नदियों को भी अपना जीवन जीने का नैसर्गिक अधिकार मिले
नदियों को लेकर वर्तमान में ऐसे तमाम कानून हैं, जिनका कड़ाई से पालन हो जाए, तब नदियों को बचाने के लिए अलग से किसी दर्जे की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। भारतीय ज्ञान-परंपरा में वैसे भी नदियों का दर्जा मनुष्य से कहीं अधिक ऊपर है।
माँ गंगा और यमुना के बाद अब नर्मदा नदी को भी मनुष्य के समान अधिकार प्राप्त होंगे। देवी नर्मदा भी अब जीवित इंसानों जैसी मानी जाएंगी। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इसकी घोषणा की है। जल्द ही विधानसभा में प्रस्ताव पारित कर नर्मदा नदी को इंसान का दर्जा दे दिया जाएगा। यह शुभ घोषणा है। इसका स्वागत किया जाना चाहिए। लेकिन, जीवनदायिनी नदियों को मनुष्य के समकक्ष स्थापित करने से पहले हमें यह जान लेना चाहिए कि हमारे ग्रंथों में नदियों का स्थान बहुत ऊँचा है। वेदों में नदियों को माँ ही नहीं, अपितु देवी माना गया है। हमारे ऋषि-मुनियों ने नदियों को लेकर यह मान्यता इसलिए स्थापित की थी, ताकि हम नदियों के प्रति अधिक संवेदनशील रहें। उनके प्रति कृतज्ञ रहें। नदियों के प्रति अतिरिक्त आदर भाव रहे। जब मनुष्य नदियों को माँ मानेगा और उन्हें दैवीय स्थान पर रखेगा, तब उसको नुकसान नहीं पहुँचाएगा। यह हमारे समाज का दुर्भाग्य है कि हम अपने पुरखों की सीख को विसर्जित कर कर्मकांड तक सीमित होकर रह गए। सम्मान के सर्वोच्च स्थान 'माँ' के प्रति भी हम लापरवाह हो गए। हमारी यह लापरवाही नदियों के जीवन के लिए खतरा बन गई। आज न्यायालयों और सरकारों को नदियों को न्याय दिलाने के लिए उन्हें मनुष्य की तरह जीवंत मानने को मजबूर होना पड़ रहा है। जबकि हमारे यहाँ सदैव से नदियों को जीवंत ही माना गया है।
नदियों के संरक्षण के प्रति समाज को जागरूक करने के उद्देश्य से मुख्यमंत्री दुनिया के सबसे बड़े नदी संरक्षण अभियान 'नमामि देवी नर्मदे: सेवा यात्रा' का संचालन कर रहे हैं। जनसहभागिता से प्रत्येक दिन नर्मदा के किनारे नदी और पर्यावरण संरक्षण के प्रति समाज को जागरूक करने के लिए बड़े-बड़े आयोजन किए जा रहे हैं। नर्मदा सेवा यात्रा के अंतर्गत इन आयोजनों में देश-दुनिया के अलग-अलग विधा के प्रख्यात लोग आ चुके हैं। इसी सिलसिले में मण्डला में आयोजित जन-संवाद कार्यक्रम में शामिल होने गृहमंत्री राजनाथ सिंह भी पहुँचे थे। नर्मदा सेवा यात्रा की आवश्यकता को देखकर उन्होंने प्रदेश की जीवनदायिनी नर्मदा नदी को जीवित मनुष्य के समान अधिकार देने का सुझाव दिया। चूँकि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह का जन्म नर्मदा के किनारे ही हुआ। नर्मदा जल से सिंचित भूमि से उत्पन्न अन्न ने उनको पोषण किया है। 