Suroop Dwadashi 2024: सुरुप द्वादशी व्रत से होती है शारीरिक परेशानी दूर

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सुरूप द्वादशी, पौष महीने की द्वादशी को मनाया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है और व्रत रखा जाता है। पंडितों के अनुसार इस दिन व्रत रखने से शारीरिक परेशानियां दूर होती हैं और मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

आज सुरुप द्वादशी है, यह दिन भगवान विष्णु की पूजा और उनकी कृपा पाने के लिए विशेष महत्व रखता है। हिंदू धर्म में इस दिन व्रत और पूजा करने से जीवन के पापों का नाश होता है और शुभ फलों की प्राप्ति होती है तो आइए हम आपको सुरुप द्वादशी व्रत का महत्व एवं पूजा विधि के बारे में बताते हैं। 

जानें सुरुप द्वादशी व्रत के बारे में  

सुरूप द्वादशी, पौष महीने की द्वादशी को मनाया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है और व्रत रखा जाता है। पंडितों के अनुसार इस दिन व्रत रखने से शारीरिक परेशानियां दूर होती हैं और मनोकामनाएं पूरी होती हैं। आज पौष कृष्ण द्वादशी है। पौष मास में दोनों पक्षों की द्वादशी तिथि पर भगवान विष्णु की विशेष पूजा करने का विधान है इसलिए इसे सुरूप द्वादशी भी कहते हैं। इस द्वादशी की चर्चा महाभारत के आश्वमेधिक पर्व में वैष्णव अध्याय के अंतर्गत मिलता है और इसके बारे में भगवान श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया था। भगवान विष्णु की पूजा के लिए खास दिन होने से श्रीकृष्ण ने इस तिथि को पर्व कहा है। यह दिन धर्म ग्रंथों के अनुसार पवित्र और लाभकारी माना गया है। महाभारत में भी उल्लेख है कि जो भक्त इस दिन व्रत रखते हैं, वे भगवान को अत्यंत प्रिय होते हैं। इस दिन गंगा स्नान और सूर्य को जल चढ़ाना भी शुभ माना गया है। यह व्रत व्यक्ति के पाप और दोष समाप्त करता है और उसे मोक्ष की ओर ले जाता है।

सुरूप द्वादशी का है खास महत्व 

महाभारत के आश्वमेधिक पर्व में भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा था कि जो लोग किसी तरह का व्रत या उपवास न कर पाएं, वे केवल द्वादशी का ही उपवास रखें। इस दिन चंदन, फूल, फल, जल, या पत्र भगवान विष्णु को चढ़ाने से पाप खत्म होते हैं और मनोकामनाएं पूरी होती हैं। द्वादशी का उपवास करने का विधान ग्रंथों में बताया गया है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा के साथ-साथ तीर्थ में स्नान-दान करने की परंपरा है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा में तुलसी पत्र और शंख में जल-दूध भरकर अभिषेक करना चाहिए। इस दिन पंचामृत के साथ ही शंख में दूध और जल मिलाकर भगवान का अभिषेक करने का विशेष विधान है। इस दिन केला या किसी भी मौसमी फलों का नैवेद्य लगाना चाहिए।

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साथ ही महाभारत के आश्वमेधिक पर्व में श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया कि “जो भक्त सुरूप द्वादशी का उपवास करता है, वह मुझे प्रिय होता है। पौष और खरमास दोनों में भगवान विष्णु के नारायण रूप की पूजा करने का विधान है। इसका वर्णन विष्णुधर्मोत्तर पुराण में भी किया गया है। इस एकादशी पर तीर्थ के जल में तिल मिलाकर नहाना चाहिए। फिर सूर्य को जल चढ़ाना चाहिए। इससे हर तरह के पाप खत्म हो जाते हैं।

सुरुप द्वादशी व्रत में ऐसे करें पूजा

पंडितों के अनुसार सुरुप द्वादशी का व्रत खास होता है इसलिए इस दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें। मंदिर में चौकी पर साफ कपड़ा बिछाएं। कलश स्थापित करें। भगवान विष्णु की प्रतिमा रखें। व्रत-पूजा का संकल्प लें। इसके बाद शंख में दूध और गंगाजल मिलाकर भगवान विष्णु मूर्ति का अभिषेक करें। दीप जलाएं। पूजन सामग्री जैसे अबीर, गुलाल, रोली, माला, फूल, चावल आदि चीजें एक-एक करके चढ़ाते रहें और फिर तुलसी पत्र चढ़ाएं। भगवान को मौसमी फल, नैवेद्य अर्पित करें। भगवान को भोग लगाएं। भगवान की आरती करें और प्रसाद भक्तों को बांट दें। फिर ब्राह्मण भोजन या जरूरतमंद लोगों को खाना खिलाएं। धर्म ग्रंथों के अनुसार, इस तरह विधि-विधान से जो व्यक्ति भगवान विष्णु की पूजा सुरूप द्वादशी पर करता है, उसके जाने-अनजाने में हुए हर तरह के पाप और दोष दूर हो होते हैं।

सुरुप द्वादशी व्रत का शुभ मुहूर्त 

सुरुप द्वादशी के दिन द्वादशी तिथि 27 दिसंबर को सुबह 12:44 बजे शुरू होगी और 28 दिसंबर को सुबह 2:27 बजे खत्म होगी। इस दिन का नक्षत्र विशाखा होगा जो रात 8:28 बजे तक रहेगा और इसके बाद अनुराधा नक्षत्र होगा।

- प्रज्ञा पाण्डेय

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