ओलम्पिक 2024 में भारत के ऐतिहासिक धमाल की उम्मीदें

Manu Bhaker Sarabjot Singh
ANI
ललित गर्ग । Jul 31 2024 4:56PM

राष्ट्र का एक भी व्यक्ति अगर दृढ़ संकल्प से आगे बढ़ने की ठान ले तो वह शिखर पर पहुंच सकता है। विश्व को बौना बना सकता है। पूरे देश के निवासियों का सिर ऊंचा कर सकता है, भले ही रास्ता कितना ही कांटों भरा हो, अवरोधक हो।

एक सौ चालीस करोड़ भारतीयों की तब मिट्ठियां तन गयी, यकीनन ये गर्व के क्षण हैं, जब मनु भाकर और सरबजोत सिंह की जोड़ी ने ओलम्पिक में पदक दिलाये। 10 मीटर एयर पिस्टल मिश्रित स्पर्द्धा का कांस्य पदक कई ऐतिहासिक रिकॉर्ड को समेटे हुए है। 28 जुलाई को 10 मीटर एयर पिस्टल शूटिंग श्रेणी में कांस्य जीतकर मनु पहले ही निशानेबाजी में देश के लिए ओलंपिक पदक जीतने वाली पहली महिला खिलाड़ी बन चुकी हैं और अब इस नई कामयाबी के साथ एक ही ओलंपिक में दो पदक जीतने का राष्ट्रीय गौरव एवं ऐतिहासिक कीर्तिमान भी उनके हिस्से आ गया है। दोनों खिलाड़ियों ने जता दिया कि खेलों में ही वह सामर्थ्य है कि वह देश एवं दुनिया के सोये स्वाभिमान को जगा देता है, क्योंकि जब भी कोई अर्जुन धनुष उठाता है, निशाना बांधता है तो करोड़ों के मन में एक संकल्प, एकाग्रता का भाव जाग उठता है और कई अर्जुन पैदा होते हैं। अनूठा प्रदर्शन करने वाले खिलाड़ी माप बन जाते हैं और जो माप बन जाते हैं वे मनुष्य के उत्थान और प्रगति की श्रेष्ठ, सकारात्मक एवं राष्ट्र को गौरवान्वित करने की स्थिति है। पेरिस में खेलों के महाकुम्भ ओलम्पिक 2024 के आयोजन में भारतीय खिलाड़ियों का जज्बा, ऐतिहासिक प्रदर्शन एवं संकल्प भारतीय मनुष्य के मन और माहौल को बदलने का माध्यम बनेगा, ऐसा विश्वास है। खिलाड़ियों के शानदार प्रदर्शन से भारत में ऊर्जा का संचार होगा, विश्वास, उम्मीद एवं उमंग जागेगी। जीवन के प्रति सकारात्मक रवैये को भी ये भारतीय खिलाड़ी नया आयाम देंगे। 

शाबाश मनु! तुमने न केवल हरियाणा बल्कि भारतीय लैंगिक भेदभाव की मानसिकता को चुनौती दी है, मनु की दोहरी सफलता का संदेश साफ है कि ‘बेटी पढ़ाओ, खूब खेलाओ।’ बेटियां भारत का मान एवं शान बनकर दिखायेंगी। मनु ने दो कांस्य पदक ही नहीं जीते, कई रिकॉर्ड भी अपने नाम किए। वह ओलंपिक में शूटिंग में पदक जीतने वाली पहली महिला खिलाड़ी ही नहीं बनी, बल्कि भारत की ओर से एक ही ओलंपिक में दो पदक हासिल करने वाली पहली खिलाड़ी भी बनी। मनु की यह उपलब्धि इस मायने में भी खास है कि टोक्यो ओलंपिक में उसकी पिस्टल में खराबी आने के कारण वह जीत के दरवाजे के बाहर से ही लौट आयी थी। वह लंबे समय तक तकनीकी कारणों से मिली असफलता के तनाव एवं अवसाद से जूझती रही। लेकिन उस असफलता के अवसाद को दरकिनार कर दोहरी सफलता पाना निश्चित रूप से तमाम युवाओं के लिये प्रेरणा की मिसाल बनी है, वास्तव में हमारी नकारात्मकता को सकारात्मकता में बदलने का सशक्त माध्यम बनी है। इस खेलों के महाकुम्भ से निश्चित ही अस्तित्व को पहचानने, दूसरे अस्तित्वों से जुड़ने, विश्वव्यापी पहचान बनाने और अपने अस्तित्व को दुनिया के लिये उपयोगी बनाने की भूमिका बनेगी। 

