Bhaum Pradosh Vrat: भौम प्रदोष व्रत रखने से पापों से मिलती है मुक्ति

Bhaum Pradosh Vrat
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भौम प्रदोष व्रत भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित होता है। भगवान शिव के साथ-साथ माता पार्वती की विशेष कृपा पाने के लिए प्रदोष व्रत रखा जाता है। पंडितों के अनुसार प्रदोष व्रत रखना बहुत शुभ और लाभदायक होता है।

आज भौम प्रदोष व्रत है, हिन्दू धर्म में इस व्रत का खास महत्व है। इस व्रत से शिवधाम की प्राप्ति होती है और धन से जुड़ी समस्याएं दूर होती है तो आइए हम आपको भौम प्रदोष व्रत का महत्व एवं पूजा विधि के बारे में बताते हैं।  

जाने प्रदोष व्रत के बारे में 

यह व्रत भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित होता है। भगवान शिव के साथ-साथ माता पार्वती की विशेष कृपा पाने के लिए प्रदोष व्रत रखा जाता है। पंडितों के अनुसार प्रदोष व्रत रखना बहुत शुभ और लाभदायक होता है। यह व्रत सम्पूर्ण शिव परिवार की कृपा प्राप्त करने का विशेष अवसर होता है। सिर्फ इस एक व्रत के करने से ही सम्पूर्ण शिव परिवार की कृपा प्राप्त होती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार विधि विधान के साथ प्रदोष व्रत करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और संतान सुख से वंचित लोगों को संतान की प्राप्ति होती है। प्रत्येक महीने 2 प्रदोष व्रत आते हैं, पहला प्रदोष व्रत शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को और दूसरा कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को रखा जाता है, जीवन में खुशहाली आती है। इस दिन दान का भी खास महत्व होता है। लाल वस्त्र, तांबा, मसूर की दाल, गुड़ इत्यादि का दान करें। कुंडली में ग्रहों की दशा भी सुधरेगी। इस व्रत को करने से भक्तों को भगवान शिव और माता पार्वती की विशेष कृपा प्राप्त होती है, इसी कारण हिंदू धर्म में यह व्रत बहुत लोकप्रिय है।

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इस बार प्रदोष व्रत 15 अक्टूबर, दिन मंगलवार को पड़ रहा है. मंगलवार को पड़ने वाले प्रदोष व्रत को भौम प्रदोष व्रत कहा जाता है। मंगलवार के दिन होने के कारण भौम प्रदोष व्रत के दिन शिव परिवार के साथ-साथ हनुमान जी की भी पूजा अर्चना करने की परंपरा है। मान्यता है कि विधि विधान के साथ भौम प्रदोष व्रत रखने से भक्तों के सभी प्रकार के संकटों का नाश होता है और कुंडली में स्थित मांगलिक दोष से भी राहत मिलती है।

भौम प्रदोष व्रत का शुभ मुहूर्त 

वैदिक पंचांग के अनुसार, अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि का आरंभ 15 अक्टूबर, दिन मंगलवार को सुबह 3 बजकर 42 मिनट पर होगा और इसका समापन अगले दिन, 16 अक्टूबर 2024 की सुबह 12 बजकर 19 मिनट पर होगा, इसलिए उदया तिथि के अनुसार, 15 अक्टूबर 2024 दिन मंगलवार को ही भौम प्रदोष व्रत रखा जाएगा।

भौम प्रदोष व्रत में ऐसे करें पूजा

भौम प्रदोष व्रत के दिन सुबह जल्दी उठकर घर की साफ सफाई करें और उसके बाद स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें। अब भगवान शिव को स्मरण करते हुए व्रत का संकल्प लें। अब घर के मंदिर या पूजा स्थल की अच्छे से साफ सफाई करें और शुद्धि के लिए गंगाजल छिड़कें, अब भगवान शिव और माता पार्वती के साथ साथ हनुमान जी की भी प्रतिमा स्थापित करें और पूजा अर्चना करें। अब प्रदोष काल में भी भगवान शिव, माता पार्वती और हनुमान जी की पूजा अर्चना करें। दीपक और धूप जलाएं और शिवलिंग का गंगाजल, दूध, दही, शहद, घी आदि से अभिषेक करें।

