साक्षात्कारः दो साल बाद स्कूल लौटे छात्रों की मनोदशा पर शिक्षाविद् भावना मलिक से बातचीत
दो साल बाद स्कूलों में पहले जैसी चहल-पहल देखने को मिल रही है। छात्रों को समझाने के लिए शिक्षक चिकित्सीय और मनोवैज्ञानिक विधियों का इस्तेमाल कर रहे हैं। शिक्षक छात्रों के साथ-साथ अभिभावकों के साथ भी संयम से सामंजस्य स्थापित करने में अपना पूरा योगदान दे रहे हैं।
बिना शिक्षा के गुजरा वक्त किसी डरावने से कम नहीं, दो वर्ष बाद स्कूल खुले हैं। इस दरम्यान बच्चों में आए बुरे बदलावों को दूर करने की जिम्मेदारी शिक्षकों पर पहाड़ तोड़ने जैसी है। दिल्ली की नामी शिक्षण संस्था ‘लवली पब्लिक स्कूल’ यानी एलपीएस में बच्चों के मनोभाव को पढ़ने और उनको अच्छे व्यवहारों में गढ़ने के लिए कई तरह के प्रोग्राम आयोजित किए गये। बीते दिनों डॉ. रमेश ठाकुर ने एलपीएस ग्रुप का दौरा कर प्रधानाचार्या व शिक्षाविद् भावना मलिक से विस्तृत बातचीक करके जानना चाहा कि बच्चों को दोबारा से उसी मोड़ पर लाने को किस तरह के प्रयास किए जा रहे हैं। पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश-
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प्रश्न- क्लास रूमों में पहुंचे बच्चों में कितना बदलाव देखा जा रहा है?
उत्तरः खासा बदलाव देखने को मिला। दरअसल, एक अरसे बाद विद्यार्थी क्लास रूमों में पहुंचे हैं, विद्यालय आने का उत्साह और जोश उनमें देखने को मिला। वह इसलिए भी क्योंकि काफी समय बाद उनकी अपने सहपाठियों से मुलाकातें जो हुईं, उनके चेहरों पर खुशी झलकती दिखी। हम शिक्षक हैं बच्चों के मनोभावों को पढ़ लेते हैं। इसलिए उनको फिर पुराने ढर्रे पर कैसे लाएंगे, ये हमें अच्छे से पता है।
प्रश्न- शिक्षकों के कंधों पर बड़ी चुनौतियां रहेंगी?
उत्तरः निश्चित रूप से। हर समय बच्चों के मनोभावों और उनकी सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए वातावरण को सरल बनाने की कोशिश और उनके बीते समय को दोबारा से जीवित करने का प्रयास करेंगे। बच्चों के मनोविज्ञान को अभिभावकों से बेहतर शिक्षक समझते हैं। कक्षाएं आरंभ होने के बाद मैं प्रत्येक क्लास को गंभीरता से वॉचआउट कर रही हूं। इस बीच कई बच्चों की मनोदशा और उनके व्यवहार में बदलाव देखा, इसलिए हम शिक्षा के साथ-साथ उनके शारीरिक और मानसिक विकास रूप से भी मजबूत करेंगे।
प्रश्न- चौपट हुई शिक्षा में छोटे बच्चों की मानसिक स्थितियां भी खराब हुईं?
उत्तर- लवली पब्लिक स्कूल की सभी ब्रांचों में जिन छात्रों का दाखिला नर्सरी कक्षा में हुआ था, विद्यालय खुलते ही वे पहली कक्षा में पहुँच गए हैं जिन्होंने विद्यालय को कभी देखा भी नहीं था। उनके लिए अपने माता-पिता से इतनी देर तक दूर रहना कठिन है। जीवन की सच्चाई यही है कि बच्चे का विकास जो विद्यालय में हो सकता है वह घर में नहीं? बच्चों के सुनने की क्षमता भी कम हो गई है। उन्हें अपने बड़ों से किए गए व्यवहार का ज्ञान ही नहीं है। विद्यालय में आए बच्चों में लेखन कला की कमी देखी गई है। विभिन्न गतिविधियों की मदद से इस कमी को दूर करने के प्रयास करेंगे। विद्यालय में जहां बच्चों के मानसिक, सामाजिक और शारीरिक विकास पर विशेष ध्यान जा रहा है, वहीं कोरोना काल के चलते हमारे बच्चों में इन सभी आवश्यक क्षेत्र के विकास में कमी पाई गई है जिसे भरने का बीड़ा विद्यालय पर है ताकि हमारे छात्रों के सुनहरे भविष्य में कोई रुकावट ना आए।
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प्रश्न- समस्याओं से निपटने के लिए अध्यापकों को प्रशिक्षित किया गया है?
