अमेरिकी दौरे पर विदेश मंत्री जयशंकर ने की 100 बैठकें, समझिये इस पूरी कवायद से भारत को क्या लाभ हुआ?

S Jaishankar
ANI

अपने अमेरिकी दौरे के समापन के समय विदेश मंत्री जयशंकर ने भारतीय पत्रकारों से विस्तृत बातचीत की। इस बातचीत के दौरान जयंशकर की बैठकों से संबंधित कई महत्वपूर्ण बिंदू उभर कर आये जिन्हें इस रिपोर्ट के माध्यम से हम आपके समक्ष रख रहे हैं।

भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर का अमेरिकी दौरा काफी महत्वपूर्ण रहा। इस दौरान उन्होंने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में जहां भारत का पक्ष दृढ़ता के साथ रखा वहीं अमेरिकी सरकार के मंत्रियों, उद्योगपतियों और अन्य महत्वपूर्ण लोगों के साथ मुलाकातों में भी विभिन्न विषयों पर चर्चा की। देखा जाये तो इस यात्रा के दौरान जयशंकर ने दुनिया भर के विश्व नेताओं और उनके समकक्षों के साथ लगभग 100 बैठकें कीं। इन बैठकों के दौरान विभिन्न देशों के साथ द्विपक्षीय साझेदारी तो मजबूत हुई ही साथ ही विभिन्न क्षेत्रों में कई समझौते हुए। यह नहीं इन बैठकों की वजह से कई देशों के मन में भारत के प्रति जो भ्रम थे वह भी दूर हुए। इतनी सारी बैठकों के बारे में खुद जयशंकर का कहना है कि यह सभी बैठकें इसलिए की गईं क्योंकि कई लोगों ने मिलने की इच्छा जाहिर की थी। जयशंकर ने बताया है कि कई देश हमसे इसलिए भी बात करना चाहते थे क्योंकि ऐसी धारणा है कि भारत प्रमुख ताकतों के साथ संपर्क में है, कई देश इसलिए भी मिलना चाहते थे क्योंकि उन्हें लगता है कि हम किसी प्रकार की प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष मदद कर सकते हैं।

अपने अमेरिकी दौरे के समापन के समय विदेश मंत्री जयशंकर ने भारतीय पत्रकारों से विस्तृत बातचीत की। इस बातचीत के दौरान जयंशकर की बैठकों से संबंधित कई महत्वपूर्ण बिंदू उभर कर आये जिन्हें इस रिपोर्ट के माध्यम से हम आपके समक्ष रख रहे हैं। आइये सबसे पहले चर्चा करते हैं भारत-चीन संबंध की।

भारत-चीन संबंध

सामरिक क्षेत्र में चीन की बढ़ती सैन्य उपस्थिति के बीच भारत और अमेरिका के हिंद-प्रशांत की बेहतरी के लिए एक साझा दृष्टिकोण का जिक्र करते हुए विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा है कि भारत, चीन के साथ ऐसे संबंध बनाने का प्रयास करता है जो आपसी संवेदनशीलता, सम्मान व परस्पर हित पर आधारित हों। दरअसल चीन का सामरिक हिंद-प्रशांत क्षेत्र में कई देशों के साथ क्षेत्रीय विवाद है और वह विशेष रूप से विवादित दक्षिण चीन सागर में अमेरिका की सक्रिय नीति का विरोध करता रहा है। इस मुद्दे पर विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने वाशिंगटन में भारतीय पत्रकारों से बातचीत की। इस दौरान चीन से निपटने को लेकर भारत और अमेरिका की योजना संबंधी सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि दोनों देश हिंद-प्रशांत की बेहतरी व उसे मजबूत बनाने के साझा उद्देश्य रखते हैं। उन्होंने कहा, ‘‘जहां भारतीय और अमेरिकी हित की बात आती है, तो मुझे लगता है, यह हिंद-प्रशांत की स्थिरता, सुरक्षा प्रगति, समृद्धि व विकास पर आधारित है।'' उन्होंने कहा कि यहां तक कि यूक्रेन के मामले में भी यही रुख है क्योंकि यह युद्ध लंबे समय से लड़ा जा रहा है और वास्तव में यह लोगों के दैनिक जीवन व दुनियाभर में अशांति उत्पन्न कर सकता है।’’ 

