Sheetala Ashtami 2025: शीतला अष्टमी व्रत से होते हैं सभी दुख दूर

Sheetala Ashtami
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बसौड़ा पूजा, शीतला माता को समर्पित लोकप्रिय त्योहार है। यह त्योहार चैत्र मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है। आमतौर पर यह होली के आठ दिनों के बाद पड़ता है लेकिन कई लोग इसे होली के बाद पहले सोमवार या शुक्रवार को मनाते हैं।

आज शीतला अष्टमी व्रत है, शीतला अष्टमी को बसौड़ा भी कहा जाता है। यह तिथि पूर्ण रूप से मां शीतला की पूजा के लिए समर्पित है। शीतला माता को पार्वती का रूप कहा जाता है इस दिन शीतला माता को बासी खाने का भोग लगाया जाता है तो आइए हम आपको शीतला अष्टमी व्रत का महत्व एवं पूजा विधि के बारे में बताते हैं।

जानें शीतला अष्टमी के बारे में 

बसौड़ा पूजा, शीतला माता को समर्पित लोकप्रिय त्योहार है। यह त्योहार चैत्र मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है। आमतौर पर यह होली के आठ दिनों के बाद पड़ता है लेकिन कई लोग इसे होली के बाद पहले सोमवार या शुक्रवार को मनाते हैं। शीतला माता को सेहत और सफाई की देवी माना जाता है। पौराणिक मान्यता है कि शीतला माता, देवी पार्वती का ही रूप हैं। उन्हें चेचक, त्वचा रोग को ठीक करने वाली देवी भी कहा जाता है। इस साल शीतला अष्टमी का व्रत शनिवार, 22 मार्च 2025 के दिन रखा जाएगा। बसौड़ा या शीतला अष्टमी का यह त्योहार उत्तर भारतीय राज्यों जैसे गुजरात, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में अधिक लोकप्रिय है। राजस्थान राज्य में शीतला अष्टमी का त्यौहार बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस अवसर मेला व लोक संगीत के कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जाता है। भक्त इस पर्व को बड़े ही हर्षोल्लास और भक्ति के साथ मनाते हैं। पंडितों के अनुसार इस चुने हुए दिन पर व्रत रखने से उन्हें कई तरह की बीमारियों से बचाव होता है।

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शीतला अष्टमी पर क्यों खाते हैं बासी खाना

अक्सर लोगों का सवाल होता है कि शीतला अष्टमी के दिन बासी खाना क्यों खाया जाता है। शीतला अष्टमी का त्योहार गर्मी की शुरुआत में आता है। इस समय मौसम बदलता है, जिससे बीमारियां होने का खतरा रहता है। इसलिए, इस दिन बासी खाना खाना अच्छा माना जाता है। माता शीतला को भी बासी भोजन पसंद है और उन्हें इसी का भोग लगाया जाता है। इस दिन चूल्हा नहीं जलाते और केवल बासी खाना ही खाते हैं। इसके पीछे पौराणिक मान्यता है कि उष्मा या गर्मी से त्वचा संबंधी रोग होते हैं इसलिए इस दिन बासी और ठंडी तासीर वाली चीजें खाई जाती हैं।

शीतला अष्टमी के दिन ऐसे करें पूजा 

शीतला सप्तमी से एक दिन पहले ओलिया, खाजा, चूरमा, मगद, नमक पारे, शक्कर पारे, बेसन चक्की, पुए, पकौड़ी, राबड़ी, बाजरे की रोटी, पूड़ी और सब्जियां बनाई जाती हैं। कुल्हड़ में मोठ और बाजरा भी भिगो दिया जाता है। इस दौरान पूजा से पहले किसी भी पकवान को नहीं खाना चाहिए। छठ पूजा में सप्तमी से एक दिन पहले खास तैयारी होती है। इस दिन रात में खाना बनाने के बाद रसोई की सफाई की जाती है। फिर पूजा होती है। पूजा में रोली, मौली, फूल और वस्त्र चढ़ाए जाते हैं। इस पूजा के बाद चूल्हा नहीं जलाते। शीतला अष्टमी के दिन ठंडे पानी से नहाने के बाद इन सभी चीजों का भोग शीतला माता को लगाया जाता है। इसके बाद बचे हुए भोजन को प्रसाद के रूप में वितरित करें और स्वंय भी खा लें।

