Pregnancy Tips: प्रेग्नेंसी के शुरूआती दिनों में महिलाओं को हो सकती हैं ऐसी समस्याएं, जानिए कैसे करें इनसे बचाव
हर महिला के जीवन में प्रेग्नेंसी का समय अहम होने के साथ ही खुशनुमा भी होता है। लेकिन इस दौरान महिलाओं को हॉर्मोन संबंधित बदलाव के कारण अधिक स्वास्थ्य समस्याएं होती हैं। इन समस्याओं में खास सतर्कता बरतने की जरूरत होती है।
हर महिला के जीवन में प्रेग्नेंसी का समय अहम होने के साथ ही खुशनुमा भी होता है। प्रेग्नेंसी के दौरान महिला कई बदलावों से गुजर रही होती है। ऐसे में उन्हें कई तरह की स्वास्थ्य समस्याओं का सामना भी करना पड़ता है। ऐसे में अगर समय रहते सतर्कता बरती जाए तो भविष्य में नुकसान नहीं होता है। महिलाओं को हॉर्मोन संबंधित बदलाव के कारण अधिक स्वास्थ्य समस्याएं होती हैं। आज इस आर्टिकल के जरिए हम आपको कुछ ऐसी समस्याओं के बारे में बताने जा रहे हैं। जिनमें प्रेग्नेंसी के दौरान खास सतर्कता बरतने की जरूरत होती है। साथ ही इन समस्याओं से खुद को कैसे बचाया जाए।
डायबिटीज
गलत खानपान और अनहेल्दी लाइफस्टाइल के चलते गर्भवती महिलाओं को डायबिटीज की समस्या हो जाती है। वहीं गर्भ में पलने वाले बच्चे को भी इस समस्या का सामना करना पड़ सकता है।
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बचाव
जो महिलाएं इस समस्या से परेशान होती हैं। उन्हें प्रेग्नेंसी में चावल, आलू, जंक फूड, मीठी चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए। इसके साथ ही हर 3 महीने के अंदर ओजीटीटी यानी ओरल ग्लूकोस टोलरेंस टेस्ट जरूर कराना चाहिए। अपने खानपान ध्यान देना चाहिए। अगर यह सारी सतर्कता बरतने के बाद भी लक्षण बढ़ते हैं तो डॉक्टर से परामर्श कर इंसुलिन के इंजेक्शन या दवाइयां ले सकती हैं।
यूटीआई की संभावना
गर्भावस्था के दौरान महिलाओं के शरीर में प्रोजेस्ट्रेरोन की मात्रा बढ़ जाती है। जिसके कारण यूरिनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन यानी यूटीआई की समस्या भी हो सकती है। ऐसी स्थिति में ब्लैडर और यूरेटर की मांसपेशियां ढीली होने लगती हैं और उसका प्रभाव यूरिनरी ट्रैक की संरचना पर पड़ता है। इस वजह से वह झुकती नजर आती है। इसके झुकने से यूरिन किडनी को टच करते हुए ब्लेडर से बाहर आता है। इस वजह से प्रेग्नेंसी में यूटीआई के साथ किडनी इन्फेक्शन का खतरा भी बढ़ जाता है।
बचाव
एक्सपर्ट्स के मुताबिक इस अवस्था यानी की प्रेग्नेंसी में तरल पदार्थ का अधिक सेवन करना चाहिए। आज अपनी डाइट में पानी, जूस या अन्य तरल पदार्थ को शामिल कर सकते हैं। प्रेग्नेंसी के दौरान महिलाओं को स्ट्रीट फूड व जंक फूड से दूरी बना लेनी चाहिए। साथ ही पब्लिक टॉयलेट का इस्तेमाल करने से बचना चाहिए और बाथरुम जाने से पहले एक बार फ्लश जरूर करें। डॉक्टर द्वारा दी गई दवाओं का नियमित रूप से सेवन करें। अगर एंटीबायोटिक कोर्स चल रहा है तो उसे बीच में छोड़ने की गलती न करें। ऐसा करने पर इंफेक्शन का खतरा दोबारा हो सकता है।
पैरों और कमर में दर्द
प्रेग्नेंसी के दौरान महिलाओं के पैरों में सूजन, दर्द और खिंचाव की समस्या होती है। वहीं कई बार चेहरे पर भी सूजन आ जाती है। क्योंकि इस दौरान रीढ़ की हड्डी पर ज्यादा दवाब पड़ता है। जिसकी वजह से रीढ़ की हड्डी के निचले हिस्से में दर्द हो सकता है।
बचाव
इस तरह की समस्या ज्यादा देर तक एक ही अवस्था में बैठने की वजह से होता है। इसलिए एक स्थान पर ज्यादा देर तक बैठने से बचना चाहिए। अगर आप वर्किंग वूमेन हैं तो अपने पैरों को ज्यादा समय तक जमीन पर लटकाकर न बैठें। आप छोटे से स्टूल पर पैर रख सकती हैं। सोने के दौरान पैरों के नीचे तकिया रखें। अगर आपको बैक पेन हो रहा है तो इससे बचने के लिए बैठते समय पीठ और कमर के लिए तकिए का सपोर्ट लगा लें।