इसे भी पढ़ें: यूएनएससी में सुधार की जरूरत को हमेशा नकारा नहीं जा सकता : जयशंकर

भारत के रुख में बदलाव नहीं

विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने एक और जो महत्वपूर्ण बात कही है वह यह है कि समरकंद में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ हुई बैठक के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यूक्रेन में जारी युद्ध को लेकर जो टिप्पणी की थी उसे इस मुद्दे पर भारत के रुख में परिवर्तन के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए। जयशंकर ने कहा कि भारत लगातार यह कहता रहा है कि रूस और यूक्रेन के बीच जल्द से जल्द युद्ध समाप्त होना चाहिए। यूक्रेन में रूस के कब्जे वाले क्षेत्रों में जनमत संग्रह पर पूछे गए एक सवाल के जवाब में विदेश मंत्री ने कहा कि भारत इस मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र में अपना विचार रखेगा। उन्होंने कहा, “यह मुद्दा संयुक्त राष्ट्र में विचार के लिए उठेगा। इसलिए मैं आग्रह करता हूं कि आप इंतजार करें और देखिये कि वहां हमारे राजदूत क्या कहते हैं।”

प्रधानमंत्री मोदी और रूस के राष्ट्रपति पुतिन के बीच समरकंद में 16 सितंबर को हुई बैठक के बारे में जयशंकर ने कहा कि यूक्रेन में युद्ध शुरू होने के बाद दोनों नेताओं के बीच प्रत्यक्ष रूप से यह पहली बातचीत थी। उन्होंने कहा, “स्वाभाविक-सी बात है कि आमने सामने की बैठक के बाद प्रेस को संबोधित किया गया था और हम उस मौके का वीडियो देख सकते हैं।” उन्होंने कहा, “ऐसा नहीं है कि इसके बारे में हमने पहले कुछ नहीं कहा। हम इस युद्ध के बारे में अपनी चिंता व्यक्त करते रहे हैं। हम जल्द से जल्द इस लड़ाई को समाप्त करने और वार्ता तथा कूटनीतिक समाधान की जरूरत पर बल देते रहे हैं।” जयशंकर ने कहा, “यह बिलकुल स्वाभाविक था कि ऐसे मौके पर भारत के प्रधानमंत्री और रूस के राष्ट्रपति की भेंट होगी तो इन विषयों पर चर्चा होनी थी और प्रधानमंत्री ने ऐसा किया।” जयशंकर ने कहा कि समरकंद में पुतिन से हुई बातचीत से यूक्रेन पर भारत के रुख में कोई बदलाव नहीं आया है।

भारत-अमेरिका संबंध

भारत-अमेरिका संबंधों को पिछले कुछ दशकों में आकार देने में अहम भूमिका निभाने वाले विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा है कि वह इस द्विपक्षीय संबंध को लेकर बहुत आश्वस्त हैं। उन्होंने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि करीब दो दशक पहले (15 साल पहले) हमने क्वाड का गठन करने की कोशिश की थी। तब यह मुमकिन नहीं हो पाया था, लेकिन अब यह काफी अच्छे से काम कर रहा है और पिछले दो साल में इसने काफी प्रगति की है।’’ जयशंकर ने कहा कि उनका मानना है कि आज अमेरिका के साथ संबंध न केवल अधिक अवसर मुहैया कराते हैं बल्कि यह अपने आप में काफी महत्वपूर्ण हैं। साथ ही उन्होंने वीजा संबंधी मुद्दों के भी शीघ्र हल होने की संभावना जताई है।

यूएनएससी में सुधार की जरूरत

इसके अलावा विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार की आवश्यकता को हमेशा नकारा नहीं जा सकता है। उल्लेखनीय है कि यूएनएससी में वर्तमान में पांच स्थायी सदस्य चीन, फ्रांस, रूस, ब्रिटेन और अमेरिका हैं। भारत विश्व संस्था के 10 अस्थायी सदस्यों में से एक है। केवल स्थायी सदस्यों के पास ही किसी भी मूल प्रस्ताव को ‘वीटो’ करने का अधिकार है। भारत लगातार संयुक्त राष्ट्र में सुरक्षा परिषद में लंबित सुधारों पर कार्रवाई तेज करने को लेकर जोर देता रहा है। भारत का कहना है कि वह स्थायी सदस्य बनने का हकदार है। जयशंकर ने कहा कि मेरा मानना है कि राष्ट्रपति जो बाइडन ने जो रुख अख्तियार किया है वह सुरक्षा परिषद सहित संयुक्त राष्ट्र में सुधार के लिए अमेरिकी समर्थन को स्पष्ट रूप से रेखांकित करता है।

इसे भी पढ़ें: समरकंद में यूक्रेन को लेकर प्रधानमंत्री मोदी की टिप्पणी से भारत के रुख में बदलाव नहीं: जयशंकर

