अफगानिस्तानी देश छोड़कर भागने की बजाय अपनी लड़ाई खुद लड़ें तो दृश्य बदल सकता है

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अशोक मधुप । Aug 18 2021 11:36AM

प्रसिद्ध कवि रविंद्रनाथ टैगोर की एक कहानी है काबुलीवाला। काबुल का रहने वाले एक पठान हिंदुस्तान में घूम-घूम कर मेवा बेचने का काम करता है। लेखक की छोटी बेटी से वह घुल-मिल जाता है। लेखक की बेटी मिनी को बिल्कुल अपनी बेटी की तरह प्यार करता है।

काबुलीवाला माफ करना, हमने तो तुम्हारे और तुम्हारे परिवार के दिन बहुत कुछ किया। तुम्हारे मुल्क के लिए दुनिया ने अपनी तिजोरी खोल दी। जितना बन पड़ा तुम्हारे बच्चों और उनके भविष्य की बेहतरी और  विकास के काम लिया। तुम्हारे यहां बंदरगाह बनाए। बांध बनाए। हवाई अड्डे तैयार किए। संसद भवन बनाया। तुम्हारे बच्चे और बेटियों के भविष्य के लिए पूरी दुनिया ने बहुत कुछ किया। अपनी झोली का मुंह तुम्हारे परिवार की खुशहाली के लिए खोल दिया। दुनिया के लोगों ने तुम्हारी बेटियों, बेटों और परिवार की खुशहाली के सपने देखे।

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अब ये सब कुछ तुम्हारे अपने अफगान के लोगों को ही रास न आये तो क्या किया जा सकता हैॽ वे ही तुम्हारी बेटी, बहन और बीवी को तालिबान की रखैल बनवाने पर आमादा हों तो हमारी या दुनिया की क्या गलती है? तुम्हें तो अपनों, परिवारजनों, रिश्तेदार और पड़ोसियों से खतरा है। अपने घर और परिवार की जिम्मेदारी तुमने जिन्हें सौंपी, जिन्हें आका माना, वही धोखा दे जाएं तो दुनिया क्या कर सकती हैॽ तुमने जिन्हें अपना नुमाइंदा बनाया, जिन्हें अपना खुदा माना, संरक्षण स्वीकार किया, वही दुश्मनों के सामने से भाग खड़े हों, हथियार डाल दें तो उसमें क्या हो सकता है।

प्रसिद्ध कवि रविंद्रनाथ टैगोर की एक कहानी है काबुलीवाला। काबुल का रहने वाले एक पठान हिंदुस्तान में घूम-घूम कर मेवा बेचने का काम करता है। लेखक की छोटी बेटी से वह घुल-मिल जाता है। लेखक की बेटी मिनी को बिल्कुल अपनी बेटी की तरह प्यार करता है। एक मामले में वह जेल चला जाता है। जब लौटता है तो लेखक की बेटी बड़ी हो चुकी है। उसकी शादी है। अब उसे पता चलता है कि समय कितना आगे बढ़ गया। लेखक को वह बताता है कि उसकी बेटी भी मिनी के बराबर है, वह भी शादी लायक हो गयी होगी। लेखक उससे काबुल जाने को कहता है। उसके जेब खाली होने का जिक्र करने पर लेखक बेटी की शादी के लिए एकत्र रुपये उसे देकर काबुल जाकर बेटी की शादी करने का आग्रह करता है। काबुलीवाले को धन देकर कहता है। अपने वतन जाओ और बेटी की शादी करो।

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हम अपने परिवार पर खर्च की जाने वाली रकम अफगानिस्तान में लगाते हैं। ये हमारी चिंता है। अफगानियों के लिए पूरी दुनिया की चिंता है। पर जब उसके परिवार की सुरक्षा के जिम्मेदार व्यक्ति लुटेरों से मिल जाएं तो कोई क्या करेॽ जब उनके आका ही उनके परिवार की गर्दन कटने को दुश्मनों के सामने रख दें तो क्या किया जाएॽ अपने घर की हिफाजत के लिए अपने आप लड़ना होता है, अपनों को लड़ना होता है, आसपास वालों को लड़ना होता है। कबीला लड़ता है, गांव लड़ता है, शहर लड़ता है, देश लड़ता है। दूसरे को क्या पड़ी है। वह कब तक तुम्हारा घर घेरे। तुम्हारे परिवार की सुरक्षा करे। माफ करना काबुलीवाला, इसमें हमारी, दुनिया की या किसी और की खता नहीं। तुम्हारे अपने दोषी हैं। तुम्हारे अपने जिम्मेदार हैं। अपने परिवार बेटे, बेटियों, बहनों की हिफाजत तुम खुद नहीं करोगे, तुम नहीं लड़ोगे तो दूसरे क्यों अपना खून बहाएं। लड़ना भी तुम्हें होगा। खून भी तुम्हें ही बहाना होगा क्योंकि परिवार तुम्हारा है।

-अशोक मधुप

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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