उत्तरः जी बिल्कुल! इसके लिए सभी को कार्य योजनाओं के तहत प्रशिक्षित किया गया है। चिकित्सीय और मनोवैज्ञानिक विधियों का इस्तेमाल कर रहे हैं। अध्यापक-अध्यापिकाएं छात्रों के साथ-साथ अभिभावकों के साथ भी संयम से सामंजस्य स्थापित करने में अपना पूरा योगदान दे रही हैं। कोरोना का भय अब भी अभिभावकों में है, इसलिए बच्चों को विद्यालय भेजने से कतरा रहे हैं। यह समय सभी के लिए कठिन है। बीते दो साल की भरपाई में वक्त जरूर लगेगा, पर कोशिश रहेगी, वह भरपाई अच्छे से हो सके। शिक्षा पद्धति के अनुसार पाठ को सरल और रोचक ढंग से प्रस्तुत करने का प्रयास किया जाएगा जिससे विद्यार्थी अपने हर पाठ को रुचिकर ढंग से दोबारा से कर पाएं। शिक्षा से बच्चों में रूचि पैदा करने का प्रयत्न किया जा रहा है। हमने बच्चों के आध्यात्मिक शिक्षा का भी ध्यान रखते हुए उन्हें रमज़ान और नवरात्रों के बारे में विशेष बातें बताईं, जिससे उनके ज्ञान में वृद्धि हो और वे अपने संस्कारों की जड़ों से जुड़े सकें।
प्रश्न- क्या ऐसी तरकीबें अपनाई जाएं, जिससे शिक्षकों-छात्रों के रिश्ते फिर पहले जैसे बन सकें?
उत्तर- शिक्षकों-छात्रों के दरम्यान दूरियां बढ़ी हैं और तालमेल भी गड़बड़ाया है जिसे भरने के लिए छात्रों को कहानियों, खेलों के जरिए भरने का प्रयास किया जा रहा है ताकि शिक्षक अपने छात्रों के जीवन में पहले की भांति अपने लिए प्रेम जागृत कर सकें। आइस क्रीम जितनी ठंडी होती है उतनी ही मिठास से भरी। शिक्षक और बच्चे के बीच की मिठास को बरकरार रखने के लिए नर्सरी से कक्षा दूसरी के छात्रों को आकर्षित करने के लिए पहले दिन उन्हें आइस क्रीम दी गई। छात्रों और शिक्षकों को फल दिए गए। तीसरे दिन उनकी मुस्कुराहट बरकरार रखने के लिए बच्चों को स्माइली गेंद दी गई। चौथे दिन बच्चों को आकर्षक पेंसिल दी गई जिन्हें देखकर वह बहुत खुश हुए गए।
प्रश्न- विद्यार्थियों के मानसिक विकास के लिए कोई विशेष गतिविधियां भी शुरू की गईं हैं क्या?
उत्तर- बच्चों को सुबह का एक घंटा अपने मनपसंद खेलों के लिए दिया गया है। विभिन्न खेल, कला, संगीत आदि के विशेषज्ञ बुलवाए गए हैं जिनकी देखरेख में विद्यार्थी को उनकी रुचि के अनुसार सही शिक्षा दी जा रही है। विद्यालय में मिल रही सुविधाएं उन्हें यहां आने को प्रेरित कर रही हैं जिनसे वे दो वर्षों तक वंचित थे। हम विद्यार्थियों को अपना पूरा सहयोग देंगे ताकि इन दो सालों में हुए शिक्षा के हनन को आपसी तालमेल और आत्मविश्वास से भर सकें और कक्षा में स्वयं को सुरक्षित महसूस करें।
प्रश्न- क्या फीस में भी किसी तरह की कोई वृद्धि हुई है?
उत्तर- जी नहीं? पिछले सात वर्षों से हमारे विद्यालय में फीस में वृद्धि नहीं की गई है। कोरोना में हमने सिर्फ ट्यूशन फीस ली थी। अनगिनत अभिभावकों ने वह भी नहीं दी, बावजूद इसके उन विद्यार्थियों को पढ़ने आने दिया। हमारा उद्देश्य ही है कि कोई भी बच्चा शिक्षा से वंचित ना रहे। हमारा स्कूल प्रशासन सरकार के सभी निर्देशों को ईमानदारी से फॉलो कर रहा है। सरकार द्वारा निर्देशित 25 प्रतिशत गरीब बच्चों को हमारे विद्यालय में दाखिला दिया जाता है। शिक्षा अधिकार नियम के तहत प्राइवेट स्कूल को 25 प्रतिशत ईडब्ल्यूएस बच्चों को दाखिला देना होता है। हम उन छात्रों को वर्दी-पुस्तकें भी दे रहे हैं।
-डॉ. रमेश ठाकुर
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