11 दिसंबर, 2016 से प्रारंभ हुई नर्मदा सेवा यात्रा में प्रतिदिन मुख्यमंत्री शामिल हो रहे हैं। देवी नर्मदा को लेकर उनके मन में अगाध श्रद्धा उत्पन्न होना स्वाभाविक ही है। जब उत्तराखंड के नैनीताल उच्च न्यायालय ने मोक्षदायिनी माँ गंगा नदी को मनुष्य के समान अधिकार देने का ऐतिहासिक निर्णय सुनाया था और गंगा नदी को भारत की पहली जीवित इकाई के रूप में मान्यता दी थी, तब ही शिवराज सिंह चौहान के मन में यह विचार जन्म ले चुका था। वह भी सेवा यात्रा के दौरान नर्मदा नदी को मनुष्य के समान दर्जा देने के लिए उचित अवसर की प्रतीक्षा कर रहे थे। मंडला जिले में यह अवसर आया, जब गृहमंत्री ने सुझाव दिया और अविलम्ब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने उस सुझाव का स्वागत किया। अब उम्मीद की जानी चाहिए कि देवी नर्मदा के अच्छे दिन आएंगे।
सदानीरा नर्मदा भारत की पाँचवी सबसे लंबी नदी है। यह मध्य प्रदेश की जीवनरेखा है। लेकिन, आज प्रदेश को जीवन देने वाली इस नदी के सामने संकट खड़ा हो गया है। यह संकट आधुनिक विकास के कारण, अवैध रेत उत्खनन, पेड़ों की अंधाधुंध कटाई और हम मनुष्यों की अदूरदर्शिता के कारण उत्पन्न हुआ है। यह किस प्रकार की सोच है कि पवित्र नदियों में मानव का मल-मूत्र छोड़ा जा रहा है। कारखानों के कचरे से नदियों के जल को दूषित किया जा रहा है। ग्वालियर की स्वर्णरेखा नदी और इंदौर की खान नदी आखिर किन कारणों से नाले में तब्दील हुई? उज्जैन में मोक्षदायिनी नदी शिप्रा के हालात क्या किसी से छिपे हैं? सिंहस्थ कुंभ के दौरान शिप्रा को सांसें देने के लिए नर्मदा से जल उधार लेना पड़ा। जीवन देने वाली नदियों को भी लोभी मनुष्यों के कारण दुर्गति देखनी पड़ रही है। मनुष्य यह भूल गया है कि नदियाँ जीवंत हैं, तब तक ही मनुष्यों का भी जीवन है। यदि नदी नहीं बचेगी, तब हम भी कहाँ बचेंगे। मनुष्यों को यह याद दिलाना अधिक जरूरी है और यही काम शिवराज सिंह चौहान 'नमामि देवी नर्मदे: सेवा यात्रा' के माध्यम से करने का प्रयास कर रहे हैं।
बहरहाल, उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने जब गंगा और यमुना को जीवित मनुष्य का दर्जा देने का निर्णय किया, तब उसके पीछे मंशा थी कि नदियों को भी अपना जीवन जीने का नैसर्गिक अधिकार मिले। नदियों को प्रदूषण मुक्त किया जाए। उनके बहाव को बाधित न किया जाए। लेकिन, यहाँ प्रश्न उठता है कि क्या नदियों को जीवित मनुष्य के समान दर्जा देने से यह संभव हो पाएगा? नदियों को मनुष्य मानने से ऐसा क्या परिवर्तन हो जाएगा? जबकि नदियों को लेकर वर्तमान में ऐसे तमाम कानून हैं, जिनका कड़ाई से पालन हो जाए, तब नदियों को बचाने के लिए अलग से किसी दर्जे की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। भारतीय ज्ञान-परंपरा में वैसे भी नदियों का दर्जा मनुष्य से कहीं अधिक ऊपर है। मध्य प्रदेश सरकार को भी चाहिए कि नर्मदा के संरक्षण के लिए उसे 'जीवित मनुष्य का दर्जा' देने के साथ-साथ वर्तमान कानूनों का पालन सुनिश्चित करे। बहरहाल, नेक नीयत से की गई मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की घोषणा का स्वागत है। देवी नर्मदा को संरक्षित करने के लिए उन्होंने जो आंदोलन शुरू किया है, उसके भी बेहतर परिणाम आएंगे, इसकी उम्मीद है।
लोकेंद्र सिंह
(लेखक सामाजिक कार्यकर्ता एवं स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)
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