कोचिंग सेंटर में हुई छात्रों की मौत का जिम्मेदार कौन?

Old Rajinder Nagar Incident
ANI
अशोक मधुप । Jul 29 2024 3:48PM

घटना होती है, जांच के आदेश होते हैं, ये ही आदेश जांच अधिकारियों को लूट का अधिकार दे देते हैं। इस आदेश के बाद जांच अधिकारी जाएंगे, कोचिंग सैंटर में कमी निकालेंगे। नोटिस देंगे। अपना सुविधा शुल्क वसूलेंगे और कुछ दिनों बाद सब फाइलों में दबकर रह जाएगा।

दिल्ली के ओल्ड राजेंद्र नगर स्थित राव आईएएस स्टडी (कोचिंग) सेन्टर के बेसमेंट में अचानक बारिश का पानी घुस जाने से चार घंटे से अधिक समय तक फंसे रहने से तीन छात्रों की मौत हो गई। घटना के समय बेसमेंट के पुस्तकालय में 30−35 छात्र थे। पानी आते देख बाकी निकल गए। तीन फंसे रह गए, उनकी मौत हो गई। कोचिंग सेंटर के स्वामी और कांड थनेटर को गिरफ्तार कर लिया गया है। इससे पहले मुकर्जी नगर दिल्ली के एक कोचिंग सेंटर में (15 जून 2023) को आग लग गई। छात्रों को कोचिंग सेंटर की खिड़की से निकलकर जान बचानी पड़ी। इस हादसे में 60 छात्र घायल भी हुए। कोचिंग सेंटर में हादसे होना, प्रतिभागियों का आत्महत्या करना आज आम है। घटना होती है। जांच के आदेश होते हैं किंतु होता कुछ नहीं। कोचिंग सेंटर चलाने वाले भारी प्रभावशाली है, दूसरे हमारी व्यवस्था पूरी तरह भ्रष्टाचार में डूबी है, पैसे के सामने इंसान की मौत की फाइले कूड़े में चली जाती हैं, फिर एक नया हादसा होता है, फिर जांच होती है, फिर फाइल कूड़े में चली जाती है।

राजेंद्र नगर के कोचिंग सेंटर में मृतक छात्रों की पहचान तानिया सोनी, श्रेया यादव (दोनों की उम्र 25 वर्ष) और नवीन डेल्विन (28) के रूप में की गई है। तानिया तेलंगाना और श्रेया उत्तर प्रदेश की थीं, जबकि नवीन केरल के निवासी थे। वे सभी सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कर रहे थे। शनिवार को कई छात्र कोचिंग सेंटर की बेसमेंट में बनी लाइब्रेरी में थे कि अचानक सैलाब सा आया और उसमें तीन छात्रों की तड़पकर मौत हो गई। बताया जाता है कि बेसमेंट की परमीशन स्टोर के लिए थी, लाइब्रेरी के लिए नही, फिर भी लाइब्रेरी चल रही थी। 

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दिल्ली पुलिस इस बात की जांच कर रही है कि पानी बेसमेंट तक कैसे पहुंचा, जिसका इस्तेमाल कोचिंग संस्थान लाइब्रेरी के तौर पर कर रहा था। प्रारंभिक जांच से पता चलता है कि बेसमेंट, जो जमीन से लगभग आठ फीट नीचे है, में एक लाइब्रेरी थी, जहां शनिवार शाम को कई छात्र मौजूद थे, सूत्रों के मुताबिक, भारी बारिश के बाद कोचिंग सेंटर का गेट बंद कर दिया गया। पानी को बिल्डिंग में प्रवेश करने से रोकने के लिए कोचिंग सेंटर के प्रवेश द्वार पर एक स्टील शेड लगाया गया है। पुलिस और अग्निशमन विभाग जांच कर रहे हैं कि बेसमेंट में पानी कैसे भरा, दिल्ली की मेयर शैली ओबेरॉय ने शहर के उन सभी कोचिंग सेंटरों के खिलाफ कार्रवाई का आदेश दिया जो इमारतों के बेसमेंट में चल रहे हैं। उन्होंने कहा कि ऐसे कोचिंग सेंटर भवन निर्माण उपनियमों का उल्लंघन हैं और मानदंडों के अनुरूप नहीं हैं। बताया जाता है कि नगर निगम की मिलीभगत से राजेंद्र नगर में 95 प्रतिशत कोचिंग बेसमेंट में चल रहे हैं।

