पैरालंपिक में भारत का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन, दिव्यांग खिलाडि़यों ने जीता देशवासियों का दिल

Paris Paralympics
ANI

केन्द्र सरकार दिव्यांग खिलाडि़यों को भी प्रोत्साहित कर रही है। पैरालंपिक खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वालों को 75 लाख, रजत विजेता को 50 लाख और कांस्य पदक विजेता को 25 लाख रुपये दिए जाएंगे। पेरिस में महिला एथलीटों ने कमाल का प्रदर्शन किया है।

पेरिस पैरालंपिक में हमारे खिलाडि़यों ने भारत का मस्तक ऊंचा कर दिया है। शारीरिक रूप से अक्षम इन खिलाडि़यों पर हमें गर्व होना चाहिए। उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन करके उन्होंने कुल 29 पदक जीते हैं जिनमें 7 स्वर्ण, 9 रजत और 13 कांस्य पदक शामिल हैं। पदक तालिका में भारत 18वें स्थान पर रहा। यह भारत का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है। तीन साल पहले टोक्यो में हम 24वें स्थान पर थे। टोक्यो पैरालंपिक खेलों में मिले 19 पदकों का रिकॉर्ड भी इस बार ध्वस्त हो गया। पैरालंपिक में दिव्यांग खिलाड़ी या एथलीट हिस्सा लेते हैं। साधारण परिवार से आने वाले इन खिलाडि़यों के संघर्ष की कहानी सुन कर किसी की भी आंख नम हो जाएगी। किसी के दोनों हाथ नहीं है तो कोई एक कृ़त्रिम पैर लगा कर दौड़ रहा है। पेरिस पैरालंपिक में भारत की ओर से 84 खिलाड़ी भाग लेने गए थे। इसमें से 23 खिलाड़ी हरियाणा से थे। खेलों में हरियाणा हमेशा अग्रणी रहा है। मुक्केबाजी और कुश्ती में इस राज्य का दबदबा है। इससे यह भी संकेत मिलता है कि वहां खेलों का बढि़या ढांचा काम कर रहा है।   

केन्द्र सरकार दिव्यांग खिलाडि़यों को भी प्रोत्साहित कर रही है। पैरालंपिक खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वालों को 75 लाख, रजत विजेता को 50 लाख और कांस्य पदक विजेता को 25 लाख रुपये दिए जाएंगे। पेरिस में महिला एथलीटों ने कमाल का प्रदर्शन किया है। भारत के 29 में से 10 पदक बेटियों के नाम रहे। भारत की ओर से इस बार महिलाओं का रिकॉर्ड प्रतिनिधित्व भी रहा। कुल 84 एथलीट के भारतीय दल में 32 महिलाएं थीं। पदक जीतने वाली 10 महिलाओं में तुलसिमति, शीतल देवी, मनीषा रामदास समेत सात एथलीट पहली बार पैरालंपिक में भाग लेने गई थीं।

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टोक्यो में स्वर्ण जीतने वाली निशानेबाज अवनि लखेरा और भाला फेंक खिलाड़ी सुमित अंतिल ने अपने खिताब बचाए हैं। इन दोनों ने पेरिस में भी स्वर्ण पदक पर कब्जा कर लिया। अवनि लगातार दो स्वर्ण जीतने वाली पहली भारतीय बन गई हैं। राजस्थान की अवनि ने 11 साल की उम्र में कार दुर्घटना में अपने दोनों पैर गंवा दिए थे। साथ ही कमर का निचला हिस्सा लकवाग्रस्त होने से व्हीलचेयर का सहारा लेना पड़ा। इस हादसे से अवनि पूरी तरह टूट चुकी थी। मगर, पिता ने उसका हौसला बढ़ाया और आज वह दो स्वर्ण पदक जीतने वाली महिला खिलाड़ी है। इसके अलावा भाला फेंक में सुमित अंतिल ने भी लगातार दूसरे पैरालंपिक में स्वर्ण पदक अपने नाम किया है। उन्होंने तीन साल पहले टोक्यो में स्वर्ण जीतने के बाद प्रधानमंत्री मोदी से वादा किया था कि एक स्वर्ण और जीतूंगा। सुमित ने न केवल अपना वादा निभाया बल्कि पेरिस में जीता हुआ स्वर्ण पदक प्रधानमंत्री के नाम कर दिया।

