Mahalaxmi Vrat 2024: आज किया जा रहा महालक्ष्मी का आखिरी व्रत, जानिए मुहूर्त और पूजन विधि

Mahalaxmi Vrat 2024
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इस बार 24 सितंबर 2024 को महालक्ष्मी व्रत की समाप्ति हो रही है और इसी दिन व्रत का उद्यापन किया जा रहा है। तो आइए जानते हैं महालक्ष्मी व्रत पर उद्यापन का मुहूर्त और पूजन विधि के बारे में।

हर साल भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से महालक्ष्मी व्रत की शुरूआत होती है। वहीं आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर महालक्ष्मी व्रत का समापन होता है। इस दौरान मां लक्ष्मी की विधि-विधान से पूजा अर्चना की जाती है और 16 दिनों तक व्रत किया जाता है। इससे जातक के सुख-सौभाग्य में वृद्धि होती है। बता दें कि महालक्ष्मी व्रत के आखिरी दिन उद्यापन कर व्रत का पारण किया जाता है। इस बार 24 सितंबर 2024 को महालक्ष्मी व्रत की समाप्ति हो रही है और इसी दिन व्रत का उद्यापन किया जा रहा है। तो आइए जानते हैं महालक्ष्मी व्रत पर उद्यापन का मुहूर्त और पूजन विधि के बारे में...

महालक्ष्मी व्रत का उद्यापन

हिंदू पंचांग के मुताबिक 24 सितंबर को शाम 05:45 मिनट से आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि की शुरुआत हो रही है। वहीं अगले दिन यानी की 25 सितंबर 2024 की शाम 04:44 मिनट पर इस तिथि की समाप्ति होगी। उदयातिथि के हिसाब से 24 सितंबर महालक्ष्मी व्रत का उद्यापन किया जाएगा।

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पूजन विधि

महालक्ष्मी व्रत के आखिरी दिन पूजा स्थल पर सबसे पहले हल्दी से कमल बनाएं और फिर वहां पर गज पर बैठी मां लक्ष्मी की मूर्ति स्थापित करें। पूजा स्थल पर श्रीयंत्र रखना ना भूलें। क्योंकि यह मां लक्ष्मी का प्रिय यंत्र माना जाता है। इसके बाद फल-फूल आदि से माता का श्रृंगार करें और एक कलश में जल रखें। इस कलश में पान का पत्ता डालें और उसके ऊपर नारियल रखें। वहीं मालपुए को समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। मालपुआ बनाने के लिए मैदा और खोए से दो अलग-अलग बैटर तैयार कर माता रानी को भोग लगाएं।

पूजा के दौरान मां लक्ष्मी के गजलक्ष्मी स्वरूप की पूजा करें। इस पूजा में हाथी की भी पूजा करें और पूजा स्थल पर कमलगट्टे की माला रखें। पूजा में भोग व प्रसाद के लिए खीर बनाई जाती है। वहीं मां गजलक्ष्मी की पूजा के लिए 16 दीपक जलाएं और फिर विधि-विधान से पूजा-अर्चना करें। चंद्र देव को अर्घ्य देकर व्रत का उद्यापन करें और फिर अगले दिन व्रत खोलें।

महत्व

बता दें कि हिंदू धर्म में महालक्ष्मी व्रत पूरे 16 दिनों तक किया जाता है। हालांकि यह निर्जला व्रत नहीं होता है। लेकिन इस व्रत के दौरान अन्न ग्रहण करने की मनाही होती है। इस व्रत के दौरान आप फलाहार कर सकते हैं। व्रत के 16वें दिन उद्यापन किया जाता है। जो लोग पूरे 16 दिनों का व्रत करने में असमर्थ होते हैं, वह शुरूआत या फिर आखिरी के 3 व्रत करते हैं। इस व्रत को करने से जातक की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और जीवन में सुख-समृद्धि व खुशहाली बनी रहती है।

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