क्या है राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली ? कैसे, कितना और कब तक करना होता है इसमें योगदान ?
राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली यानी एनपीएस 1 जनवरी 2004 को सभी नागरिकों को सेवानिवृत्ति आय प्रदान करने के उद्देश्य से आरंभ की गई थी। इसका लक्ष्य पेंशन के सुधारों को स्थापित करना और नागरिकों में सेवानिवृत्ति के लिए बचत की आदत को बढ़ावा देना है।
नेशनल पेंशन सिस्टम यानी एनपीएस केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गयी एक पेंशन-योजना है, जिसे रिटायरमेंट सेविंग स्कीम कहा जाता है। यह एक प्रकार की पेंशन कम इन्वेस्टमेंट स्कीम है जो कि बाजार आधारित रिटर्न की गारंटी देती है। इसको ई-ई-ई यानी अंशदान पर निवेश, प्रतिफल और निकासी तीनों स्तर पर कर में छूट प्राप्त होती है, जैसा कि कर्मचारी भविष्य निधि यानी ईपीएफ और लोक भविष्य निधि यानी पीपीएफ योजनाओं के मामले में है।
उल्लेखनीय है कि एनपीएस के तहत कर्मचारी सेवानिवृत्ति के समय कुल जमा कोष में से 60 प्रतिशत राशि निकालने का पात्र है, जबकि शेष 40 प्रतिशत जुड़ी राशि पेंशन योजना में चली जाती है। यह योजना 1 जनवरी 2004 से आरम्भ हुई थी। आरंभ में यह योजना सरकार में भर्ती होने वाले नए व्यक्तियों यानी सशस्त्र सेना बलों के अलावा, के लिए आरंभ की गई थी। लेकिन इसकी बढ़ती लोकप्रियता के बाद 1 मई 2009 से यह स्वैच्छिक आधार पर असंगठित क्षेत्र के कामगारों सहित देश के सभी नागरिकों को प्रदान की जा रही है।
दरअसल, इस योजना के सहारे सरकार ने स्वयं को पेंशन की जिम्मेदारी से मुक्त करने की कोशिश की है। लिहाजा, सरकार की भूमिका केवल शुरुआती दौर में बराबर के अंशदाता के रूप में है। खास बात यह कि कर्मचारी और सरकार के अंशदान से संचित राशी निश्चित वित्तिय संस्थानों को मिलती है जिसका वे दिए गए निर्देशों के तहत प्रबंधन करते हैं।
बता दें कि 10 दिसंबर 2018 को भारत सरकार ने एनपीएस से पूरी राशि की निकासी कर मुक्त बना दी है। अब एनपीएस के टायर-2 के तहत योगदान 80 सी के तहत कर मुक्त के लिए कवर किया गया है। जबकि, आयकर लाभ के लिए 1.50 लाख, बशर्ते तीन साल की लॉक-इन अवधि हो। एनपीएस में किए गए परिवर्तन आयकर अधिनियम, 1961 में हुए बदलावों के माध्यम से अधिसूचित किए जाएंगे, जो 2019 के केंद्रीय बजट में वित्त विधेयक के माध्यम से किया गया है।
इसे भी पढ़ें: कर्मचारी भविष्य निधि का ऐसे उठाइए लाभ, पर जरूर बरतें यह सावधानियां
गौरतलब है कि एनपीएस सीमित ईईई है, 60 प्रतिशत की सीमा तक, जबकि 40 प्रतिशत को अनिवार्य रूप से वार्षिकी (एन्युटी) खरीदने के लिए उपयोग किया जाना चाहिए, जो लागू कर स्लैब पर कर योग्य है। इसकी देखरेख पेंशन निधि विनियामक एवं विकास प्राधिकरण मतलब पीएफआरडीए की ओर से की जाती है। भारत सरकार ने पेंशन क्षेत्र के विकास और विनियमन के लिए 10 अक्तूबर 2003 को पीएफआरडीए को स्थापित किया।
मसलन, राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली यानी एनपीएस 1 जनवरी 2004 को सभी नागरिकों को सेवानिवृत्ति आय प्रदान करने के उद्देश्य से आरंभ की गई थी। इसका लक्ष्य पेंशन के सुधारों को स्थापित करना और नागरिकों में सेवानिवृत्ति के लिए बचत की आदत को बढ़ावा देना है। इसके अलावा, केंद्र सरकार ने सेवानिवृत्ति के लिए असंगठित क्षेत्र को स्वैच्छिक बचत का बढ़ावा देने के लिए केंद्रीय बजट 2010-11 में एक सह अंशदान पेंशन योजना 'स्वावलंबन योजना' आरंभ की।
इस स्वावलंबन योजना के तहत सरकार प्रत्येक एनपीएस अंश दाता को 1000 रुपए की राशि प्रदान करेगी जो न्यूनतम 1000 रुपए और अधिकतम 12000 रुपए का अंश दान प्रति वर्ष करता है। यह योजना वर्तमान में वित्तीय वर्ष 2016-17 तक लागू रही। फिर, दिसंबर 2018 में भारतीय कैबिनेट ने नेशनल पेंशन स्कीम में कुछ महत्वपूर्ण बदलाव किए हैं, ताकि नेशनल पेंशन स्कीम को निवेशकों के लिए ओर ज्यादा आकर्षक बनाया जा सके।
इसे भी पढ़ें: सौभाग्य योजना क्या है ? कैसे ले सकते हैं इसका लाभ ?
