Interview: लाइसेंस विंग को रिफॉर्म करने की दरकार: पूर्व जज सुनील मिश्रा

Former Judge Sunil Mishra
Prabhasakshi

मसला जनस्वास्थ्य से जुड़ा हुआ है, तो सवाल उठना लाजिमी है। नकली चावल, मसले व दूध का सेवन करके कोई कैसे चुप बैठ सकता है। बिल्कुल आवाज उठानी चाहिए, आरोपियों के खिलाफ कानूनी लड़ाई भी लड़नी चाहिए।

खाद्य सामग्रियों में घपलेबाजी का होना अब कोई नई बात नहीं? मसाले, चावल, जीरा, वि-शुद्व दूध, व दवाओं में मिलावट की भरमार हैं। प्रशासन की नाक के नीचे बाजारों में खुलेआम नकली सामान बिकते हैं? इन सभी पर अंकुश लगाने की जिम्मेदारी केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अधीन भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण एफएसएसएआई की होती है। पर, ऐसा लगता है ये संस्था हाथ पर हाथ धरे बैठी है। नक्कालों की लगातार बढ़ती समस्याएं कैसे रूके, इसके लिए क्या कुछ होना चाहिए, के संबंध में पूर्व न्यायाधीश सुनील मिश्रा से पत्रकार डॉ. रमेश ठाकुर ने विस्तार से समझें की कोशिश की। जिनको अपने कार्यकाल में ऐसे तमाम केसों को देखने का अनुभव रहा है।

  

प्रश्नः नकली खाद्य पदार्थों को लेकर छिड़ी बहस में एफएसएसएआई की कार्यशैली सवालों के घेरे में है? क्या है इस संस्था का मुख्य कार्य और जिम्मा? 

उत्तरः मसला जनस्वास्थ्य से जुड़ा हुआ है, तो सवाल उठना लाजिमी है। नकली चावल, मसले व दूध का सेवन करके कोई कैसे चुप बैठ सकता है। बिल्कुल आवाज उठानी चाहिए, आरोपियों के खिलाफ कानूनी लड़ाई भी लड़नी चाहिए। देखिए, नकली और जालसाजी के तमाम मामलों को मैंने अदालत में देखें हैं जिनमें सर्वप्रथम ध्यान उस संस्था की ओर ही गया, जो सीधे इस तंत्र से वास्ता रखती हैं। भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण एक स्वायत्त निकाय संस्था है, जो केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अधीन रहकर संपूर्ण संपूर्ण भारत में खाद्य व्यवसायों की निगरानी और संचालन पंजीकरण प्रक्रिया में अपनी भूमिका निभाती है। अब सवाल ये है उनके द्वारा पंजीकृत कंपनियां बाजार में गड़बड़ी क्यों कर रही हैं? क्या उनकी सत्यता की जांच-पड़ताल अच्छे से नहीं हुई, या फिर दोनों के मध्य कोई मधुर संबंध स्थापित हुए? देखिए, वक्त का इशारा तो यही है, संस्थाई कार्य में बदलाव किया जाए, नियम-कानूनों की दोबारा से समीक्षाएं की जाएं।

प्रश्नः ताज्जुब ये है, पंतजलि के प्रॉडक्ट हों या एमडीएच कंपनी के मसाले, इन नामी कंपनियों की वस्तुएं भी नकली मिल रही हैं?

उत्तरः ताज्जुब नहीं, विमर्श का विषय है, कि ये ऐसी कंपनियां हैं जिन पर लोग आंख मूंद कर विश्वास कर उनके प्रोडक्ट का इस्तेमाल करते हैं। अगर ये ऐसा कर रही हैं, तो बाकी कंपनिया तो निश्चित ही करती होंगी। ऐसे में सख्त कानूनी कार्रवाई की जरूरत है। मिलावटखोर जितनी भी कंपनियां इस खेल में शामिल हैं, सभी पर भारी भरकम हर्जाना लगे। साथ ही तत्काल प्रभाव से लाइसेंस भी निरस्त किया जाए। सरकार-संस्थाएं अगर मुनाफा या टैक्स कमाने की परवाह करेंगी, तो ये कंपनियां लोगों के स्वास्थ्य के साथ और भी खिलवाड़ करेंगी। नकलचियों को पकड़ने के लिए अलग विभाग गठित हो, सप्ताहिक धरपकड़ हो, मॉनेटरिंग होती रहनी चाहिए, ब्रांडस् की जांच लेबोटरी में करवाने का प्रावधान बनें।

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प्रश्नः कई मर्तबा देखने में आता है कि खाद् प्रतिष्ठान लाइसेंस पंजीकरण संख्या भी डिस्प्ले नहीं करते?

