Sankashti Chaturthi 2025: भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी व्रत से बनी रहती है गणेश जी की कृपा

Lord Ganesha
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भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की पूजा होती है। विघ्नहर्ता भगवान गणेश की कृपा पाने के लिए यह व्रत फलदायी माना जाता है। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार इस व्रत को रखने से व्यक्ति को भगवान गणेश का महा वरदान अवश्य प्राप्त होता है।

आज भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी है, हिन्दू धर्म में इस संकष्टी का विशेष महत्व है। यह व्रत भक्त के जीवन की सभी समस्याओं को खत्म कर नए सुवअसर प्रदान करता है तो आइए भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी व्रत का महत्व एवं पूजा विधि के बारे में बताते हैं। 

जानें भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी के बारे में 

भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की पूजा होती है। विघ्नहर्ता भगवान गणेश की कृपा पाने के लिए यह व्रत फलदायी माना जाता है। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार इस व्रत को रखने से व्यक्ति को भगवान गणेश का महा वरदान अवश्य प्राप्त होता है। यदि आप किसी कारणवश इस दिन व्रत और पूजा नहीं कर सकते हैं तो केवल भगवान गणेश के 12 नामों का स्मरण जरूर करें इससे आपकी सभी मनचाही मनोकामना पूरी हो जाएगी। भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी हिंदू धर्म में एक अत्यंत शुभ दिन माना जाता है। यह व्रत भगवान गणेश को समर्पित होता है, जो सभी विघ्नों को दूर करने वाले और भक्तों को सुख-समृद्धि प्रदान करने वाले देवता हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार, हर माह में दो चतुर्थी तिथियां आती हैं, शुक्ल पक्ष की विनायक चतुर्थी और कृष्ण पक्ष की संकष्टी चतुर्थी। संकष्टी चतुर्थी का विशेष महत्व होता है, क्योंकि इस दिन भगवान गणेश की पूजा करने से समस्त कष्टों और परेशानियों से मुक्ति मिलती है।

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इस साल भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी 2025 में चैत्र मास के कृष्ण पक्ष में 17 मार्च को मनाई जा रही है। इस दिन भगवान गणेश की विशेष पूजा-अर्चना करने से सभी इच्छाओं की पूर्ति होती है और घर में सुख-शांति बनी रहती है। इस दिन व्रत करने और भगवान गणेश की विधिपूर्वक पूजा करने से जातकों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। भालचंद्र सकंष्टी चतुर्थी के दिन गणपति जी को उनकी प्रिय चीजों का भोग भी जरूर लगाना चाहिए। ऐसा करने से घर में सुख-समृद्धि और संपन्नता आती है। 

भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान गणेश को लगाएं इनका भोग, मिलेगा लाभ

भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी का व्रत चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को रखा जाता है। इस दिन भगवान गणेश को उनके प्रिय चीजों का भोग जरूर लगाना चाहिए।

1. मोदक: भगवान गणेश को मोदक अति प्रिय है, तो भालचंद्र सकंष्टी चतुर्थी के दिन गणपति जो को मोदक का भोग जरूर लगाएं। 

2. बूंदी के लड्डू: सकंष्टी चतुर्थी की पूजा में बूंदी के लड्डू का प्रसाद अवश्य रखें, पूजा के बाद गणेश जी को बूंदी के लड्डू चढ़ाएं। यह भोग भी बप्पा को पसंद है। 

3. चावल की खीर: भालचंद्र सकंष्टी चतुर्थी के दिन भगवान गणेश को खीर का प्रसाद भी चढ़ाएं, गणपति जी को खीर का भोग लगाने से व्यक्ति को बुद्धि, ज्ञान और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। 

4. फल: गणपति जी को फल में केला, नारियल का भोग भी अर्पित कर सकते हैं, इन चीजों का भोग लगाने से भी बप्पा का आशीर्वाद मिलता है।

भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी 2025 का शुभ मुहूर्त

पंडितों के अनुसार चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि की शुरुआत 17 मार्च 2025 को रात्रि 07:33 बजे होगी और इसका समापन 18 मार्च 2025 को रात्रि 10:09 बजे होगा। इस व्रत को चन्द्रोदय व्यापिनी चतुर्थी तिथि पर किया जाता है। अगर दो दिन चन्द्रोदय व्यापिनी चतुर्थी होती है तो प्रथम दिन को व्रत के लिए चुना जाता है। 17 मार्च 2025 को चंद्रोदय का समय 09:18 बजे रहने वाला है। ऐसे में 17 मार्च को भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी व्रत रखा जाएगा।

भालचन्द्र संकष्टी चतुर्थी व्रत के दिन ऐसे करें पूजा, होगा फलदायी 

पंडितों के अनुसार इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पूजा से पहले घर और पूजा कक्ष को अच्छे से साफ करें। इसके बाद भगवान गणेश का ध्यान करते हुये व्रत पालन करने और मौन रहने का संकल्प ग्रहण करें। शाम में पुनः स्नान करके गणपति जी की प्रतिमा विराजमान करें। इसके बाद भगवान गणेश जी का ध्यान करें। तदोपरान्त विधि-विधान से षोडशोपचार गणेश पूजन करें। भगवान को मोदक, सुपारी, मूंग तथा दूर्वा अवश्य चढ़ाएं। संकष्टी चतुर्थी की कथा सुनें। देसी घी का दीपक जलाएं और पूजा स्थल को सुगंधित धूप-अगरबत्ती से शुद्ध करें। गणेश जी को मोदक, लड्डू (विशेष रूप से मोतीचूर के लड्डू) या अन्य प्रिय मिठाइयों का भोग लगाएं। भगवान गणेश के निम्न मंत्र का 108 बार जाप करें—''ॐ भालचंद्राय नमः''। भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी की व्रत कथा का पाठ करें। भगवान गणेश की भव्य आरती करें और उनसे सुख-समृद्धि की प्रार्थना करें। इसके बाद रात में चंद्रदेव की पूजा करें और अपना व्रत खोल लें। पूजा संपन्न होने के बाद प्रसाद ग्रहण करें, परिवार व अन्य लोगों में वितरित करें और ब्राह्मण-भोज का आयोजन करें।

- प्रज्ञा पाण्डेय

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