Padmini Ekadashi fast पर बन रहे हैं दो शुभ योग, 29 जुलाई को रखा जायेगा व्रत
ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि अधिक मास या फिर मल मास में शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली एकादशी तिथि को कहा जाता है। इसे कमला या पुरुषोत्तमी एकादशी भी कहते हैं। हिन्दू पंचांग के अनुसार पद्मिनी एकादशी का व्रत जो महीना अधिक हो जाता है उस पर निर्भर करता है।
पद्मिनी एकादशी शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि सावन के महीने में मनाई जाती है। इस बार पद्मिनी का व्रत अधिक मास में रखा जाएगा। कहा जाता है कि इस दिन व्रत रखने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है साथ ही पितरों को मोक्ष प्राप्त होता है। पाल बालाजी ज्योतिष संस्थान जयपुर जोधपुर के निदेशक ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि पद्मिनी एकादशी तिथि का आरंभ 28 जुलाई को दोपहर 2:51 मिनट से आरंभ होगी और 29 जुलाई को दोपहर 1:06 मिनट तक रहेगी। ऐसे में पद्मिनी एकादशी का व्रत 29 जुलाई को रखा जाएगा। इस साल पद्मिनी एकादशी पर ब्रह्म और इंद्र योग जैसे दो शुभ योग भी बन रहे हैं। पद्मिनी एकादशी मलमास या अधिक मास में आती है। इसे कमला एकादशी भी कहा जाता है। अधिक मास की शुरुआत 18 जुलाई से हो चुकी है। इसका समापन 16 अगस्त को होगा। इसे पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है। अधिक मास में आने वाली एकादशी का महत्व बहुत ज्यादा होता है, क्योंकि इस माह के स्वामी श्रीहरि विष्णु हैं और एकादशी तिथि भी इन्हें ही समर्पित है। ऐसे में पद्मिनी एकादशी का व्रत रखकर पूजा करने से दोगुना फल की प्राप्ति होती है। इस व्रत से सालभर की एकादशियों का पुण्य मिल जाता है।
ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि अधिक मास या फिर मल मास में शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली एकादशी तिथि को कहा जाता है। इसे कमला या पुरुषोत्तमी एकादशी भी कहते हैं। हिन्दू पंचांग के अनुसार पद्मिनी एकादशी का व्रत जो महीना अधिक हो जाता है उस पर निर्भर करता है। अतः पद्मिनी एकादशी का उपवास करने के लिए कोई चन्द्र मास तय नहीं है। अधिक मास को लीप के महीने के नाम से भी जाना जाता है। अधिकमास के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली एकादशी तिथि को पुरुषोत्तमी एकादशी, कमला एकादशी या पद्मिनी एकादशी भी कहा जाता है।
पुरुषोत्तमी/ पद्मिनी एकादशी
भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि हर 3 साल में अधिकमास या मलमास आता है। इसलिए 3 सालों के बाद पुरुषोत्तमी एकादशी का व्रत रखा जाएगा। इस साल ये व्रत 29 जुलाई को रखा जाएगा। इस दिन विष्णु पूजा का मुहूर्त सुबह 07:22 बजे से सुबह 09:04 बजे तक है। इसके अलावा दोपहर में भी एकादशी पूजा का शुभ मुहूर्त है, जो दोपहर 12:27 बजे से शाम 05:33 बजे तक है। इस दिन व्रत रखकर विधिपूर्वक भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। माना जाता है कि इस व्रत को रखने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं और मृत्यु के बाद वैकुंठ प्रदान करते हैं। इस साल पद्मिनी एकादशी पर ब्रह्म और इंद्र योग जैसे दो शुभ योग भी बन रहे हैं।
इसे भी पढ़ें: Manglwar Upay: मंगलवार को भूलकर भी न खरीदें ये चीजें, वरना आपसे रूष्ट हो सकते हैं संकटमोचन
ज्येष्ठा नक्षत्र और दो शुभ योग में पद्मिनी एकादशी
कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि इस साल पद्मिनी एकादशी पर दो शुभ योग बने हैं । उस दिन ब्रह्म योग प्रात:काल से लेकर सुबह 09:34 मिनट तक है । उसके बाद से इंद्र योग प्रारंभ हो जाएगा । ये दोनों ही योग शुभ हैं । वहीं ज्येष्ठा नक्षत्र सुबह से लेकर रात 11 बजकर 35 मिनट तक है, उसके बाद से मूल नक्षत्र है ।
पद्मिनी एकादशी तिथि
भविष्यवक्ता डा. अनीष व्यास ने बताया कि पंचांग के अनुसार श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 28 जुलाई 2023 को दोपहर 02:51 मिनट पर शुरू हो रही है। इसका समापन 29 जुलाई को दोपहर 01:06 मिनट पर होगा। उदया तिथि के अनुसार पद्मिनी एकादशी का व्रत 29 जुलाई को रखा जाएगा।
पूजा मुहूर्त
भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि 29 जुलाई को पूजा का मुहूर्त सुबह 07:22 मिनट से सुबह 09:04 मिनट तक है। इसके बाद दोपहर में शुभ समय 12:27 मिनट से शाम 05:33 मिनट तक है।
करें पूजन
कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि इस दिन सुबह स्नान कर भगवान विष्णु की विधि पूर्वक पूजा करें। निर्जल व्रत रखकर विष्णु पुराण सुनें या फिर इसका पाठ करें। इस दिन रात्रि में भजन- कीर्तन करते हुए जागरण करना शुभ होता है। रात में प्रति पहर विष्णु और शिवजी की पूजा करें। द्वादशी के दिन भी सुबह भगवान की पूजा करें। ब्राह्मणों को भोजन कराकर दक्षिणा दें और उसके बाद व्रत का पारण करें। पद्मिनी एकादशी भगवान विष्णु जी को अति प्रिय है। माना जाता है कि इस व्रत का विधि पूर्वक पालन करने वाला विष्णु लोक यानी वैकुंठ धाम को जाता है।
पद्मिनी एकादशी व्रत कथा
भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि त्रेता युग में एक पराक्रमी राजा कीतृवीर्य था। इस राजा की कई रानियां थी परंतु किसी भी रानी से राजा को पुत्र की प्राप्ति नहीं हुई। संतानहीन होने के कारण राजा और उनकी रानियां तमाम सुख सुविधाओं के बावजूद दु:खी रहते थे। संतान प्राप्ति की कामना से तब राजा अपनी रानियों के साथ तपस्या करने चल पड़े। हज़ारों वर्ष तक तपस्या करते हुए राजा की सिर्फ हड्डियां ही शेष रह गयी परंतु उनकी तपस्या सफल न हो सकी। रानी ने तब देवी अनुसूया से उपाय पूछा। देवी ने उन्हें मल मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत करने के लिए कहा। अनुसूया ने रानी को व्रत का विधान भी बताया। रानी ने तब देवी अनुसूया के बताये विधान के अनुसार पद्मिनी एकादशी का व्रत रखा। व्रत की समाप्ति पर भगवान प्रकट हुए और वरदान मांगने के लिए कहा। रानी ने भगवान से कहा प्रभु आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो मेरे बदले मेरे पति को वरदान दीजिए। भगवान ने तब राजा से वरदान मांगने के लिए कहा। राजा ने भगवान से प्रार्थना की कि आप मुझे ऐसा पुत्र प्रदान करें जो सर्वगुण सम्पन्न हो जो तीनों लोकों में आदरणीय हो और आपके अतिरिक्त किसी से पराजित न हो। भगवान तथास्तु कह कर विदा हो गये। कुछ समय पश्चात रानी ने एक पुत्र को जन्म दिया जो कार्तवीर्य अर्जुन के नाम से जाना गया। कालान्तर में यह बालक अत्यंत पराक्रमी राजा हुआ जिसने रावण को भी बंदी बना लिया था। ऐसा कहते हैं कि सर्वप्रथम भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को पुरुषोत्तमी एकादशी के व्रत की कथा सुनाकर इसके माहात्म्य से अवगत करवाया था
- डा. अनीष व्यास
भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक
अन्य न्यूज़