सुषमा लोकसभा की बजाय राज्यसभा जाएंगी तो अरुण जेटली का क्या होगा ?

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मध्य प्रदेश के विदिशा संसदीय क्षेत्र से लोकसभा सांसद सुषमा स्वराज का लोकसभा चुनाव नहीं लड़ने का ऐलान भाजपा के लिए झटका भी है क्योंकि स्वराज जिस भी सीट से चुनाव लड़तीं वहां पार्टी की जीत पक्की ही थी।

विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने ऐलान किया है कि वह 2019 का लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेंगी। उन्होंने इसका कारण अपनी सेहत को बताया है। दिसंबर 2016 में गुर्दा प्रतिरोपण के बाद उन्हें डॉक्टरों ने धूल से बचने की हिदायत दी है। मध्य प्रदेश के विदिशा संसदीय क्षेत्र से वर्तमान में लोकसभा सांसद सुषमा स्वराज का लोकसभा चुनाव नहीं लड़ने का ऐलान भाजपा के लिए झटका भी है क्योंकि स्वराज जिस भी सीट से चुनाव लड़तीं वहां पार्टी की जीत पक्की ही थी। सुषमा का लोकसभा में नहीं रहना भाजपा को इसलिए भी परेशान करेगा क्योंकि सदन में उसके पास से एक प्रखर वक्ता चला जायेगा हालांकि यदि 2019 में वापस मोदी सरकार बनती है तो सुषमा मंत्री के नाते लोकसभा में बैठ सकती हैं और सरकार का पक्ष रख सकती हैं लेकिन नियमित तौर पर सदन में उनके नहीं रहने से पार्टी अथवा भावी सरकार को कमी खलेगी।

भाजपा को लगातार लग रहा है झटका

अब तक लोकसभा में भाजपा का मजबूती से पक्ष रखने वाले और विभिन्न दलों के साथ अपने रिश्तों की बदौलत सरकार के लिए कठिन समय पर राह आसान बनाने वाले केंद्रीय मंत्री अनंत कुमार नहीं रहे, लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी हालांकि वर्तमान लोकसभा में अधिकांश समय खामोश ही रहे लेकिन अपने अनुभव की बदौलत सरकार को राह दिखाते रहे हैं। इन दोनों को भी अगले चुनावों में भाजपा का टिकट मिलने की संभावना बेहद कम है। अब सुषमा स्वराज ने लोकसभा चुनाव लड़ने से मना कर दिया है तो निश्चित ही संसद के निचले सदन में भाजपा की अनुभव और वक्तृत्व कला में निपुण लोगों की कमी हो जायेगी।

भाजपा का समयचक्र

अटल बिहारी वाजपेयी के सक्रिय राजनीति से दूर होने के बाद और नितिन गडकरी के दिल्ली आने से पहले तक राष्ट्रीय राजधानी में भाजपा आलाकमान के तौर पर जो लोग प्रभावी माने जाते थे उनमें लालकृष्ण आडवाणी, सुषमा स्वराज, राजनाथ सिंह, अरुण जेटली और अनंत कुमार मुख्य थे। लेकिन समय बदला, नितिन गडकरी भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाये गये तो आडवाणी को छोड़ बाकी सब नेता प्रभावी भूमिका में बने रहे और केंद्र में नरेंद्र मोदी के आने के बाद तो सिर्फ मोदी और अमित शाह भी प्रभावी रह गये। राजनाथ सिंह, अरुण जेटली और सुषमा स्वराज को बड़े-बड़े मंत्रालय तो मिल गये लेकिन जेटली प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रिय बने रहे। समय-समय पर प्रधानमंत्री भी जेटली को अतिरिक्त मंत्रालयों का कार्यभार सौंप कर अन्य मंत्रियों से उनका कद ऊँचा रखते रहे।