रूस के साथ कोई समस्या नहीं

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने यह भी स्पष्ट किया है कि भारत को यूक्रेन में युद्ध शुरू होने के बाद अतीत में रूस से हासिल सैन्य उपकरणों की मरम्मत और कल-पुर्जों की आपूर्ति को लेकर किसी भी तरह की मुश्किलों का सामना नहीं करना पड़ा है। उन्होंने जोर देकर कहा कि भारत को जब हथियारों की खरीदारी की पेशकश की जाती है तो वह एक ऐसा विकल्प चुनता है, जो उसके राष्ट्रीय हित में है। जयशंकर ने अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन के साथ द्विपक्षीय वार्ता के बाद वाशिंगटन में आयोजित एक संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में यह टिप्पणी की। जयशंकर से रूसी उद्योगों पर अमेरिका और अन्य देशों की ओर से लगाए जा रहे प्रतिबंधों के मद्देनजर सैन्य उपकरणों और कल-पुर्जों की खरीद को लेकर भारत की योजनाओं के बारे में पूछा गया था। उनसे यह भी सवाल किया गया था कि क्या भारत अब अमेरिकी और इजराइली सैन्य उपकरणों की अधिक खरीदारी पर विचार करेगा। विदेश मंत्री ने कहा, “हमें हमारे सैन्य उपकरण और प्रणालियां कहां से मिलती हैं, यह कोई मुद्दा नहीं है। वास्तव में यह मुद्दा भू-राजनीतिक तनाव के कारण खड़ा हुआ है।” उन्होंने कहा कि भारत दुनियाभर में मौजूद संभावनाओं पर गौर फरमाता है। जयशंकर ने कहा, “हम तकनीक की गुणवत्ता, क्षमताओं की गुणवत्ता और उन शर्तों पर गौर फरमाते हैं, जिनके तहत किसी विशेष उपकरण की पेशकश की जाती है और हम हमेशा उस विकल्प को चुनते हैं, जो हमें लगता है कि हमारे राष्ट्रहित में है।”

उन्होंने कहा कि पिछले 15 वर्षों में भारत ने वास्तव में अमेरिका से बहुत अधिक खरीदारी की है। विदेश मंत्री ने कहा, “उदाहरण के लिए सी-17, सी-130, पी-8 जैसे विमान, अपाचे हेलीकॉप्टर या चिनूक या होवित्जर, एम777 होवित्जर... हमने फ्रांस से भी काफी कुछ लिया है, जैसे कि राफेल विमान। इसी तरह हमने इजराइल से भी बहुत खरीदारी की है।” उन्होंने कहा, “हमारी अलग-अलग जगहों से सामान खरीदने की नीति रही है और हमारे लिए वास्तव में यही मायने रखता है कि प्रतिस्पर्धी माहौल में सबसे अच्छा सौदा कैसे किया जाए।”

भारत कितना अधिक डिजिटल बन गया

इसके अलावा विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी में कहा है कि अमेरिकी व्यवसाय इस बात से प्रभावित हैं कि भारत कितना अधिक डिजिटल बन गया है और सरकार कितने प्रभावी तरीके से डिजिटल डिलिवरी को अपना रही है। 

भारत अहम भूमिका निभा सकता है

विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा है कि भारत ऐसे समय में स्थिरता लाने व एक सेतु की भूमिका निभा सकता है जब दुनिया में आशा की कोई किरण नजर नहीं आ रही और अंतरराष्ट्रीय समुदाय चिंतित है। उन्होंने कहा कि भारत वैश्विक अर्थव्यवस्था के जोखिम को कम करने में और राजनीतिक दृष्टि से किसी तरह दुनिया का ध्रुवीकरण रोकने में मदद कर सकता है। जयशंकर ने कहा कि उन्हें लगता है कि बहुत से अन्य देशों खासकर ‘ग्लोबल साउथ’ के देशों को भारत से बहुत उम्मीदें हैं। उन्होंने कहा, ‘‘हम जो कर सकते हैं करेंगे और हम दुनिया के हाशिए पर मौजूद सभी देशों से भी संपर्क करेंगे।’’

बहरहाल, यह वाकई नया भारत है तभी तो इसकी राय और समर्थन सभी के लिए महत्व रखते हैं। संयुक्त राष्ट्र महासभा के वार्षिक अधिवेशन में दुनिया भर के राष्ट्राध्यक्ष और विदेश मंत्री पहुँचते हैं। भारत के भी प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री जाते रहे हैं और औपचारिक बैठकें करके वापस आते रहे हैं। लेकिन अब जिस तरह से अमेरिका दौरे पर गये भारत के प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री से वहां मिलने वालों की लाइन लग जाती है वह भारत की शक्ति को दर्शाता है।

-नीरज कुमार दुबे

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़