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राष्ट्र का एक भी व्यक्ति अगर दृढ़ संकल्प से आगे बढ़ने की ठान ले तो वह शिखर पर पहुंच सकता है। विश्व को बौना बना सकता है। पूरे देश के निवासियों का सिर ऊंचा कर सकता है, भले ही रास्ता कितना ही कांटों भरा हो, अवरोधक हो। देश में प्रतिभाओं और क्षमताओं की कमी नहीं है। चैंपियंस अलग होते हैं, वे भीड़ से अलग सोचते एवं करते हैं और यह सोच एवं कृत जब रंग लाती है तो बनता है इतिहास। हमारे खिलाड़ी कुछ इसी तरह चैंपियन बनकर उभरेंगे, दुनिया को चौंकाएंगे, सबके प्रेरणा बनेंगे, ऐसा विश्वास है। दस मीटर एयर पिस्टल के मिक्स्ड टीम इवेंट में मनु और सरबजोत सिंह की कामयाबी कई मायनों में खास है क्योंकि उन्होंने कोरिया के दिग्गज खिलाड़ियों को हराकर यह सफलता हासिल की। कोरियाई टीम में एक वह शूटर भी शामिल थी जिसने रविवार के दस मीटर एयर पिस्टल वर्ग में नये ओलंपिक रिकॉर्ड के साथ गोल्ड मेडल जीता था। यह जीत इन खिलाड़ियों के मजबूत मानसिक स्तर की ही परिचायक है क्योंकि शूटिंग के खेल में गहरी मानसिक एकाग्रता व ऊंचे आत्मविश्वास की जरूरत होती है।

मनु ने अपनी पिछली हार को प्रेरणा का माध्यम बनाया, भगवद् गीता के सर्वकालिक संदेश कर्म किए जाने के मंत्र का अनुसरण करते हुए मनु ने नये संकल्प एवं बुलंद इरादे से मेहनत की। एक साल में चार कोच आजमाने के बाद फिर पुराने कोच जसपाल राणा को याद किया। जसपाल भी जानते थे कि मनु में इतिहास की नई इबारत लिखने की संभावना निहित है। जसपाल भी अपनी अकादमी के सौ छात्रों को भुलाकर पेरिस में मनु को कामयाब बनाने में जुटे। निस्संदेह, देश में खिलाड़ियों की कमी नहीं है। जरूरत है उन्हें वह वातावरण देने की, जिसमें उनकी प्रतिभा में निखार आ सके। केंद्रीय खेल मंत्री के अनुसार, खेलो इंडिया कार्यक्रम के अंतर्गत केंद्र सरकार ने मनु भाकर की ट्रेनिंग में दो करोड़ रुपये खर्च किए। यह सुखद है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की व्यक्तिगत दिलचस्पी ने खेल-कूद के प्रति सार्वजनिक प्रयासों को एक नई ऊर्जा दी है। देश के हरेक हिस्से से प्रतिभाओं को पहचानने और उन्हें तराशने वाले अकेले खेलो इंडिया कार्यक्रम के लिए 900 करोड़ रुपये का बजटीय आवंटन इसका प्रमाण है। मनु और आगे बढ़ो, क्योंकि देश को तुमसे एक और पदक की उम्मीदें लगी है। अभी पेरिस में मनु की प्रिय स्पर्धा पच्चीस मीटर एयर पिस्टल स्पर्धा बाकी है। उम्मीद करें की एक सौ चालीस करोड़ देशवासियों की उम्मीदों पर मनु फिर खरी उतरेगी।

