परियोजनाओं में देरी से जो नुकसान होता है उसके लिए जवाबदेही तय होनी चाहिए
रिपोर्ट के अनुसार यदि पिछले पांच साल की ही 150 करोड़ रुपए से अधिक की लागत वाली 1424 परियोजनाओं की ही चर्चा की जाए तो देरी के कारण इन परियोजनाओं की लागत में 3 लाख 16 हजार करोड़ रुपए की बढ़ोतरी हुई है।
परियोजनाओं के समय पर पूरा नहीं होने से होने वाले नुकसान का आकलन करती देश के सांख्यिकी और कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय की हालिया रिपोर्ट इस मायने में महत्वपूर्ण हो जाती है कि परियोजनाओं की देरी के चलते लाखों करोड़ रुपए का नुकसान होने के साथ ही लोगों को मिलने वाली सुविधाओं में भी अनावश्यक देरी होती है। इसके साथ ही विकास का पहिया धीमा हो जाता है और देरी के कारण परियोजना लागत में वृद्धि के साथ ही कई अन्य नुकसान उठाने पड़ते हैं। देखा जाए तो यह किसी अपराध से कम नहीं आंका जाना चाहिए। रिपोर्ट के अनुसार यदि पिछले पांच साल की ही 150 करोड़ रुपए से अधिक की लागत वाली 1424 परियोजनाओं की ही चर्चा की जाए तो देरी के कारण इन परियोजनाओं की लागत में 3 लाख 16 हजार करोड़ रुपए की बढ़ोतरी हुई है। तय समय सीमा में यह परियोजनाएं पूरी हो जातीं तो इन पर कुल व्यय 18 लाख 17 हजार 469 करोड़ रुपए आता। 3 लाख करोड़ रुपए से देश में कई छोटी मोटी नई परियोजनाएं शुरू कर विकास की नई इबारत लिखी जा सकती थी पर परियोजनाओं की देरी के कारण सीधे सीधे जनता के धन का नुकसान हो गया।
दरअसल बड़ी परियोजनाएं आधारभूत सुविधाओं के विस्तार से जुड़ी होती हैं। यह परियोजनाएं यातायात सड़क परिवहन की हो सकती हैं तो रेल सुविधाओं के विस्तार की, बिजली क्षेत्र की हो सकती हैं तो शिक्षा या स्वास्थ्य क्षेत्र की, कृषि विकास की हो सकती हैं तो कोल्ड स्टोरेज या कोल्ड चेन की हो सकती हैं। शहरी या ग्रामीण विकास या पेट्रोलियम, कोयला, गैस या गैरपरंपरागत ऊर्जा आदि की यह परियोजनाएं हो सकती हैं। सरकार के मेगा प्रोजेक्ट भी इसी श्रेणी में आते हैं। यह नहीं भूलना चाहिए कि परियोजनाएं कोई भी हों प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष रूप से देशवासी इन योजनाओं से प्रभावित होते हैं। यह भी सही है कि एक परियोजना से जुड़े लोगों के अलावा भी अप्रत्यक्ष रूप से हजारों लोगों को रोजगार या अन्य लाभ होते हैं। इसके साथ ही किसी भी क्षेत्र की कोई भी परियोजना हो वह देश के विकास के पहिए को नई दिशा देती है।
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एक बात साफ हो जानी चाहिए कि जब कोई परियोजना तैयार की जाती है और खासतौर से बड़ी परियोजनाएं तो परियोजना तैयार करते समय सभी पक्षों का अध्ययन किया जाता है। विशेषज्ञों के अध्ययन और आकलन के आधार पर ही परियोजना की लागत और अवधि तय होती है। कई बार ऐसा भी देखने में आया है कि परियोजनाएं तय समय सीमा से पहले तैयार हो जाती हैं और इससे वित्तीय लागत कम आने के साथ ही लोगों को समय से परियोजना का लाभ मिलना शुरू हो जाता है। आज स्वर्ण चतुर्भुज सड़क परियोजना इसका उदाहरण है, इससे समूचे देश में यातायात सुगम हुआ है। एक जगह से दूसरी जगह जाना आसान हुआ है। यही कारण है कि हर 50−60 किमी पर टोल देने के बावजूद लोग इसे सुविधाजनक ही मानकर चलते हैं। इसी तरह