भाला फेंक में बौने कद (चार फीट चार इंच) के नवदीप सिंह ने भी स्वर्ण पदक जीता है। वह भाला फेंक के एफ 41 वर्ग में देश के पहले चैम्पियन हैं। उनका कहना है, 'हमें भी उतना ही सम्मान मिलना चाहिए। मैंने भी देश का नाम रोशन किया है।' उन्हें अपने गांव में लोगों के तानों का भी सामना करना पड़ा। वह कहते हैं किसी को हमारा मजाक नहीं उड़ाना चाहिए। एक मजेदार वाक्या तब हुआ जब प्रधानमंत्री को वह टोपी पहनाना चाहते थे। पीएम मोदी उनकी मजबूरी समझते हुए उनकी सुविधा के लिए फर्श पर बैठ गए। वह बाएं हाथ से थ्रो करते हैं। पानीपत के 23 वर्षीय नवदीप ने दस साल की उम्र में अपनी एथलेटिक यात्रा शुरू की। नीरज चोपड़ा से उन्हें काफी प्रेरणा मिलती है। टोक्यो में वह चौथे स्थान पर थे लेकिन पेरिस में कमाल कर दिया। 

हरियाणा के किसान परिवार के तीरंदाज हरविंदर सिंह ने पुरुषों की व्यक्तिगत रिकर्व ओपन स्पर्धा में देश को स्वर्ण पदक दिलाया है। वहीं एफ−51 स्पर्धा में धरमवीर ने सोना पर कब्जा किया। धरमवीर के साथी प्रणव सूरमा ने रजत पदक अपने नाम किया। टोक्यो पैरालंपिक के कांस्य विजेता हरविंदर ने सेमी फाइनल में ईरान के मोहम्मद रेजा को 7−3 से हराया। इस तरह वह फाइनल में पहुंचने वाले पहले तीरंदाज बने। रिकर्व ओपन में तीरंदाज 70 मीटर की दूरी से खड़े होकर निशाना लगाते हैं। कोविड के समय हरविंदर के पिता ने अपने खेत को ही तीरंदाजी रेंज में बदल दिया था ताकि वह अभ्यास कर सकें। एफ−51 क्लब थ्रो स्पर्धा उन खिलाडि़यों के लिए है जिनके धड़, पैर और हाथों में मूवमेंट सामान्य दशा में नहीं रहती। सभी प्रतियोगी बैठे−बैठे ही निशाना साधते हैं।  

पैरालंपिक में ग्रेटर नोएडा के किसान परिवार में जन्मे प्रवीण कुमार ने स्वर्ण पदक जीत कर इतिहास रच दिया। उन्होंने 2.08 मीटर ऊंची कूद लगाकर देश को छठा स्वर्ण पदक दिलाया। प्रवीण का एक पैर जन्म से ही छोटा है। चिकित्सकों ने बताया कि कूल्हे की हड्डी में दिक्कत के कारण वह सामान्य ढंग से नहीं चल सकते। उनके पिता अमरपाल ने देखा कि बेटे को खेल के प्रति जुनून है। बड़ी मुश्किल से प्रवीण को स्कूल में दाखिला मिला। एक बार सामान्य बच्चों के साथ खेलते हुए प्रवीण ने पहला स्थान प्राप्त किया। सब लोग हैरान रह गए। उनकी खेल यात्रा यहीं से शुरू हो गई। 2018 में स्कूल की ओर से खेलो इंडिया के तहत उन्होंने विभिन्न प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया। टोक्यो में उन्होंने रजत पदक जीता था।