प्रीइंक्लेप्सिया समस्या
कुछ महिलाओं को प्रेग्नेंसी के शुरूआत में 20 हफ्ते में ब्लड प्रेशर बढ़ने की समस्या होती है, इस वजह से यूरिन से प्रोटीन का रिसाव होने लगता है। इस अवस्था को प्रीइंक्लेप्सिया कहा जाता है। इस स्थिति के गंभीर होने पर बीपी 160/110 तक पहुंच जाता है। इस दौरान अनेकों लक्षण दिखाई देने लगते हैं। इस समस्या के बढ़ने से पैरों में दर्द, सूजन और प्लेसेंटा में खून प्रभाव में दिक्कत होती है। इस समस्या के होने से बच्चे के विकास में बाधा आने लगती है। वहीं महिलाओं में सिर दर्द, पेट दर्द, नॉजिया और थकान आदि के लक्षण देखने को मिलते हैं।
बचाव
गर्भावस्था के दौरान समय-समय पर ब्लड प्रेशर चेक करवाते रहें। किसी भी तरह की समस्या होने पर यूरिन और ब्लड टेस्ट कराएं। इस तरह के लक्षण नजर आने पर फौरन डॉक्टर से परामर्श करें।
एनीमिया
जब प्रेग्नेंट महिला के शरीर में खून की कमी होती है तो बच्चे के विकास में भी बाधा आती है। प्रेग्नेंसी में शरीर में खून की कमी नहीं होनी चाहिए। जब महिलाएं डाइट में आयरन शामिल नहीं करती हैं तो उनका हीमोग्लोबिन घटने लगता है। इस स्थिति को फिजियोलॉजिकल एनीमिया कहा जाता है। इस स्थिति में शरीर में मौजूद ब्लड सभी कोशिकाओं तक ऑक्सीजन सप्लाई नहीं कर पाता है। जिसके कारण मां और बच्चे दोनों को परेशानी का सामना करना पड़ता है।
बचाव
संतुलित डाइट लेने से इस समस्या से बचा जा सकता है। ऐसे में महिलाएं अपनी डाइट में हरी पत्तेदार सब्जियां, चुकंदर, केला, अनार, अंजीर और खजूर आदि को शामिल कर सकती हैं। इन सब में फाइबर की प्रचुर मात्रा पायी जाती है। इसके अलावा आप रेड मीट, गेंहू और चना को भी अपनी डाइट में शामिल कर सकती हैं। खट्टे फलों में मौसमी, संतरा, नींबू और आंवला खा सकती हैं। इनमें भी आयरन की भरपूर मात्रा पायी जाती है।
थकान और जी मचलाना
प्रेग्नेंसी में जी मचलाने और थकान जैसी समस्या होती है। इस समस्या के लिए ह्यूमन क्रॉनिक gonadotropin जिम्मेदार होता है। बता दें कि महिलाओं के यूट्रेस में जैसे ही फर्टिलाइजेशन होता है। वैसे ही हार्मोन एक्टिव हो जाती है। जिसके कारण एस्ट्रोजेन हार्मोन की मात्रा भी बढ़ने लगती है। इसके कारण शुरूआत के 3 महीने थकान और जी मचलाने की समस्या होती है।
बचाव
सुबह उठकर सबसे पहले किसी नमकीन चीज का सेवन करने से यह समस्या कम हो सकती है। अगर खाना खाने के बीच में पानी पीने से मितली लगती है तो इस आदत को बदलें। प्रेग्नेंसी के दौरान अगर किसी चीज की सुगंध अच्छी नहीं लगती तो उससे दूर रहें। उल्टी आदि आने पर डॉक्टर के परामर्श के बिना दवा न खाएं।
त्वचा की समस्या
गर्भावस्था में पेट बढ़ने के कारण चेहरे पर खिंचाव होता है। जिसकी वजह से त्वचा रूखी नजर आती है। इसका असर थाइज की स्किन पर भी पड़ता है। इस समस्या के होने पर महिला को खुजली होने लगती हैं। क्योंकि प्रेग्नेंसी में हार्मोन्स में बदलाव आता है। साथ ही पिंपल्स की समस्या होती है।
बचाव
हालांकि प्रेग्नेंसी के दौरान होने वाले यह बदलाव परमानेंट नहीं होते हैं। इसलिए परेशान होने या किसी तरह की दवा लेने की जरूरत नहीं होती है। डिलीवरी के बाद इस तरह की समस्याएं खुद दूर हो जाती है। वहीं त्वचा के रूखेपन को दूर करने के लिए आप मॉइश्चराइजर का इस्तेमाल कर सकती हैं।
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