शिवलिंग पर बेलपत्र, धतूरा, चंदन, फूल आदि चढ़ाएं. मां पार्वती और हनुमान जी को भी तिलक करें और अक्षत, फल और फूल आदि अर्पित करें. भगवान शिव की पूजा करते हुए मंत्रों का जाप करें। भौम प्रदोष व्रत की कथा सुनें, हनुमान जी की पूजा अर्चना के लिए हनुमान चालीसा का पाठ जरूर करें और प्रसाद में उनको बूंदी या बूंदी के लड्डू अर्पित करें। भौम प्रदोष व्रत के दिन हनुमान जी की पूजा अर्चना करने से मंगल ग्रह की शांति होती है और मंगल ग्रह से संबंधित दोष दूर हो जाते हैं।

भौम प्रदोष व्रत का महत्व

प्रदोष व्रत का काफी महत्व माना जाता है, इस व्रत को करने से भगवान शिव और माता पार्वती की विशेष कृपा प्राप्त होती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार है कि पूर्ण श्रद्धा और भक्ति भाव के साथ यह व्रत करने से साधक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और साधक को संतान प्राप्ति का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है। इसलिए संतान प्राप्ति की इच्छा के लिए भी यह व्रत रखा जाता है। पंडितों के अनुसार इस व्रत को करने से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह व्रत ग्रह दोषों को दूर करने में भी सहायक होता है, विशेषकर मंगल ग्रह से संबंधित दोषों के निवारण के लिए भौम प्रदोष व्रत का विशेष महत्व है। प्रदोष व्रत करने से व्यक्ति के जीवन में सुख-समृद्धि आती है और व्यक्ति बीमारियों और समस्याओं से मुक्त हो जाता है। यह व्रत स्वास्थ्य के लिए भी बहुत लाभकारी माना जाता है।

भौम प्रदोष व्रत से जुड़ी पौराणिक कथा 

पंडितों के अनुसार भौम प्रदोष व्रत से जुड़ी कई कथाएं प्रचलित हैं। एक कथा के अनुसार एक गांव में गरीब ब्राह्मणी अपने बेटे के साथ रहती थी। वह रोज अपने बेटे के साथ भीख मांगने जाती थी। एक दिन उसे रास्ते में विदर्भ का राजकुमार मिला जो घायल अवस्था में था। उस राजकुमार को पड़ोसी राज्य ने आक्रमण कर उसका राज्य हड़प लिया और उसे बीमार बना दिया था। ब्राह्मणी उसे घर ले आई और उसकी सेवा करने लगी। सेवा से वह राजकुमार ठीक हो गया और उसकी शादी एक गंधर्व पुत्री से हो गयी। गंधर्व की सहायता से राजकुमार को अपना राज्य मिल गया। इसके बाद राजकुमार ने ब्राह्मण के बेटे को अपना मंत्री बना लिया। इस तरह प्रदोष व्रत के फल से न केवल ब्राह्मणी के दिन सुधर गए बल्कि राजकुमार को भी उसका खोया राज्य वापस मिल गया।  

प्रदोष व्रत से जुड़ी पूजा-सामग्री

पंडितों के अनुसार भौम प्रदोष व्रत की पूजा खास होती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पुष्प, पंच फल पंच मेवा, रत्न, सोना, चांदी, दक्षिणा, पूजा के बर्तन, कुशासन, दही, शुद्ध देशी घी, शहद, गंगा जल, पवित्र जल, पंच रस, इत्र, गंध रोली, मौली जनेऊ, पंच मिष्ठान्न, बिल्वपत्र, धतूरा, भांग, बेर, आम्र मंजरी, जौ की बालें,तुलसी दल, मंदार पुष्प, गाय का कच्चा दूध, ईख का रस, कपूर, धूप, दीप, रूई, मलयागिरी, चंदन, शिव व मां पार्वती की श्रृंगार की सामग्री पूजा में जरूर शामिल करें।

भौम प्रदोष व्रत में इन मंत्रों का जाप करें 

पूजा के दौरान कुछ मंत्रों का जाप जरूर करें। भगवान शिव का जलाभिषेक करते हुए “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जाप करें। ऐसा करने से मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। सुखमय वैवाहिक जीवन के लिए “ॐ महादेवाय नमः” और “ॐ पार्वती नमः” मंत्र का जाप भी कर सकते हैं। महामृत्युंजय मंत्र का जाप जरूर करें।

- प्रज्ञा पाण्डेय

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