इजराइल-गाजा संघर्ष से जुड़ी एक बड़ी चिंता सोशल मीडिया पर फर्जी खबरों के प्रसार की भी है

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ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के रॉयटर्स इंस्टीट्यूट की डिजिटल न्यूज रिपोर्ट-2023 में 46 देशों के लोगों से खबरें पढ़ने की उनकी आदतों के बारे में पूछा गया। 56 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वे इंटरनेट पर मौजूद खबरों के संबंध में असली और फर्जी के बीच फर्क करने को लेकर चिंतित हैं।

जैसे ही फलस्तीनी आतंकी समूह हमास के इजराइल पर जानलेवा हमला करने और इजराइल की बदला लेने की धमकी देने की खबरें समाचार नेटवर्क और सोशल मीडिया मंचों पर छाने लगीं, वैसे ही भ्रामक सूचनाओं और फर्जी वीडियो की बाढ़ भी आ गई। देखा जाये तो प्रौद्योगिकी की ताकत का दोहन करने वाले समाज में विश्वसनीय सूचना और झूठे दावों या जानबूझकर प्रसारित की गई भ्रामक वीडियो सामग्री के बीच फर्क करना मुश्किल होता जा रहा है। यह साफ है कि कथित तौर पर इजराइल-हमास संघर्ष से जुड़े कई वीडियो, सोशल मीडिया पोस्ट और तस्वीरें जानबूझकर भ्रम पैदा करने के लिए साझा की गई हैं। यह समस्या दिखाती है कि संघर्षों की रिपोर्टिंग कर रहे पत्रकारों के सत्यापन के प्रयास क्यों अहम हैं।

ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के रॉयटर्स इंस्टीट्यूट की डिजिटल न्यूज रिपोर्ट-2023 में 46 देशों के लोगों से खबरें पढ़ने की उनकी आदतों के बारे में पूछा गया। 56 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वे इंटरनेट पर मौजूद खबरों के संबंध में असली और फर्जी के बीच फर्क करने को लेकर चिंतित हैं। इसके अलावा, यूक्रेन की सीमा से लगे स्लोवाकिया में किए एक सर्वेक्षण में शामिल तकरीबन आधे लोगों ने कहा कि उन्होंने पिछले सप्ताह यूक्रेन संघर्ष के बारे में भ्रामक सूचना देखी थी। साथ ही मीडिया में आई कई खबरों में कहा गया है कि ट्विटर (जिसे अब ‘एक्स’ के नाम से जाना जाता है) पर इजराइल-हमास संघर्ष को लेकर फर्जी पोस्ट बढ़े हैं। इस बीच, ‘द गार्जियन’ ने इजराइली निगरानी कंपनी सायाब्रा के आंकड़ों के हवाले से फर्जी पोस्ट के स्तर को दिखाया है। सायाब्रा ने दावा किया कि कई पोस्ट स्वचालित बोट (सॉफ्टवेयर) का इस्तेमाल कर फर्जी खातों से किए जा रहे हैं, जो ट्विटर, टिकटॉक और अन्य मंचों पर काफी सक्रिय हैं। सायाब्रा ने 20 लाख से अधिक तस्वीरें, पोस्ट और वीडियो खंगाले। उसने दावा किया कि 1,62,000 प्रोफाइल में से 25 प्रतिशत फर्जी थीं।

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सत्यापन कैसे काम कर सकता है

पिछले कुछ वर्षों में कई पारंपरिक मीडिया संगठनों ने मजबूत फैक्ट-चेकिंग (तथ्य अन्वेषण) शाखाएं बनाई हैं, जो फर्जी खबरों और वीडियो की तुरंत पहचान कर रही हैं। इसका एक उदाहरण ‘बीबीसी वेरिफाई’ है। ‘बीबीसी वेरिफाई’ का लक्ष्य यह दिखाकर दर्शकों का भरोसा जीतना है कि उसके पत्रकार कैसे जानते हैं कि वे जो बता रहे हैं, वह सही एवं सटीक है। पत्रकारों की टीम सूचना, वीडियो और तस्वीरों की जांच एवं सत्यापन के लिए आधुनिक संपादन उपकरणों तथा तकनीक का इस्तेमाल करती है। ‘बीबीसी वेरिफाई’ इजराइल और गाजा के बारे में प्रसारित ऐसे वीडियो तथा सोशल मीडिया पोस्ट की पहचान कर रहा है, जो गलत या भ्रामक पाए गए हैं।

‘एपी फैक्ट चेक’ और रॉयटर्स ने भी ऑनलाइन भ्रामक सूचना के खिलाफ अभियान चलाया है। रॉयटर्स ने हाल ही में उस वीडियो की सच्चाई पता लगाई, जिसमें दिखाया गया था कि कैसे इजराइल या फलस्तीन मौत के फर्जी फुटेज बनाने की कोशिश कर रहे हैं। समाचार एजेंसी ने बताया कि यह वीडियो क्लिप 2012 में साझा की गई थी। रॉयटर्स ने अपने विश्लेषण में कहा, ‘‘क्लिप में किए गए दावे कि इजराइल और फलस्तीन मौत के फर्जी फुटेज बना रहे हैं, गलत हैं।’’ उसने कहा कि यह क्लिप असल में एक लघु फिल्म ‘एम्प्टी प्लेस’ के फिल्मांकन से जुड़ी हुई है, जो 2022 में यूट्यूब पर रिलीज हुई थी।

बहरहाल, हिंसक संघर्ष पर दुनियाभर के पत्रकारों को जिम्मेदार, संवेदनशील और समय पर ध्यान देते हुए सूचनाएं साझा करने की आवश्यकता है। अमेरिका के अग्रणी पत्रकार एडवर्ड मुरो के शब्दों में ‘‘संचार की गति देखने में अद्भुत है। परंतु यह भी सच है कि यह गति उस सूचना के वितरण को कई गुना बढ़ा सकती है, जिसके बारे में हम जानते हैं कि वह सही नहीं है।’’

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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