बैंक एफडी में किसी प्रकार के नुकसान से बचने के लिए इन पांच जोखिमों के बारे में अवश्य जानें, अन्यथा बना रहेगा पैसा डूबने का खतरा
आमतौर पर कई बार बैंक डूबने जैसी परिस्थिति/सिचुएशन देखी गई है। ऐसे में निवेशक/इंवेस्टर की जमा पर खतरा बढ़ जाता है। बहरहाल, आरबीआई के नए नियम के तहत किसी बैंक के डूबने पर कुल जमा पर महज 5 लाख रुपये तक का ही इंश्योरेंस मिलता है।
सावधि जमा यानी फिक्स्ड डिपॉजिट (एफडी) निवेश मतलब इंवेस्टमेंट का एक अच्छा विकल्प है। क्योंकि इसमें बाजार के उतार-चढ़ाव का कोई भी फर्क नहीं पड़ता है। इसलिए लोगों का मानना है कि सावधि जमा/एफडी सबसे सुरक्षित और भरोसेमंद निवेश है, लेकिन यहां आपको ये भी जानने की जरूरत है कि ये ऑप्शन भी पूरी तरह से सुरक्षित नहीं है। यह बात अलग है कि आज के समय में लोगों को सावधि जमा/फिक्स्ड डिपॉजिट इसलिए पसंद है, क्योंकि इसमें अपने मन मुताबिक समय सेट करके आसानी से सावधि जमा खाता (एफडी अकाउंट) ओपन कर सकते हैं। और जब आपका चुना गया टाइम पूरा होता है तो फिर उस अकाउंट में जमा किया अमाउंट और तय इंटरेस्ट रेट जोड़कर पैसे वापस कर दिए जाते हैं।
हालांकि कुछ निवेश सलाहकार (इंवेस्टमेंट एडवाइसर) का मानना है कि इसकी भी कुछ सीमाएं हैं। इसमें बैंकों के डिफॉल्ट होने पर आपका पैसा डूबने का खतरा अधिक रहता है। वहीं, मैच्योरिटी से पहले पैसा निकालने पर पेनाल्टी भी भरनी होती है। दूसरे शब्दों में, बैंकों में सावधि जमा यानी फिक्स्ड डिपॉजिट (एफडी) हमेशा से ही निवेश का लोकप्रिय साधन रहा है। क्योंकि इसमें निवेशकों को न सिर्फ निश्चित रिटर्न मिलता है बल्कि जोखिम भी कम रहता है। लेकिन, वास्तव में ऐसा नहीं है। एफडी को भले ही सबसे कम जोखिम वाला निवेश विकल्प माना जाता है, लेकिन इसकी भी अपनी सीमाएं हैं। जहां इसमें बैंकों के डिफॉल्ट करने पर आपका पैसा डूबने का खतरा रहता है। वहीं मैच्योरिटी से पहले फंड निकासी की सुविधा नहीं होती है। खास बात यह कि महंगाई भी एफडी के ब्याज को प्रभावित करती हैं।
लिहाजा, यहां पर हम अपने पेशेवर अनुभव के आधार पर ऐसे ही पांच जोखिम के बारे में बता रहे हैं, जिनका एफडी कराते समय अवश्य ध्यान रखना चाहिए।
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# पहला, हमेशा बना रहता है डिफॉल्ट का खतरा
आमतौर पर कई बार बैंक डूबने जैसी परिस्थिति/सिचुएशन देखी गई है। ऐसे में निवेशक/इंवेस्टर की जमा पर खतरा बढ़ जाता है। बहरहाल, आरबीआई के नए नियम के तहत किसी बैंक के डूबने पर कुल जमा पर महज 5 लाख रुपये तक का ही इंश्योरेंस मिलता है। लिहाजा, यदि किसी बैंक में 15 लाख रुपये का एफडी किया हुआ है और वह बैंक डूब जाता है तो आपको केवल 5 लाख रुपये तक ही मिलेंगे। बाकी 10 लाख रुपये के डूबने का खतरा रहता है। कुछ स्मॉल को-ऑपरेटिव बैंक के डूबने के मामले भी सामने आए हैं। ऐसी स्थिति में निवेशकों की जमा पर जोखिम बढ़ जाता है।
# दूसरा, मैच्योरिटी से पहले फंड निकासी नहीं और यदि की तो भरनी पड़ती है पेनेल्टी, कोई ब्याज भी नहीं मिलता
कोई भी सावधि जमा (एफडी) में एक निश्चित अवधि के लिए ही निवेश किया जाता है। लिहाजा, इसमें तय अवधि से पहले आप अपने फंड की निकासी नहीं कर सकते हैं। वहीं, मान लीजिए कि आपने टैक्स सेविंग एफडी किया है, जिसकी लॉकइन अवधि पांच साल है तो आप मैच्योरिटी के बाद ही फंड की निकासी कर सकते हैं। जबकि मैच्योरिटी से पहले फंड की निकासी पर आपको नुकसान हो सकता है। इसके अतिरिक्त, कई बैंक एफडी से ऑनलाइन निकासी की सुविधा नहीं देते हैं। ऐसे में फंड निकासी के लिए आपको बैंक शाखा जाकर कागजी कार्यवाही करनी पड़ती है। दूसरे शब्दों में, यदि आप जरूरत पर पैसा निकालना चाहते है तो एफडी तोड़ी नहीं जा सकती। लेकिन फिर भी यदि आप उसे तोड़ते हैं तो बैंक आपको ब्याज नहीं देगी और पेनल्टी भी भरनी होती है, सो अलग। हां, पेनेल्टी कितनी हो सकती है ये एफडी करते समय शर्तों में लिखा होता है, जो हर बैंक की अलग-अलग हो सकती है।