सुषमा के ऐलान से जेटली की चिंता बढ़ी

अब सुषमा स्वराज का यह ऐलान कि मैं लोकसभा चुनाव भले नहीं लडूंगी लेकिन राजनीति में बनी रहूंगी, से साफ है कि वह राज्यसभा के जरिये संसद में आएंगी। सुषमा के इस ऐलान से वित्त मंत्री अरुण जेटली की चिंता बढ़नी स्वाभाविक है क्योंकि सुषमा स्वराज राजनीति में उनसे काफी वरिष्ठ हैं और ऐसे में राज्यसभा में सदन के नेता का पद जेटली के पास बना रहेगा या सुषमा के पास जायेगा, इस पर सभी की निगाहें बनी रहेंगी। आपको बता दें कि जब 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी की केंद्र में तीसरी बार सरकार बनी और सुषमा स्वराज उसमें फिर से कैबिनेट मंत्री बनायी गयीं उस वक्त अरुण जेटली ने सरकार में बतौर राज्यमंत्री अपनी संसदीय पारी शुरू की थी।

सुषमा से काफी छोटा है जेटली का राजनीतिक कद

अरुण जेटली 1999 से राज्यसभा में हैं और एक बार ही लोकसभा का चुनाव लड़े हैं। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों में उन्होंने अमृतसर से कैप्टन अमरिंदर सिंह के सामने चुनाव लड़ा था और भारी मतों के अंतर से चुनाव हार गये थे जबकि सुषमा स्वराज अब तक एक ही बार लोकसभा चुनाव हारी हैं और वह भी तब जब 1999 में भाजपा ने कर्नाटक के बेल्लारी से चुनाव लड़ रहीं तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के खिलाफ उन्हें अपना उम्मीदवार बनाया था। तब बेल्लारी में सुषमा स्वराज ने सोनिया गांधी को कड़ी टक्कर दी थी। जेटली वाजपेयी सरकार में बतौर राज्यमंत्री, राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) और फिर कैबिनेट मंत्री के रूप में काम कर चुके हैं। साथ ही वह भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव भी रह चुके हैं। 

सुषमा स्वराज का राजनीतिक सफर

सुषमा स्वराज की बात करें तो निश्चित ही वह हिन्दी की प्रखर वक्ता हैं और एक सांसद एवं मंत्री के रूप में उन्होंने संसद एवं विदेश मंत्री के रूप में संयुक्त राष्ट्र महासभा में प्रभावी भाषण हिन्दी में दिए हैं। वह अंग्रेजी में उसी सहजता के साथ भाषण देती हैं किंतु वह प्राय: हिन्दी में ही बोलना पसंद करती हैं। सुषमा स्वराज के नाम देश में सबसे युवा कैबिनेट मंत्री बनने का भी रिकार्ड है। वह हरियाणा सरकार में 1977 में महज 25 वर्ष की आयु में कैबिनेट मंत्री बनी थीं। उन्हें दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री बनने का गौरव भी हासिल है। स्वराज भारत की पहली महिला विदेश मंत्री थीं। इससे पहले इन्दिरा गांधी ने प्रधानमंत्री रहते हुए यह दायित्व निभाया था। स्वराज तीन बार राज्यसभा सदस्य और अपने गृह राज्य हरियाणा की विधानसभा में दो बार सदस्य रह चुकी हैं। अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार में उन्होंने सूचना प्रसारण मंत्रालय, स्वास्थ्य मंत्रालय, संसदीय कार्य मंत्री सहित विभिन्न मंत्रालयों की जिम्मेदारी कैबिनेट मंत्री के रूप में संभाली थी। सुषमा पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की भी करीबी रहीं थीं और भाजपा के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी के भी वह काफी करीब थीं हालांकि आडवाणी के साथ जिन्ना विवाद जुड़ने के बाद वह उनसे कुछ अलग दिखने लगी थीं। 2009 में जब आडवाणी भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार थे और पार्टी की चुनावों में बुरी हार हुई थी तब आरएसएस ने आडवाणी को विपक्ष का नेता नहीं बनने दिया था और निचले सदन में पार्टी की कमान सुषमा स्वराज के हाथों सौंप दी थी।

बहरहाल, सुषमा स्वराज जोकि विदेश मंत्री के तौर पर भारत की प्रतिष्ठा बढ़ाने में, विदेशियों को भारत के करीब लाने में, भारतवंशियों को भारत भूमि के साथ जोड़ने में और ट्वीटर पर एक माँ की तरह सभी की समस्याओं को तत्काल सुलझाने में लगी रहती हैं, जल्द पूर्ण रूप से स्वस्थ हों और वापस आम जनता की प्रतिनिधि बनकर लोकसभा पहुँचे।

-नीरज कुमार दुबे

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