उत्तरः समाज सतर्क है और ग्राहक पहले के मुकाबले अब ज्यादा जागरूक हुए हैं। ऐसी गलतियां पकड़ में आ जाती हैं। वैसे, नियमानुसार तकरीबन सभी खाद्य व्यवसायों को एफएसएसएआई द्वारा जारी पंजीकरण के 14 अंकों वाली संख्या को घोषित करना अनिवार्य होता है। लीगली पक्ष देखें, तो ऐसा न करना अपराध की श्रेणी में आता है। जब, कोई भी ऑपरेटर लेनदेन दस्तावेज़ जारी करता है। जैसे कि ट्रांसपोर्टर द्वारा परिवहन चालान, बिल व रसीद, उन सभी दस्तावेज़ों पर एफएसएसएआई नंबर का उल्लेख करना आवश्यक होता है। एकमात्र छूट जीएसटी ई-बिल में रहती है।

प्रश्नः रिपोर्टस कहती हैं कि नियमों का उल्लंघन सर्वाधिक ई-कॉमर्स कंपनियां करती हैं?

उत्तरः किसी एक को दोषी ठहराना मेरे हिसाब से उचित नहीं? तमाम कंपनियां अब देखा-देखी ऐसी नापाक हरकत करने लगी हैं। कह सहते हैं, ई-कॉमर्स इकाईयां, इलेक्ट्रॉनिक कंपनियां, डिजिटल प्लेटफॉर्म की कंपनियां में गड़बड़झाला ज्यादा है। ये बेलगाम हो चुकी हैं, इसकी वजह एक ये भी है, मोटा टैक्स सरकार को देती हैं जिससे ये बच जाती हैं। मार्केटप्लेस ई-कॉमर्स इकाई, जिसमें सामान या सेवाएं खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम-2006 की धारा 3 (जे) और 3 (एन) के तहत परिभाषित हैं। लेकिन फिर भी लाइसेंस विंग अगर चाहे, तो इनकी मनमानियां रोकी जा सकती हैं। हेल्थ मिनिस्ट्री को कठोर होना होगा। ऊपर से जब तक डंडा नहीं चलेगा, बात नहीं बनेगी। मुझे लगता ये मुद्दा इस समय आग की तरह फैला हुआ है। उम्मीद है,चुनाव बाद कोई एक्शन लिया जाए।

प्रश्नः शिकायतों पर रद्द हुए लाइसेंस के बावजूद भी कुछ कंपनियां पर्दे के पीछे व्यावसायिक गतिविधियों में लिप्त रहती हैं?

उत्तरः ऐसा तो पॉसिबल नहीं है। क्योंकि, निलंबित या रद्द किए गए लाइसेंस-पंजीकरण पर कोई भी खाद्य व्यवसाय गतिविधि करना एक गैरकानूनी गतिविधि है और एफएसएस अधिनियम-2006 के तहत दंडात्मक कार्रवाई हो सकती है। हां, दूर-दराज क्षेत्रों में जहां लाइसेंस संस्थान की नजर न पड़ती हो, वहां कंपनियां ऐसा करती हैं। इस तरह के केस भी मैंने देखे भी हैं। जब, कंपनियों का दोबारा लाइसेंस रिन्यू नहीं करने का आदेश दिया गया। जबकि, विदेशों में इस स्थिति में कंपनियां पर आजीवन प्रतिबंध के साथ मोटा हर्जाना लगाया जाता है।

प्रश्नः विदेशों का आपने जिक्र किया, वहां खाद्य सामग्रियों पर सख्त नियम होते हैं, वैसे भारत में क्यों नहीं?

उत्तरः होना चाहिए, सभी मांग करते हैं। एशियाई कई देशों में सख्त नियम हैं, खाद्य पदार्थों में कोई गड़बड़ी नही कर सकता। अगर करेगा, तो हर्जाने के अलावा जेल भी होगी। अमेरिका, यूरोप व दुबई में तो मर्डर जैसी सजा मुकर्रर है। खाने-पीने की चीजों में जितनी घपलेबाजी भारत में है, उतनी कहीं नहीं? नकली चावल, दालें, दूध, मसाले आदियों का बनना अब कोई बड़ी बात नहीं? कुछ महीने पहले ही एक खबर आई थी कि पूर्वीर् दिल्ली में नकली जीरा बनाने वाला कारखाना पकड़ा गया। जीरे की बकायदा पैकेजिंग थी जिसपर नामी कंपनियों का लैबर चस्पा था। कई बार ऐसा भी होता है कि कंपनियों की कॉपी फर्जी कंपनियां करती हैं। ऐसे में वास्तविक कंपनियां बिना वजह बदनाम हो जाती हैं।

बातचीत में जैसा पूर्व जज सुनील मिश्रा ने डॉ रमेश ठाकुर से कहा।

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