साक्षात्कारः अभिनेता पंकज त्रिपाठी ने सुनायी अपने संघर्ष के दिनों की दास्तां

Pankaj Tripathi
ANI

अभिनेता पंकज त्रिपाठी ने कहा, ''बिहार के गोपालगंज जिले में छोटा-सा गांव बेलसंड है जहां मेरा जन्म हुआ। चार भाई-बहन में मैं सबसे छोटा हूं, कलाकार बनने का शौक बचपन से था। बचपन में कुछ ना कुछ करता रहता था, लोगों की नकल उतारता था।''

अभिनेता पंकज त्रिपाठी खाटी के मंझे हुए कलाकार हैं, जो अपनी सरल-सादगी के लिए जाने जाते हैं। आज उनकी गिनती कामयाब अभिनेताओं में होने लगी है, लेकिन यहां तक पहुंचने के लिए उन्होंने करीब 12 से 15 वर्ष तक कड़ा संघर्ष किया। शुरुआत में उन्हें एकाध विज्ञापन मिले और फिल्मों में छोटे-छोटे रोल, लेकिन इनसे ना उनकी कलाकारी की भूख मिटी और ना पेट की आग। घर-परिवार चलाना भी मुश्किल हुआ। गनीमत ये रही कि उनकी पत्नी, जो एक स्कूल टीचर थीं, उन्होंने पूरे परिवार का खर्चा उठाया। फिल्मी दुनिया में आज उनका नाम तेज रोशनी की तरह चमक रहा है, सफलता मिलने के बाद कैसा महसूस करते हैं, इस मुद्दे को लेकर डॉ. रमेश ठाकुर ने उनसे बातचीत की। पेश हैं बातचीत के मुख्य हिस्से-

प्रश्नः नवोदित कलाकारों के सामने किस तरह की कठिनाइयां आती हैं?

उत्तर- शॉर्टकट सबसे बड़ी समस्या है, जिसे आज के युवा आर्टिस्ट अपनाने की कोशिश करते हैं। मैं सबसे कहता हूं, ऐसा मत करो, आगे मुसीबतें आएगी। संपूर्ण शिक्षा, प्रशिक्षण के बगैर आपके काम में निखार नहीं आ सकता। ये नहीं हैं तो आपके काम में अनाड़ीपन दिखेगा, जिसे दर्शक पहले ही सीन में रिजेक्ट कर देंगे। फिल्म इंडस्ट्री का एक दस्तूर भी है, जो एक बार रिजेक्ट हुआ, फिर सिलेक्ट जल्दी से नहीं होता। इसलिए पूरी तैयारी के बाद युद्ध में कूदो।

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प्रश्नः आप डिमांड में हैं अब, हर निर्माता-निर्देशक आपको अपनी फिल्म में लेना चाहता है?

उत्तर- ईश्वर की कृपा है। दर्शकों का प्यार है जिन्हें मेरी अदाकारी पसंद आ रही है। लेकिन ईमानदारी से बताऊं तो ये दिन देखने के लिए पापड़ भी बहुत बेले हैं। मजदूरी से लेकर कोई ऐसा काम नहीं छोड़ा, जो मैंने ना किया हो। सात साल होटल में वेटरी करी। सब कुछ किया, पर हिम्मत नहीं हारी। वही हिम्मत आज ताकत बनी है।

प्रश्नः अपने विषय में बताएं, संघर्ष के दिन कैसे गुजरे थे?

उत्तर- बिहार के गोपालगंज जिले में छोटा-सा गांव बेलसंड है जहां मेरा जन्म हुआ। चार भाई-बहन में मैं सबसे छोटा हूं, कलाकार बनने का शौक बचपन से था। बचपन में कुछ ना कुछ करता रहता था, लोगों की नकल उतारता था, गांव-खेड़ा में होने वाली नौटंकियों में नाचने का सिलसिला शुरू हुआ। पिताजी किसान थे, गांव-आसपास में पंडताई भी करते थे। वह मेरे कलाकार बनने के खिलाफ थे, वो चाहते थे मैं डॉक्टर बनूं, पटना भेजना चाहते थे। लेकिन शायद किस्मत कहीं और ले जाना चाहती थी। आज जो आप सब लोगों के सामने हूं।

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प्रश्नः आपकी सरल-सादगी दर्शकों को बहुत पसंद आती है?

उत्तर- देखिए, मुझे दिखावा करना नहीं आता। इसी सादगी को लेकर मुंबई में लोग मजाक भी बनाते थे। शुरुआत से आदत रही है, हाथ में खैनी रगड़ना और मुंह में रखना। लेकिन स्वच्छता अभियान को ध्यान में रखता हूं, दीवारों पर पिच्च-पाच नहीं करता। वैसे, हम मुंबई में रहें, या बर्मिंघम में, यूपी-बिहार की आदत तो छूटने वाली नहीं? मुझे शर्म-वर्म नहीं आती किसी भी काम में। छोटी उम्र से ही मैंने लड़कियों की वेशभूषा धारण करके गांव के उत्सवों में अभिनय करना आरंभ कर दिया था।

प्रश्नः आपकी मिमिक्री भी आजकल आर्टिस्ट खूब कर रहे हैं, देखा है आपने?

उत्तर- मेरी बीबी और बच्चे देखकर हंसते हैं। उल्टा सीधा मुंह घुमाकर, अजीब-सी हरकत करके आर्टिस्ट मेरी आवाज निकालते हैं। हां, एकाध लोग तो हूबहू मेरी नकल करने लगे हैं। करने दो, कोई एतराज नहीं? 

-डॉ. रमेश ठाकुर

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