कांग्रेस की जाट राजनीति का टूल हैं पहलवान

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ANI

माना जाता है कि देश में जाट बिरादरी की आबादी कुल जनसंख्या का 6 फीसदी है। पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली और उत्तर प्रदेश में जाटों की आबादी अन्य राज्यों की तुलना में ज्यादा है। दिल्ली और इससे सटे राज्यों की करीब 40 लोकसभा सीटों पर जाट वोटरों का सीधा प्रभाव है।

किसान आंदोलन की समाप्ति के बाद से देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस पहलवानों के जरिए अपनी जाट राजनीति को आगे बढ़ा रही है। कांग्रेस की इस राजनीति में अतिमहत्वकांक्षी पहलवान शामिल हैं। साक्षी मलिक की कुश्ती से संन्यास, बजरंग पुनिया और विनेश फोगाट की सम्मान वापसी इसी ओर इशारा करती है कि, पहलवानों को न्याय व्यवस्था पर भरोसा नहीं है। नाराज पहलवानों से मिलने प्रियंका गांधी वाड्रा और राहुल गांधी का पहुंचना पूरी तरह साफ करता है कि, पहलवान कांग्रेस के की जाट राजनीति के टूल हैं। पहलवान आंदोलन में हरियाणा के युवा जाट नेता और राज्यसभा सांसद दीपेंद्र हुड्डा की सहभागिता और सक्रियता  सार्वजनिक है। जंतर मंतर में पहलवानों के धरने के दौरान प्रियंका पहलवानों से मिलने गई थी। ऊपरी तौर पर लड़ाई भले ही पहलवानों और कुश्ती संघ के बीच दिखाई देती हो, लेकिन इसके जड़ में जाट वोटों की राजनीति है।

माना जाता है कि देश में जाट बिरादरी की आबादी कुल जनसंख्या का 6 फीसदी है। पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली और उत्तर प्रदेश में जाटों की आबादी अन्य राज्यों की तुलना में ज्यादा है। दिल्ली और इससे सटे राज्यों की करीब 40 लोकसभा सीटों पर जाट वोटरों का सीधा प्रभाव है। हरियाणा में जाटों की आबादी 25 फीसदी है। पंजाब में भी जाटों की जनसंख्या 25 से 30 प्रतिशत आंकी जाती है। राजस्थान में 12 और दिल्ली में 12 फीसदी आबादी इसी बिरादरी की है। 22 करोड़ की जनसंख्या वाले यूपी में जाटों की आबादी महज दो फीसदी मानी जाती है, मगर पश्चिम उत्तर प्रदेश की 18 लोकसभा सीटों पर जाति का दबदबा है।

हरियाणा में पिछले दस साल से भारतीय जनता पार्टी की सरकार है। किसान आंदोलन के बाद से कांग्रेस को हरियाणा में राजनीतिक संभावनाएं अपने पक्ष में दिखाई देती हैं। उसे लगता है कि किसान और पहलवानों के कंधों पर सवार होकर भाजपा को हरियाणा की सत्ता से बाहर किया जा सकता है। वहीं लोकसभा चुनाव में हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, राजस्थान, दिल्ली और पंजाब के जाट वोटरों के प्रभाव वाली सीटों में भी उसे इसका फायदा मिलेगा।  

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जाट बिरादरी के बड़े गढ़ हरियाणा में कांग्रेस पिछले दस साल से सत्ता से दूर है। हरियाणा से गांधी परिवार के करीबी कई बड़े जाट नेता हैं। जिनमें भूपेंद्र सिंह हुड्डा, रणदीप सिंह सुरजेवाल, दीपेंद्र हुड्डा प्रमुख हैं। लेकिन इन नेताओं के सारे यत्नों और प्रपंचों के बावजूद हरियाणा में उनकी दाल गल नहीं रही। 2019 के लोकसभा चुनाव में हरियाणा की दस सीटों पर मोदी की सुनामी के आगे किसी राजनीतिक दल की नहीं चली। प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस भी धराशायी हो गई। भाजपा ने पिछले सभी रिकार्ड तोड़ते हुए यहां सभी दस सीटों पर विजय पताका फहराई थी।

कंाग्रेस के बड़े जाट नेता भूपेंद्र हुड्डा सोनीपत और उनके पुत्र दीपेंद्र हुड्डा रोहतक से हार गए। भूपेंद्र और दीपेंद्र के अलावा कांग्रेस के दिग्गज नेता कुमारी शैलजा, निर्मल सिंह, कांग्रेस के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष अशोक तंवर, कैप्टन अजय यादव और अवतार भड़ाना को भी हार का मुंह देखना पड़ा। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने कांग्रेस और इंडियन नेशनल लोकदल यानी इनेलो को हराकर हरियाणा में सात सीटें जीती थी। कांग्रेस नेता दीपेंद्र हुड्डा रोहतक से जीते थे। इनेलो ने हिसार व सिरसा की दो सीटें जीती थी।

साल 2014 में हरियाणा विधानसभा चुनाव में भाजपा ने ऐतिहासिक प्रदर्शन करते हुए कुल 90 सीटों में से 47 पर विजय हासिल कर कांग्रेस को सत्ता से बेदखल किया था। 2019 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 40 सीटें जीती और दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी यानी जजपा के साथ मिलकर सरकार बनाई। पिछले दस साल से बीजेपी की हरियाणा में सरकार है। जाट बहुल जनसंख्या वाले राज्य हरियाणा में बीजेपी की मजबूती और पकड़ कांग्रेस को अखर रही है। प्रदेश में बीजेपी सरकार बनने के बाद से कांग्रेस ने किसी न किसी तरह मनोहर लाल की सरकार को अस्थिर करने की कोशिश की। जाट आरक्षण, किसान आंदोलन और पहलवान आंदोलन में कांग्रेस की भूमिका सार्वजनिक है।

देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में किसान आंदोलन की समाप्ति के बाद साल 2022 में यूपी विधानसभा चुनाव में योगी सरकार ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की। तमाम विरोधों और आंशकाओं के बाद भी 37 साल बाद उत्तर प्रदेश में ऐसा हुआ कि किसी दल ने लगातार दूसरी बार सरकार बनाई हो। चुनाव से पहले प्रदेश के पश्चिमी हिस्से यानी जाट बेल्ट में भाजपा को नुकसान की आशंका राजनीति के जानकार बता रहे थे।

कांग्रेस ने यह चुनाव यूपी प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा के नेतृत्व में लड़ा। कांग्रेस की सारी रणनीति और पैंतरेबाजी की बावजूद पार्टी ने विधानसभा चुनाव में अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन किया। उसे दो सीटों पर जीत मिली। जाट बेल्ट में तो उसका खाता ही नहीं खुला। वर्ष 2017 का विधानसभा चुनाव कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन करके लड़ा था, और उसे 7 सीटों पर जीत मिली थी। तब पश्चिम उत्तर प्रदेश से उसके दो विधायक बेहट ओर सहारनपुर सीट जीते थे। वर्तमान में यूपी में कांग्रेस दो विधायक हैं। जो प्रदेश के पूर्वी क्षेत्र से हैं। सोनिया गांधी यूपी से एकमात्र कांग्रेस सांसद हैं। 100 सदस्यों की विधान परिषद में उसकी सदस्य संख्या शून्य है।

साल 2022 में पंजाब विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस को सत्ता से बुरी तरह बेदखल किया। 117 सीटों में से 92 सीटें आप ने जीती तो कांग्रेस के हिस्से में मात्र 18 सीटें आई। भाजपा और शिरोमणि दल का प्रदर्शन भी निराशाजनक रहा। पंजाब में भी जाट वोटर हार जीत में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। राजस्थान में भी जाट वोटों की बड़ी अहमयित है। हालिया विधानसभा चुनाव में राजस्थान में भाजपा ने कांग्रेस को बड़ी शिकस्त देकर सत्ता से बेदखल किया है। राजस्थान में बिश्नोई बहुल 27 सीटों में से 24 पर भाजपा की जीत हुई है। हरियाणा से सटे राजस्थान की अधिकतर सीटों पर भाजपा उम्मीदवार विजयी हुए हैं। इनके जाट बहुल होने के बावजूद जननायक जनता पार्टी और कांग्रेस का प्रदर्शन फीका रहा।

हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, दिल्ली और पंजाब में कांग्रेस की सरकारों ने लंबे समय तक राज किया है। आंकड़ों के आलोक में बात की जाए तो जाट वोटरों के प्रभाव वाले राज्यों में कांग्रेस की ताकत लगातार कमजोर हुई है। कांग्रेस के अलावा जाट वोटों की राजनीति करने वाले इंडियन नेशनल लोकदल, जननायक जनता पार्टी, राष्ट्रीय लोकदल और अन्य दल भी बीजेपी के सामने कमजोर दिखाई देते हैं। दिल्ली, पंजाब, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में निराशाजनक प्रदर्शन के बाद कांग्रेस को जाट वोटरों के हिसाब से उम्मीद की रोशनी हरियाणा में सबसे ज्यादा दिखाई देती है।

अगले साल आम चुनाव के बाद साल के आखिरी महीनों में हरियाणा विधानसभा के चुनाव होंगे। ऐसे में उसका फोकस लोकसभा चुनाव में जाट वोटरों का समर्थन पाने और हरियाणा की सत्ता की हासिल करने पर है। अपने मंसूबे पूरे करने के लिए किसान आंदोलन के बाद अब कांग्रेस पहलवानों के जरिए जाट वोटरों को अपने पाले में लाने और बीजेपी की जाट बिरादरी में नेगेटिव छवि बनाने की कोशिशों में जुटी है। आंदोलन वाले पहलवानों को पार्टी की ओर लोकसभा और विधानसभा चुनाव में टिकट देने की बात कही गई है।  

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के अपमान से जाट समाज के अंदर कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस को लेकर रोष का भाव है। ऐसे में बाज़ी हाथ से खिसकते देख विपक्ष खासकर कांग्रेस ने, जाट वोट बैंक के लिये साक्षी मलिक, बजरंग पुनिया आदि पहलवानों को आगे कर दिया। सभी घड़ियाली आंसू बहा रहे है। पहलवानों को न्याय मिलना चाहिए लेकिन जब, मामला ही कोर्ट में है तो थोड़ा इंतजार किया जाना चाहिये, दोषी को सजा कोर्ट देगा, प्रधानमंत्री मोदी या बीजेपी नहीं। पहलवान देश की न्यायपालिका पर ही विश्वास नही करते। पहलवानों को अगर राजनीति ही करनी है या राजनीति का मुखौटा ही बनना है तो फिर राजनीति ही करो, खेल को बीच में क्यों ला रहे हो। पहलवानों को समझना चाहिए इस सारी राजनीति में सबसे बड़ा नुकसान कुश्ती के खेल का हो रहा है।

- डॉ. आशीष वशिष्ठ

स्वतंत्र पत्रकार

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