जम्मू की 17 वर्षीय शीतल देवी के दोनों हाथ नहीं हैं लेकिन इस बेटी ने तीरंदाजी की मिश्रित स्पर्धा में कांस्य पदक जीता है। इस इवेंट में पदक जीतने वाली वह पहली भारतीय महिला बनी। उसने 39 वर्षीय राकेश कुमार के साथ यह पदक हासिल किया। इस जोड़ी ने इटली की टीम को कड़े मुकाबले में 156−155 अंकों से हराया। यही नहीं, वह पैरालंपिक में सबसे कम उम्र की भारतीय पदक विजेता भी है। शीतल कुर्सी पर बैठ कर अपने दाहिने पैर से धनुष उठाती है। फिर दाहिने कंधे की मदद से स्टि्रंग को वापस खींचती है। इसके बाद जबड़े की ताकत से तीर छोड़ती है। शीतल एक अनोखी बीमारी 'फोकोमेलिया' के साथ पैदा हुई थी। उसकी  कामयाबी पर भला किसे नाज नहीं होगा?

बैडमिंटन खिलाड़ी नितेश कुमार ने स्वर्ण पदक हासिल किया। उन्होंने पुरुष एकल स्पर्धा में ब्रिटेन के डेनियल बेथेल को हराया। हरियाणा के करनाल निवासी नितेश की दुखभरी कहानी भी अजीब है। जब वह 15 साल के थे तब उनकी जिंदगी में दुखद मोड़ आया। 2009 में विशाखापटमन में उन्होंने रेल दुर्घटना में अपना पैर खो दिया। आईआईटी मंडी में पढ़ाई के दौरान नितेश को बैडमिंटन की जानकारी मिली। इसके बाद उन्होंने इसे अपना लिया। उन्होंने 2022 के एशियाई पैरा खेलों में रजत सहित तीन पदक जीते थे। वह नौसेना अधिकारी के पुत्र हैं। इसी खेल में 41 वर्षीय आईएएस अधिकारी एलवाई सुहास ने पैरालंपिक में लगातार दूसरी बार रजत पदक जीता है। उन्हें मलाल है कि वह सोना नहीं ला सके। वहीं, तुलसीमति मुरुगेसन और मनीषा रामदास ने एकल स्पर्धा में क्रमशरू रजत और कांस्य पदक अपने नाम किया है। 

योगेश कथूनिया ने पुरुषों की चक्का फेंक स्पर्धा में लगातार दूसरा रजत पदक जीता। हरियाणा के योगेश ने टोक्यो में भी रजत जीता था। बहादुरगढ़ के पैरा एथलीट योगेश ने 42.22 मीटर के साथ सत्र का अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया। वह भी अपने प्रदर्शन से संतुष्ट नहीं हैं। कहते हैं− 'हर जगह मैं रजत जीत रहा हूं, अब मुझे स्वर्ण पदक चाहिए।' वह नौ साल की उम्र में 'गुइलेन बैरी सिंड्रोम' से पीडि़त हो गए थे। यह दुर्लभ बीमारी है जिसमें अंगो में सुन्नता, झनझनाहट के साथ मांसपेशियों में कमजोरी आ जाती है। यूपी के अजीत सिंह ने जैवलिन थ्रो में रजत पदक जीत कर देश का मान बढ़ाया जबकि बिहार के शरद कुमार ने हाई जंप में रजत पदक जीता। वहीं अपनी कमजोरी को हथियार बनाने वाली आंध्र प्रदेश की दीप्ति जीवनजी ने 400 मीटर दौड़ में तीसरे स्थान पर रहते हुए कांस्य जीता। छोटी उम्र से ही दीप्ति को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। गाजियाबाद की सिमरन शर्मा को हम कैसे भूल सकते हैं। दृष्टिबाधित सिमरन ने 200 मीटर की दौड़ में कांस्य पदक जीता है। समय से तीन माह पहले पैदा हुई सिमरन को डॉक्टरों ने कह दिया था कि वह कुछ दिनों की मेहमान है। जन्म के बाद 10 सप्ताह तक उसे इनक्यूबेटर में रहना पड़ा। तब पता चला कि वह दृष्टिबाधित हैं।

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