लगभग एक साल पहले दिल्ली हाईकोर्ट ने मुखर्जी नगर स्थित एक कोचिंग सेंटर में 15 जून 2023 गुरुवार को लगी आग की घटना का शुक्रवार को खुद से संज्ञान लिया, कोर्ट ने दिल्ली सरकार, दिल्ली फायर सर्विस डिपार्टमेंट, दिल्ली पुलिस और एमसीडी को नोटिस जारी कर उनसे जवाब मांगा है। कोर्ट ने फायर सर्विस डिपार्टमेंट को निर्देश दिया कि वो ऐसे सभी संस्थानों में आग से बचाव के इंतजामों (फायर सेफ्टी ऑडिट) और उनके फायर सेफ्टी सर्टिफिकेट की जांच करे। ये आदेश दिल्ली हाईकोर्ट ने 16 जून 2023 को दिए। जांच ये भी होनी चाहिए कि कोर्ट के आदेश पर हुई जांच में क्या हुआ? कहीं सब खानापूरी होकर ही तो नहीं रह गई? यदि उस समय सही से जांच हो जाती। गलत रूप से चल रहे केंद्र बंद हो जाते तो निश्चित रूप से ये हादसा नहीं होता। ये हादसा इस बात को चिल्ला−चिल्लाकर बता रहा है कि ये जांच सही नहीं हुई। 

घटना होती है, जांच के आदेश होते हैं, ये ही आदेश जांच अधिकारियों को लूट का अधिकार दे देते हैं। इस आदेश के बाद जांच अधिकारी जाएंगे, कोचिंग सैंटर में कमी निकालेंगे। नोटिस देंगे। अपना सुविधा शुल्क वसूलेंगे और कुछ दिनों बाद सब फाइलों में दबकर रह जाएगा। कुछ समय बाद फिर हादसा होगा, फिर जांच होंगी। फिर अधिकारियों को आपदा में अवसर मिलेंगे। फिर खेल होगा। सब ऐसे ही चलता रहेगा, जैसे चल रहा है। इस भ्रष्ट हो चुकी सरकारी मशीनरी के सुधरने की उम्मीद नहीं लगती। कठोर अनुशासन लागू किये बिना ये सुधरने वाली नहीं। जरूरत सरकारी तंत्र को सुधारने की है। दरअसल मुखर्जी नगर हिंदी भाषी छात्रों और राजेंद्र नगर अंग्रेजी भाषी छात्रों का सिविल सेवा की तैयारी करने के बड़े केंद्र बन गया है। यहां कई कोचिंग संस्थानों का घर है। हर वर्ष सिविल सर्विसेज की परीक्षा में सबसे ज्यादा अभ्यर्थी भी यहीं से चयनित होते हैं।

एक जानकारी के अनुसार यूपीएससी की सिविल सर्विसेज परीक्षा की तैयारी करने के लिए मुखर्जी नगर व आसपास के क्षेत्रों में प्रत्येक वर्ष करीब एक लाख छात्र तैयारियों के लिए पहुंचते है। मुखर्जी नगर इलाका अपने आप में मिनी भारत है। यही हालत राजेंद्र नगर की भी है. यहां हर वर्ष प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने के लिए उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार, हरियाणा, कर्नाटक, उड़ीसा, पूर्वोत्तर राज्यों से भी छात्र पहुंचते हैं। मुखर्जी नगर और राजेंद्र नगर में में यूपीएससी की सिविल सर्विसेज की तैयारी करने वाले महंगे से लेकर सस्ते कोचिंग भी मौजूद हैं। यही वजह है कि यहां पर आर्खिक रूप से कमजोर परिवार से आने वाले बच्चे भी अपनी तैयारी आसानी से कर लेते हैं।

