नदियों के कारण उपजी चुनौतियों से निपटने के लिए देशों के बीच समन्वय जरूरी: केंद्रीय मंत्री

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मंत्री ने यह भी कहा कि लेकिन नदियां अपने साथ बाढ़ समेत अन्य आपदाएं भी लाती हैं। उन्होंने कहा, ‘‘इन चुनौतियों को कम करने के लिए राजनीतिक सीमाओं से परे घनिष्ठ समन्वय की आवश्यकता है।’’

गुवाहाटी| केंद्रीय मंत्री आर. के. रंजन ने रविवार को जोर दिया कि अंतरराष्ट्रीय सीमाओं से गुजरने वाली नदियों के कारण उत्पन्न चुनौतियों से निपटने की दिशा में काम करने के लिए देशों के बीच घनिष्ठ समन्वय की जरूरत है।

उन्होंने कहा कि इस मामले में देशों को राजनीतिक सीमा से परे जाकर देखने की जरूरत है। उन्होंने इस बात को भी रेखांकित किया कि दक्षिण एशियाई क्षेत्र में लोग अपनी आजीविका के लिए प्रत्यक्ष और प्रत्यक्ष रूप से नदियों पर निर्भर हैं।

यहां ‘विकास और परस्पर निर्भरता में प्राकृतिक सहयोगी’ सम्मेलन के तीसरे संस्करण के समापन दिवस पर अपने विशेष संबोधन में शिक्षा और विदेश मामलों के राज्य मंत्री ने कहा कि नदियां प्राचीन संस्कृति और लोकाचार की वाहक हैं। मंत्री ने यह भी कहा कि लेकिन नदियां अपने साथ बाढ़ समेत अन्य आपदाएं भी लाती हैं। उन्होंने कहा, ‘‘इन चुनौतियों को कम करने के लिए राजनीतिक सीमाओं से परे घनिष्ठ समन्वय की आवश्यकता है।’’

रंजन ने कहा कि देशों को एक साथ काम करने और क्षेत्र के समग्र विकास के लिए अनुभव साझा करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि भारत और पूर्वोत्तर क्षेत्र में नदियों का फैलाव अद्वितीय है। मंत्री के मुताबिक 62.7 करोड़ लोग गंगा-ब्रह्मपुत्र घाटी से प्रभावित हैं।

केंद्रीय मंत्री ने छात्रों, मीडियाकर्मियों और सांसदों के लिए ‘विनिमय’ कार्यक्रमों की व्यवस्था सहित पड़ोसी देशों के साथ शैक्षिक संबंधों के विस्तार की दिशा में भारत द्वारा निभाई गई भूमिका पर गर्व व्यक्त किया। यह दो दिवसीय सम्मेलन शनिवार को शुरू हुआ था।

बंगाल की खाड़ी और दक्षिण-पूर्व एशियाई क्षेत्र में सहयोग के सामूहिक दृष्टिकोण को स्पष्ट करने के लिए यह एक अंतरराष्ट्रीय मंत्री स्तरीय नदी सम्मेलन है।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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