सोवियत संघ से लड़ाई के वक्त बनाया गया हक्कानी नेटवर्क, जिसके अल कायदा से भी है संबंध, CIA का भी रहा है भागीदार

Haqqani
अभिनय आकाश । Aug 28 2021 7:05PM

सोवियत से लड़ने के लिए अफ़गानिस्तान में मुजाहिदीनों की एक फ़ौज खड़ी हो गई। इन्हीं मुजाहिदीनों में से एक शख्स जलालुद्दीन हक्कानी भी था। जब तक सोवियत संघ के साथ लड़ाई चली तब तक वो अमेरिका की आंखों का तारा बना रहा।

तालिबान ने काबुल की खलील हक्कानी को सौंप दी है। खलील हक्कानी के सिर पर 50 लाख डॉलर यानी करीब 36 करोड़ 74 लाख 84 हजार रुपये का इनाम भी रखा था। हक्कानी नेटवर्क को पिछले दो दशकों के दौरान अफगानिस्तान में हुए कुछ सबसे घातक और सबसे चौंकाने वाले हमलों के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है। 2012 में अमेरिका ने इस गुट को आतंकवादी संगठन घोषित किया। हक्कानी नेटवर्क आत्मघाती हमलावरों का उपयोग करने के लिए जाना जाता है - जिसमें कारों और ट्रकों में भारी मात्रा में विस्फोटक शामिल हैं। 

सोवियंत संघ लड़ाई में अमेरिका की आंखों का तारा

शीत युद्ध की वजह से अमेरिका की दुश्मनी रूस के साथ अपने चरम पर थी। फिर अफ़ग़ानिस्तान का भाग्य लिखने के लिए पाकिस्तान, सऊदी अरब और अमेरिका ने नया गठजोड़ बनाया। तीनों देशों को देवबंद और उसके पाकिस्तानी राजनीतिक पार्टी जमात-ए-उलेमा-ए-इस्लाम में उम्मीद नज़र आयी।  अमेरिका ने 1980 में यूनाइटेड स्टेट एजेंसी फ़ॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट बनाया जिसके जरिए देवबंद के नफ़रती विचारों वाली शिक्षण सामग्री को छपवाकर देवबंदी मदरसों में बांटा जाने लगा।  सोवियत से लड़ने के लिए अफ़गानिस्तान में मुजाहिदीनों की एक फ़ौज खड़ी हो गई। इन्हीं मुजाहिदीनों में से एक शख्स जलालुद्दीन हक्कानी भी था। जल्द ही वो अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए की नजर में आ गया। जब तक सोवियत संघ के साथ लड़ाई चली तब तक वो अमेरिका की आंखों का तारा बना रहा। कई मीडिया रिपोर्ट्स में इस बात का जिक्र है कि  2018 में उसने अमेरिकी सेना और अफगान नागरिकों के खिलाफ आत्मघाती बम विस्फोटों को मंजूरी दी थी। एनबीसी के अनुसार जब एजेंसी सोवियत संघ के आक्रमण के खिलाफ तालिबान के आतंकियों को हथियार दे रही थी और प्रशिक्षण दे रही थी, तब खलील हक्कानी सीआईए का भागीदार भी था। तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन से एक बार जलालउद्दीन हक्कानी की मुलाकात भी हुई थी। 

इस्लामिक स्टेट ऑफ अफगानिस्तान 

1989 में सोवियत की वापसी के साथ इस युद्ध का एक पन्ना ख़त्म हो गया। सोवियत जा चुका था। मगर उससे लड़ने के लिए खड़े हुए मुजाहिदीन लड़ाकों ने हथियार नहीं रखे थे। वो अब अफ़गानिस्तान के अलग-अलग हिस्सों में वर्चस्व बनाने के लिए लड़ रहे थे। नजीबुल्ला को सरेआम फांसी देने के साथ ही इस्लामिक स्टेट ऑफ अफगानिस्तान का गठन हुआ। हक्कानी ने इस्लामी शासन के मंत्री के रूप में सेवा की।  

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ओसामा संग संबंध 

जलालुद्दीन हक्कानी ने ओसामा बिन लादेन सहित विदेशी जिहादियों के साथ घनिष्ठ संबंध बनाए। ऐसा माना जाता है कि साल 2001 में हक्कानी नेटवर्क ने ही ओसामा बिन लादेन को भागने में सहायता की थी। 2018 में तालिबान द्वारा एक लंबी बीमारी के बाद जलालुद्दीन हक्कानी की मृत्यु की घोषणा की गई, और उनका बेटा सिराजुद्दीन औपचारिक रूप से नेटवर्क का प्रमुख बन गया। 

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अल कायदा से भी रहे हैं अच्छे रिश्ते

खलील हक्कानी को 2011 में अमेरिकी सरकार ने आतंकी माना था। खलील हक्कानी के बारे में यह भी कहा है कि उसने अल कायदा की ओर से भी काम किया है और वह अल कायदा के आतंकवादी अभियानों से जुड़ा रहा है। 

कई हमलों का जिम्मेदार 

हक्कानी नेटवर्क को पिछले दो दशकों के दौरान अफगानिस्तान में हुए कुछ सबसे घातक और सबसे चौंकाने वाले हमलों के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है। 2012 में अमेरिका ने इस गुट को आतंकवादी संगठन घोषित किया। हक्कानी नेटवर्क आत्मघाती हमलावरों का उपयोग करने के लिए जाना जाता है - जिसमें कारों और ट्रकों में भारी मात्रा में विस्फोटक शामिल हैं।27 अप्रैल 2008 में अफगानिस्तान में कम्युनिस्ट शासन खत्म होने की सोलहवीं सालगिरह के मौके पर राजधानी काबुल में एक मिलिट्री परेड का आयोजन रखा गया। उस दौर में अफगानिस्तान की कमान हामि करजई के हाथों में थी और वो वहां मुख्य अतिथि की हैसियत से आए थे। अभी परेड शुरू ही हुई थी कि जोर का बम धामाका हुआ और फिर गोलियों की बरसात होने लगी। सुरक्षाकर्मियों ने करजई को किसी तरह सुरक्षित वहां से निकाला। इस हमले में एक सांसद समेत तीन लोग मारे गए। इस हमले के ठीक दो महीने 10 दिन बाद 7 जुलाई 2008 को काबुल स्थित भारतीय दूतावास की इमारत अफगानिस्तान के गृह मंत्रालय के पास थी। यहां कार में विस्फोट हुआ और हमले में 6 भारतीय नागरिकों समेत 58 लोग मारे गए। इसी साल के 10 नवंबर 2008 को न्यूयॉर्क टाइम्स के पत्रकार डेविड रोड अफगानिस्तान के लोगार प्रांत में घूम रहे थे। वो तालिबानी कमांडर अबु तैयब से मिलने आए थे। लेकिन रोड का किडनैप हो जाता है। उन्हें पाकिस्तान के वजीरीस्तन में रखा गया। उनकी रिहाई की एवज में एक अरब के करीब की फिरौती मांगी गई। लेकिन इसी बीच डेविड रोड वहां से भाग निकले। तीनों घटनाओं में एक ही नाम सामने आया था। उस आतंकवादी संगठन का नाम था हक्कानी नेटवर्क। 

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