट से अनुमोदित किया गया। प्रस्ताव में इजराइल से कब्जे वाले सीरियाई गोलान के भौतिक स्वरूप, जनसांख्यिकी, संस्थागत संरचना और कानूनी स्थिति को बदलने और विशेष रूप से बस्तियां बसाने से दूर रहने का आह्वान किया गया है। भारत ने ‘फलस्तीनी शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र राहत और कार्य एजेंसी के संचालन’ से संबंधित प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया। इस मसौदा प्रस्ताव के पक्ष में 160 और विरोध में 4 मत पड़े। सात सदस्य अनुपस्थित रहे। उन्होंने कहा कि भारत ने ‘फलस्तीनी शरणार्थियों को सहायता’ शीर्षक वाले मसौदा प्रस्ताव के पक्ष में भी मतदान किया। इसे 161 मतों से मंजूरी दी गई। इस प्रस्ताव पर मतदान से 11 सदस्य अनुपस्थित रहे, जबकि सिर्फ इजराइल ने इसके विरोध में वोट दिया। प्रस्ताव में, फलस्तीन शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र राहत एजेंसी के काम को जारी रखने की आवश्यकता पर जोर दिया गया है। उन्होंने कहा कि इसके बाद, भारत ने ‘फलस्तीनी शरणार्थियों की संपत्ति और उनका राजस्व’ शीर्षक वाले एक मसौदा प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया। प्रस्ताव के पक्ष में 156 और विरोध में 6 वोट पड़े।

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