मुखर्जी नगर और राजेंद्र नगर के रिहायशी इमारतों में व्यावसायिक गतिविधियां चलाने का गढ़ बन चुका है। बीते एक दशक में यहां कोचिंग सेंटरों की बाढ़ आ गई है। ज्यादातर घरों में या तो कोचिंग सेंटर चल रहे हैं या फिर लाइब्रेरी या पीजी बनाकर संपत्ति मालिक चांदी काट रहे हैं लेकिन नगर निगम को शुल्क देने में अब भी कतराते हैं। इन संपत्तियों का व्यावसायिक उपयोग हो रहा है। ज्यादातर इमारतों को कोचिंग संस्थान में बदलने के लिए भवन उपनियमों का उल्लंघन किया गया है। तय मानकों को नजरअंदाज कर कमरों को हाल में तब्दील कर दिया गया है। इसके चलते कई इमारतें ढांचागत रूप से कमजोर भी हो गई हैं।

यूपीएससी, एसएससी आदि की तैयारी करने वाले छात्र कोचिंग संस्थान संचालकों की मनमानी के खिलाफ आवाज नहीं उठा पाते। इन्हें क्लास में भेड़-बकरियों की तरह ठूस कर पढ़ाया जाता है। 25 मई  2019 को गुजरात के सूरत के एक कोचिंग में आग लगने से 22 छात्र की मौत के बाद गुजरात सरकार ने अग्नि सुरक्षा निरीक्षण किए जाने तक गुजराज सरकार ने राज्य के सभी निजी कोचिंग केंद्रों को बंद करने का आदेश दिया। सरकार ने स्कूलों, कॉलेज, कोचिंग सेंटरों, अस्पतालों, शॉपिंग मॉल और अन्य व्यावसायिक भवनों के अग्नि सुरक्षा निरीक्षण का भी आदेश दिया। दिल्ली अग्निशमन सेवा ने दिल्ली के सभी कोचिंग सेंटरों का अग्नि सुरक्षा निरीक्षण करने का निर्णय लिया था। उस समय भी आदेश हुए थे। जांच हुई। नियमों के विपरीत चलने वालों को नोटिस देकर कार्रवाई पूरी कर दी गई। लोगों से संबधित अधिकारियों का प्रसन्न कर दिया। काम पहले ही तरह ही चलता रहा। इसमें भी ऐसा ही होता लगता है। दरअसल इस तरह की बड़ी घटनाएं संबधित अधिकारियों की आय का माध्यम बनते हैं। देखने में आया है कि विभाग के अधिकारी निरीक्षण कर कमी बता देते हैं। नोटिस भेज देतें हैं। प्राय इन्होंने ही अग्निशमन सुरक्षा के उपकरण लगाने वालों से मेल−जोल कर रखा है। ये उपकरण लगाने वाले विभागीय अधिकारियों के चहेते होते हैं तो काम मानक के अनुरूप नही करते। पूरा पैसा लेकर भी काम पूरा नही करते। सब पहले की तरह ही चलता रहता है। ऐसे में हादसे होने पर जब तक व्यवस्था के लिए जिम्मेदार अधिकारियों पर कठोर कार्रवाई नही होती , तब तक कुछ सुधरने वाला नही है। जांच करानी चाहिए कि इसमें किस−किस विभाग के अधिकारी की गलती रही है। किसने जिम्मेदारी नही निभाई। जिम्मदारी तो होने वाले अधिकारियों पर कठोर कार्रवाई भी होनी चाहिए, उनपर गैर इरादतन हत्या के मुकदमें दर्ज होने चाहिएं, भले ही वह रिटायर हो गए हों। यह भी तो होना चाहिए कि 2019 की सूरत की घटना के बाद हुई जांच में क्या हुआ था। इसके बिना कुछ होने वाला नही है। इस प्रकरण में तो नगर निगम की लापरवाही सीधे−सीधे नजर आती है। बिना अनुमति बेसमेंट में चलते कोंचिग पर रोक लगाना उसकी जिम्मेदारी है। दूसरी नालों की सफाई उसी का कार्य है। दोनो में लापरवाही हुई है। 

  

अशोक मधुप

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं) 

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