से रेल परियोजनाएं या दूसरी परियोजनाएं हैं। सवाल यह है कि जब परियोजना तैयार की जाती है तो निश्चित रूप से परियोजना के क्रियान्वयन में आने वाली बाधाओं का भी आकलन किया जाता होगा। जैसे कहीं सड़क चार या छह लेन की हो रही है तो उसके लिए भूमि की सहजता से उपलब्धता की संभावनाएं भी निश्चित रूप से देखी जाती होगी। ऐसे में परियोजना के आरंभ के साथ ही उसकी आवश्यक तैयारियों का रोडमैप तैयार होने और उसी के अनुसार क्रियान्वयन किया जाता है और वैकल्पिक व्यवस्थाओं को ध्यान में रखा जाता है तो फिर परियोजना में देरी का कारण समझ से परे होता है। यह भी साफ होना चाहिए कि किसी भी परियोजना की स्वीकृति दी जाती है तो फिर परियोजना लागत की धनराशि की व्यवस्था भी पुख्ता होनी चाहिए। कई बार समय पर राशि उपलब्ध नहीं होने से या लालफीताशाही के कारण राशि देरी से जारी होने के कारण भी परियोजनाओं में देरी की स्थिति बनती है। ऐसे में अनावश्यक रूप से परियोजना में देरी होती है और इसके कारण आपसी विवाद व लागत में बढ़ोत्तरी हो जाती है।
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देखा जाए तो परियोजनाओं का तय समयसीमा में पूरा नहीं होना अपने आप में गंभीर है। नीति आयोग ने भी इसे गंभीरता से लिया है। पर एक बात साफ हो जानी चाहिए कि किसी भी परियोजना के तय समय सीमा में पूरी नहीं होने की स्थिति में जिम्मेदारी तय होनी चाहिए और जिम्मेदारों को सजा का प्रावधान होना चाहिए। क्योंकि सरकारी धन देखा जाए तो जनता की कड़ी मेहनत का सरकार द्वारा टेक्स के रूप में वसूला हुआ धन है। ऐसे में एक-एक पैसे का उपयोग सोच समझ कर किया जाना चाहिए। देखने की बात यह है कि एक परियोजना अपने आप में केवल एक परियोजना नहीं होती, उससे जुड़ा होता है उस क्षेत्र के लोगों का विकास। यहीं नहीं एक परियोजना पूरी होने का मतलब होता है प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से कई तरह के लाभ। जैसे उदाहरण के लिए मेगा फूडपार्क से ही लें तो पार्क बनने से आसपास के हजारों किसानों को लाभ होगा। इसी तरह से सड़क या बिजली, रेल, अस्पताल, शिक्षण संस्थान या अन्य कोई परियोजना यदि समय से पूरी होती है तो इसका लाभ मिलता है। कई बार परियोजना की देरी से लागत बढ़ने के साथ ही तकनीक में बदलाव या अन्य तरह का नुकसान होने की संभावना भी बन जाती है। ऐसे में सरकार को चाहे वह एक ही परियोजना ले, पर उस परियोजना को लागू करते समय यह सुनिश्चित कर लें कि परियोजना के लिए धन व अन्य आवश्यकताओं की कमी नहीं आने दी जाएगी। योजनाओं का क्रियान्वयन मशीनरी की भी जिम्मेदारी हो जाती है कि परियोजना तय समयसीमा में पूरी हो ताकि उसकी लागत में बढ़ोतरी ना हो और लक्षित वर्ग को समय पर लाभ मिलना आरंभ हो सके। आखिर यह सबके विकास से जुड़ा है। परियोजनाओं के क्रियान्वयन में बाधक बनने वालों पर भी सरकार को सख्ती करनी होगी ताकि सरकारी धन का अपव्यय रोका जा सके। अब देरी के कारण 3 लाख करोड़ रुपए की लागत बढ़ोतरी को ही देखें तो देश में 3 लाख करोड़ में कई मेगा प्रोजेक्ट शुरु किए जा सकते थे। ऐसे में सरकार व नीति आयोग को गंभीर होना होगा।
-डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा
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