Prabhasakshi Exclusive: Sri Lanka में Chinese Vessel वाकई Research करने आये या भारत की जासूसी करने आये?
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि जहां तक चीनी पोतों के श्रीलंका में मौजूद होने की बात है तो उस पर भारत और अमेरिका ने चिंता जताई है। उन्होंने कहा कि चीन और श्रीलंका के वैज्ञानिक एक चीनी अनुसंधान पोत पर समुद्र विज्ञान संबंधी शोध कर रहे हैं।
प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम शौर्य पथ में इस सप्ताह हमने ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) से जानना चाहा कि दक्षिण चीन सागर में चीन की चुनौतियों को देखते हुए हमारी क्या तैयारियां हैं? हमने जानना चाहा कि चीनी पोत श्रीलंका में आकर रिसर्च के नाम पर अपने छिपे एजेंडा को आगे बढ़ा रहे हैं ऐसे में हम क्या कर रहे हैं? इसके जवाब में उन्होंने कहा कि चीन की "आक्रामकता का स्तर" चिंता का विषय है। उन्होंने कहा कि व्यापारिक संबंध समृद्धि के लिए जारी रहें, लेकिन दूसरे देशों की संप्रभुता का ख्याल रखा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि चीन की हर चाल पर भारत की नजर बराबर बनी हुई है और चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि हमारी रक्षा-सुरक्षा एजेंसियां हर हालात पर नजर बनाये हुए हैं।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि जहां तक चीनी पोतों के श्रीलंका में मौजूद होने की बात है तो उस पर भारत और अमेरिका ने चिंता जताई है। उन्होंने कहा कि बताया जा रहा है कि चीन और श्रीलंका के वैज्ञानिक एक चीनी अनुसंधान पोत पर समुद्र विज्ञान संबंधी शोध कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि चीनी पोत ‘शी यान 6’ पिछले हफ्ते कोलंबो बंदरगाह पहुंचा था। भारत द्वारा आपत्तियां जताये जाने के चलते पोत के आगमन के लिए अनुमति देने में देर हुई। उन्होंने बताया कि कोलंबो में विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने बयान जारी करके कहा है कि 30 और 31 अक्टूबर को समुद्र विज्ञान संबंधी अनुसंधान करने के लिए अनुमति दी गई। राष्ट्रीय जलीय अनुसंधान एजेंसी (एनएआरए) के वैज्ञानिक, नौसेना कर्मी और रूहाना विश्वविद्यालय के विद्वानों को पोत पर जाने की अनुमति दी गई है। उन्होंने कहा कि एजेंसी के महानिदेशक डॉ. कमल तेनाकून ने बताया है कि पोत के जरिये कोलंबो में बेनतारा के पास अनुसंधान कार्य किया जा रहा है। बताया जा रहा है कि चीनी अनुसंधान पोत ने श्रीलंका के समुद्र में अनुसंधान किया। इसे भूभौतिकीय अनुसंधान के लिए चीन का पहला वैज्ञानिक अनुसंधान पोत बताया जा रहा है। उन्होंने कहा कि पिछले महीने, चीनी अनुसंधान पोत की यात्रा को लेकर अमेरिका ने भी श्रीलंका के समक्ष चिंता जताई थी। उन्होंने कहा कि भारत, चीनी पोत की श्रीलंका यात्रा को लेकर चिंता जताता रहा है। चीनी उपग्रह निगरानी पोत की 2022 की शुरुआत में भी इसी तरह की यात्रा को लेकर भारत ने कड़ा विरोध दर्ज कराया था।
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ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि यहां यह भी गौर करने वाली बात है कि अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन इस महीने के आखिर में सैन फ्रांसिस्को में ‘एपीईसी लीडरशिप’ शिखर सम्मेलन से इतर चीन के अपने समकक्ष शी चिनफिंग से मुलाकात करेंगे। उन्होंने बताया कि एशिया-प्रशांत आर्थिक सहयोग या ‘एपीईसी’ एशिया-प्रशांत में कारोबार एवं निवेश, आर्थिक विकास एवं क्षेत्रीय सहयोग से संबंधित शीर्ष मंच है। राष्ट्रपति बाइडन ने ‘एपीईसी लीडरशिप’ शिखर सम्मेलन के लिए भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भी आमंत्रित किया है। मगर भारत का प्रतिनिधित्व कैबिनेट स्तर के मंत्री द्वारा किए जाने की संभावना अधिक है। उन्होंने कहा कि चीन के साथ किस तरह से आगे बढ़ना है, इस बारे में बाइडन प्रशासन की नीति में कोई बदलाव नहीं हुआ है और भारत भी अपने रुख पर अडिग है।
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