यहां पर यह बात बतानी जरूरी है कि वर्ष 2004 में जब एनपीएस को शुरू किया गया था, उस समय कर्मचारी को अपने मूल वेतन तथा महंगाई भत्ते का 10 प्रतिशत का योगदान नेशनल पेंशन स्कीम में करना होता था। लेकिन दिसंबर 2018 में केंद्र सरकार ने इस योगदान को बढ़ाकर 14 प्रतिशत कर दिया, जबकि कर्मचारी का योगदान 10 प्रतिशत ही है। इस अद्यतन बदलाव के पश्चात केंद्रीय कर्मचारियों को मिलने वाली पेंशन में काफी इजाफा होगा।
वहीं, दूसरा महत्वपूर्ण निर्णय टैक्स से संबंधित है। क्योंकि इससे पहले एनपीएस की परिपक्वता यानी मैच्यूरिटी पर केंद्रीय कर्मचारी पेंशन फण्ड में जमा राशि का 60 प्रतिशत निकाल सकते थे जिसमें 40 प्रतिशत राशि करमुक्त होती थी और 20 प्रतिशत पर कर लगता था। लेकिन नए बदलाव के अनुसार 60 प्रतिशत राशि को करमुक्त कर दिया गया है।
वहीं, तीसरा महत्वपूर्ण बदलाव निवेश को लेकर हुआ। अब कर्मचारियों को यह पूर्ण स्वतंत्रता होगी कि उनके द्वारा पेंशन में योगदान किया गया पैसा किस फण्ड में निवेशित हो। केंद्रीय कर्मचारी वर्ष में एक बार पेंशन फण्ड या इक्विटी को अपनी मर्जी के अनुसार बदल सकेंगे।
जाहिर है कि एनपीएस या नेशनल पेंशन सिस्टम एक खास किस्म की रिटायरमेंट सेविंग स्कीम है, जो पेंशन कम इन्वेस्टमेंट आधारित योजना है और बाजार आधारित रिटर्न की गारंटी देती है। अमूमन, एनपीएस सब्सक्राइबर्स जिस फंड में निवेश करते हैं उसे पेंशन फंड मैनेजर के माध्यम से पैसा बनाने वाली अलग-अलग स्कीम्स में निवेश किया जाता है। जिसकी देखरेख पीएफआरडीए की ओर से की जाती है। उसकी देखरेख में संचालित एनपीएस खाते में जमा सब्सक्राइबर्स के पैसों को इक्विटी मार्केट इंस्ट्रूमेंट्स, सरकारी प्रतिभूतियों (गवर्मेंट सिक्योरिटीज) और अन्य फिक्स्ड इनकम विकल्पों में निवेश किया जाता है। इससे सम्बन्धित सभी जानकारी एनएसडीएल की वेबसाइट पर उपलब्ध है।
उल्लेखनीय है कि एनएसडीएल या नेशनल सिक्योरिटीज डिपॉजिटरी लिमिटेड के हिस्से के रूप में एनएसडीएल ई-गर्वनेंस इंन्फ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली के लिए केंद्रीय रिकॉर्ड रखने वाली एक एजेंसी है। इसी के माध्यम से एनपीएस सब्सक्राइबर्स के पैसों को पेशन फंड्स की ओर से निवेश किया जाता है और यही पेंशन कार्पस प्रबंधन के लिए भी जवाबदेह होता है।
आपके लिए यह भी जानना जरूरी है कि एनपीएस दो तरह के खातों की पेशकश करता है। यह टियर-1 और टियर-2 है। टियर-1 खाते में जमा पैसों को आप तब तक नहीं निकाल सकते हैं जब तक कि आपकी उम्र 60 वर्ष की न हो जाए। जबकि, टियर-2 एनपीएस अकाउंट बचत खाते की तरह काम करता है, जहां सब्सक्राइबर्स को पैसों की निकासी की अनुमति होती है। इसके अलावा, विशेष परिस्थितियों में सब्सक्राइबर्स को आंशिक निकासी की अनुमति मिलती है। इस तरह की विशेष परिस्थितियों में गंभीर बीमारी और बच्चों की शादी शामिल होती है।
इसे भी पढ़ें: ईपीएफ के बारे में आपके मन में उठते हर सवाल के जवाब यह रहे
स्पष्ट है कि निवेशक अपने रिटायरमेंट खाते में योगदान देता है और नियोक्ता भी कर्मचारी के खाते में इस तरह का योगदान देता है। चूंकि ग्राहक किसी भी निश्चित लाभ के बिना अपने खाते में योगदान देते हैं और इस पर रिटर्न की राशि कुल कार्पस एवं उस पैसों से हुई आय पर निर्भर करती है। आपको पता होना चाहिए कि वर्तमान में एनपीएस में कर्मचारी का योगदान मूल वेतन का 10 फीसद हिस्सा है हालांकि सरकार इसमें अपने योगदान को 14 फीसद तक कर सकती है।
वहीं, एनपीएस के टियर वन अकाउंट में एक वित्त वर्ष के दौरान न्यूनतम योगदान 1,000 रुपये है। एनएसडीएल के अनुसार, जहां प्रत्येक योगदान 500 रुपये होना चाहिए, वहीं एक साल के भीतर कम से कम एक योगदान जरूरी होता है। जबकि, एनपीएस के टियर-2 अकाउंट में न्यूनतम योगदान 250 रुपये का होना चाहिए। हालांकि, इसमें मिनिमम बैलेंस मेंटेन करने की जरूरत नहीं होती है। बता दें कि एनपीएस सब्सक्राइबर्स आयकर अधिनियम की धारा 80 सीसीडी (1) के अंतर्गत कुल आय के 10 फीसद तक आयकर कटौती का दावा कर सकते हैं और 80 सीसीई के अंतर्गत कुल 1.5 लाख रुपये की कर छूट का दावा कर सकते हैं।
-कमलेश पांडेय
(वरिष्ठ पत्रकार व स्तम्भकार)
अन्य न्यूज़