देश की आर्थिक समृद्धि ने सरकारों को जहां खेलों में अधिक निवेश की सहूलियत दी। दुनिया की तीसरी अर्थ-व्यवस्था बनने की ओर अग्रसर देश खेलों में भी अग्रणी बन रहा है। समाज ने भी खेल-कूद से जुड़े अपने पुराने जुमलों एवं संकीर्ण मानसिकता को बदला है। परिणाम सामने है। आज हम दहाई अंक में ओलंपिक पदकों की उम्मीद बांध रहे हैं, तो मनु भाकर का शानदार आगाज इस अपेक्षा को मजबूत आधार दे रहा है। मगर अभी भारत को मीलों की दूरी तय करनी है। ओलंपिक की पदक तालिका में शीर्ष क्रम पर आने के लिए हमें अपने खेल संगठनों को पेशेवर बनाना होगा, उन्हें राजनीतिक विवादों एवं राजनीति से दूर रखना होगा। पिछले दिनों कुश्ती महासंघ के विवाद ने काफी कटु स्मृतियां छोड़ी हैं। ऐसे विवादों के त्वरित निपटारे की जरूरत है, ताकि खिलाड़ी हताश न हों और उनको अदालत की शरण लेने की नौबत न आए। भारतीय खिलाड़ी निशानेबाजी, कुश्ती, भारोत्तोलन, हॉकी, भाला फेंक, बॉक्सिंग में अपना लोहा मनवा चुके हैं, दूसरी विधाओं में भी संभावनाएं कम नहीं हैं। मनु भाकर जैसी प्रतिभाएं आश्वस्त कर रही हैं कि अपनी कमियों को जीतना हम जानते हैं। भरोसा रखिए, ओलंपिक खेलों में हमारे गौरव के पदक धारक बेटे-बेटियों की तादाद पर दुनिया ईर्ष्या करने को बाध्य होगी।

नित-नयी विपरीत स्थितियों की धुंध को चीरते हुए भारत के खिलाड़ी एवं खेल प्रतिभाओं के जज्बे से ऐसे उजालों का अवतरण होगा कि दुनिया आश्चर्य करेंगी। एक ऐसी रोशनी अवतरित होगी जिससे भारतवासियों को प्रसन्नता, गर्व, अभय एवं आशा का प्रकाश मिलेगा। 2024 के पेरिस ओलंपिक से हमें बेहद उम्मीदें हैं। क्योंकि यहां तक पहुंचते-पहुंचते कईयों के घुटने घिस जाते हैं। एक बूंद अमृत पीने के लिए समुद्र पीना पड़ता है। पदक बहुतों को मिलते हैं पर सही खिलाड़ी को सही पदक मिलना खुशी देता है। ये देखने में कोरे पदक हैं पर इसकी नींव में लम्बा संघर्ष और दृढ़ संकल्प का मजबूत आधार छिपा है। राष्ट्रीयता की भावना एवं अपने देश के लिये कुछ अनूठा और विलक्षण करने के भाव ने ही खेलों में भारत की साख को बढ़ाया है। ओलंपिक खेलों में विजयगाथा लिखने को बेताब देश की बेटियां, एवं अन्य खिलाड़ी अभूतपूर्व सफलता का इतिहास रचने को तत्पर है, उनकी आंखों में तैर रहे भारत को अव्वल बनाने के सपने को जीत का हार पहनते देखने का यह समय निश्चित ही रोमांचित एवं गौरवान्वित करने वाला होगा। जाहिर है कि सही वक्त पर, सही प्रतिभा को प्रोत्साहन एवं प्राथमिकता मिल जाए तो खेलों की दुनिया में देश का नाम सोने की तरह चमकते अक्षरों में दिखेगा।

- ललित गर्ग

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तम्भकार हैं)

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