शीतला अष्टमी पर क्यों होती है शीतला माता की पूजा

पंडितों के अनुसार शीतला माता को रोगों से बचाने वाली देवी माना जाता है। खासकर चेचक, खसरा और त्वचा की बीमारियों से। शीतला अष्टमी पर व्रत रखने और उनकी पूजा करने से रोगों से छुटकारा मिलता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माता अपने भक्तों के सारे दुख दूर करती हैं। उनकी पूजा करने से चेचक जैसी बीमारियां भी ठीक हो जाती हैं।

शीतला अष्टमी का है विशेष महत्व

माता शीतला को रोगों की नाशक देवी माना जाता है। विशेष रूप से चेचक, खसरा, और अन्य संक्रामक बीमारियों से रक्षा के लिए इनकी पूजा की जाती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, माता शीतला के पूजन से महामारी और रोगों का नाश होता है और परिवार स्वास्थ्य और समृद्धि प्राप्त करता है।

जानें शीतला अष्टमी के नियम

शीतला अष्टमी के दिन घर में चूल्हा जलाने की मनाही होती है, इसलिए भोजन एक दिन पहले ही बना लिया जाता है। माता शीतला की पूजा के दौरान श्रद्धा और शांति का पालन करना चाहिए, अधिक शोर-शराबा नहीं करना चाहिए। व्रतधारी को सात्विक आहार ग्रहण करना चाहिए और दिनभर संयम एवं भक्ति भाव बनाए रखना चाहिए। बासी भोजन को श्रद्धा के साथ ग्रहण करना चाहिए और इसे अपवित्र नहीं मानना चाहिए। पूजा के बाद माता शीतला का चरणामृत ग्रहण करना चाहिए और बच्चों को भी देना चाहिए, जिससे वे रोगों से सुरक्षित रहें।

बसौड़े पर शीतला माता की पूजा का महत्व

बसौड़ा पर शीतला माता की पूजा की जाती है। माता काली जिस तरह असुरों का नाश करती हैं, उसी तरह शीतला माता रोगों और कष्टों रूपी राक्षसों का अंत करती हैं। इसका मतलब है कि शीतला माता बीमारियों और परेशानियों से हमारी रक्षा करती हैं। बसौड़ा सर्दी की समाप्ति और गर्मी के आगमन का संकेत है। गर्मी शुरू होते ही त्वचा रोग शुरू हो जाते हैं इसलिए शीतला माता से गर्मी से प्रकोप से बचाव के लिए प्रार्थना की जाती है। शीतला माता को शीतलता की देवी कहा जाता है। इसका अर्थ है कि तन और मन जब किसी तरह की उष्मा या ताप का अनुभव करते हैं, तो शीतला माता का नाम लिया जाता है।

शीतला सप्तमी और अष्टमी

देश में कुछ स्थानों पर शीतला माता की पूजा चैत्र महीने के कृष्णपक्ष की सप्तमी को और कुछ जगह अष्टमी पर होती है। सप्तमी तिथि के स्वामी सूर्य और अष्टमी के देवता शिव होते हैं। दोनों ही उग्र देव होने से इन दोनों तिथियों में शीतला माता की पूजा की जा सकती है। निर्णय सिंधु ग्रंथ के मुताबिक इस व्रत में सूर्योदय व्यापिनी तिथि ली जाती है।

शीतला सप्तमी

पंचांग के अनुसार, चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि की शुरुआत 21 मार्च को देर रात 02:45 मिनट पर शुरू होगी और 22 मार्च को सुबह 04:23 मिनट पर समाप्त होगी। शीतला सप्तमी पर पूजा के लिए शुभ समय 21 मार्च को सुबह 06:24 मिनट से लेकर शाम 06:33 मिनट तक है। इस दौरान साधक देवी मां शीतला की पूजा कर सकते हैं।

- प्रज्ञा पाण्डेय

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