तीसरा, 60 साल से कम उम्र के लोगों को करना पड़ता है अधिक टैक्स का भुगतान
फिक्स्ड डिपॉजिट (एफडी) पर ब्याज से होने वाली कमाई करयोग्य (टैक्सेबल) होती है। इस पर कमाई के साथ जोड़कर स्लैब के हिसाब से टैक्स लगता है। हालांकि, यदि आपकी उम्र 60 साल से अधिक है तो आपको आयकर कानून की धारा 80 बी के तहत एफडी पर ब्याज के रूप में होने वाली कमाई पर 50,000 रुपये तक की छूट मिलती है।
चतुर्थ, महंगाई बढ़ने पर होता है कम मुनाफा
आपको पता है कि कमरतोड़ महंगाई हर प्रकार के निवेश को प्रभावित करती है। साथ ही निवेश जोखिम भी बढ़ाती है। मान लीजिए, कोई बैंक एफडी पर 8 फीसदी ब्याज दे रहा है और उस समय महंगाई की दर 7 फीसदी है तो आपको अपनी जमा धनराशि पर वास्तविक रिटर्न सिर्फ एक फीसदी ही मिल रहा है। हां, इतना जरूर है कि एफडी पर बाजार के उतार-चढ़ाव का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। लेकिन, वास्तविक रिटर्न महंगाई के हिसाब से बढ़ता या घटता रहता है। जिससे कम मुनाफा होता है। इसमें बाजार में होने वाले मुनाफे का भी कोई फायदा नहीं मिलेगा। क्योंकि इसमें इंटरेस्ट रेट फिक्स रहती है। वहीं, अगर महंगाई दर 6 फीसदी हो गई और आपको मिलने वाला ब्याज केवल 5 से 6 फीसदी है तो ऐसे में आपको केवल नेगेटिव रिटर्न ही मिलेगा। इसलिए एफडी करने से पहले उससे जुड़े सभी पहलुओं पर बारीकीपूर्वक विचार कर लीजिये। अन्यथा लेने के देने पड़ सकते हैं।
पांचवां, फिर से निवेश पर कम ब्याज
सावधि जमा (एफडी) मैच्योर होने पर आपके पास दो विकल्प ही बचे होते हैं। पहला, आप पैसे निकाल लें। दूसरा, एफडी के रूप में फिर से निवेश कर दें। आप चाहें तो नई एफडी भी खुलवा सकते हैं, लेकिन इस पर उतना ही ब्याज मिलेगा, जो अभी लागू है। स्वाभाविक है कि इस कदम से आपके दीर्घकालिक वित्तीय लक्ष्यों पर जोखिम बढ़ जाएगा, क्योंकि इस एफडी पर पहले की तरह आपको ज्यादा ब्याज नहीं मिलेगा। इससे स्वाभाविक है कि रिटर्न कम मिलता है।
इसलिए फिक्स्ड डिपॉजिट में इंवेस्ट करने का पहला नुकसान ये है कि इसमें इंटरेस्ट रेट फिक्स होती है। यानी जो ब्याज आपको बैंक ने दिया है, वो फिक्स रहता है। जबकि स्टॉक या म्यूचुअल फंड जैसे बाकी इंवेस्मेंट ऑप्शन में आपको जो ब्याज मिलता है, वो एफडी से कही ज्यादा होता है।
निष्कर्षत: निवेश सलाहकार बताते हैं कि एफडी कराते समय महंगाई, डिफॉल्ट, रिटर्न, टैक्स देनदारी की गणना अवश्य करें। वहीं, अपनी पूरी रकम कभी भी एफडी में न डालें। बल्कि ऐसे साधनों में भी निवेश करें, जहां से जरूरत पड़ने पर आपको पूंजी मिल जाए। इसलिए एक इंवेस्टर को इसके बारे में समझने और जानने की जरूरत होती है। आइए एफडी में होने वाले नुकसान के लिये आप जीवन भर खुद को कोसते रह जाएंगे। क्योंकि बैंक फिक्स्ड डिपॉजिट में जरा-सी चूक से किसी को भी घाटा हो सकता है। इसलिए उपर्युक्त बातों का खास ध्यान रखिए, जो अक्सर बैंक आपको नहीं बताता है, जिससे आप ठगे से रह जाते हैं।
- कमलेश पांडेय
वरिष्ठ पत्रकार व स्तम्भकार
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